आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने जब से 500 रुपए के नोटों को बंद करने की पैरवी की है, देशभर में एक बार फिर 'नोटबंदी' की चर्चा होने लगी है। हालांकि इसके समर्थन में केंद्र सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है और 500 रुपए के नोट निर्बाध रूप से चलन में हैं, कहीं कोई समस्या नहीं है। एक मुख्यमंत्री, जिनकी पार्टी केंद्र में सत्तारूढ़ राजग का हिस्सा है, का ऐसा बयान बहुत मायने रखता है, खासकर जब भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की बात हो। देश के पास 8 नवंबर, 2016 को की गई नोटबंदी का अनुभव है। उससे आम आदमी और कारोबारियों को कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लेकिन मन में एक उम्मीद थी कि भ्रष्टाचार का खात्मा होगा। उस कदम से भ्रष्टाचार तो खत्म नहीं हुआ, अलबत्ता डिजिटल पेमेंट बहुत बढ़ गया। अब भारत हर साल इसमें अपना ही रिकॉर्ड तोड़ रहा है। केंद्र सरकार इन तथ्यों से भलीभांति अवगत है, इसलिए जब 19 मई, 2023 को 2,000 रुपए के नोट वापस लिए गए तो देश में कहीं हंगामा नहीं हुआ, लोगों को कोई दिक्कत नहीं हुई। वह नोट नवंबर 2016 में की गई नोटबंदी के बाद मुद्रा की कमी को दूर करने के लिए लाया गया था, जिसे धीरे-धीरे 'हटाया' गया। आम आदमी का काम तब भी सौ-सौ के नोटों से बहुत आसानी से चल जाता था, आज भी चल जाता है। अब डिजिटल पेमेंट ने बड़े नोटों की जरूरत काफी हद तक कम कर दी है। फिर भी, यह हकीकत है कि बाजार में बड़ी खरीदारी के लिए 500 रुपए के नोट पहली पसंद बने हुए हैं। लोग अपनी जरूरतों के लिए घरों में ये नोट रखते हैं।
भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को कई मोर्चों पर कार्रवाई करनी होगी। हम देख चुके हैं कि नोटों की अदला-बदली के बाद भी कई भ्रष्टाचारियों के घरों से 'नकदी के पहाड़' निकले हैं। इन दिनों एक जज साहब नोटकांड की वजह से चर्चा में हैं। एक युवा आईएएस अधिकारी, जो बदलाव लाने की बातें करते थे, वे खुद रिश्वत लेते पकड़े गए। यह तर्क दिया जाता है कि 'बड़े नोटों को बंद कर देंगे तो छोटे नोटों में रिश्वत लेना बंद हो जाएगा या बहुत मुश्किल हो जाएगा।' हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उस स्थिति में भ्रष्टाचारियों के पास अन्य विकल्प भी होंगे। वे छोटी रिश्वतें छोटे नोटों में और बड़ी रिश्वतें कीमती धातुओं / चीजों में ले सकते हैं। क्रिप्टोकरेंसी को भी नज़र-अंदाज़ नहीं किया जा सकता। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए सरकार को मुख्यत: दो काम करने चाहिएं- पहला, सरकारी सेवाएं/अनुमति लेने की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होनी चाहिए। लोगों को किसी सरकारी दफ्तर के चक्कर न लगाने पड़ें। सभी काम निर्धारित अवधि में पूरे हों। दूसरा, भ्रष्टाचारियों को इतना कठोर दंड मिले कि उन्हें एक उदाहरण के रूप में याद रखा जाए और अन्य लोग रिश्वतखोरी से तौबा कर लें। आज सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार की एक बड़ी वजह यह है कि संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों में दंड का भय नहीं है। कई जगह तो लोग अपनी नौकरी के आखिरी दिन रिश्वत लेते पकड़े गए हैं। क्या उन्होंने पहले रिश्वत नहीं ली होगी? भ्रष्टाचारियों को हतोत्साहित करने के लिए विदेशों में कई प्रयोग हुए हैं। करीब डेढ़ दशक पहले चीन में किया गया एक प्रयोग बहुत चर्चा में रहा था, जिसके तहत जिन युवाओं की नई-नई सरकारी नौकरी लगी थी, उन्हें सेवा के पहले दिन जेल ले जाकर उन कैदियों से मुलाकात कराई गई, जो खुद कभी सरकारी नौकरी में थे और रिश्वत लेते पकड़े गए थे। उन्होंने युवा कर्मचारियों को बताया कि 'भ्रष्टाचार के कारण हमारी ज़िंदगी बर्बाद हो गई, आप ऐसा कभी न करना।' उनके वीडियो टीवी पर प्रसारित किए गए। कुछ देशों में भ्रष्टाचार के दोषी कर्मचारियों के पोस्टर लगाने के प्रयोग भी हुए, जो काफी विवादों में रहे हैं। भारत सरकार को ऐसे नियम लागू करने चाहिएं कि लोग खुद ही ईमानदारी को अपनाने के लिए आगे आएं। डिजिटल पेमेंट को अधिक सुरक्षित बनाते हुए इसे और प्रोत्साहन देना चाहिए। इससे भविष्य में बड़े नोटों पर निर्भरता कम हो जाएगी।