मंदिर और सामाजिक उत्थान
मंदिरों में सनातन धर्म की शिक्षा देने वाले संस्थान जरूर होने चाहिएं

मंदिरों के साथ गौशालाएं होंगी तो किसानों को फायदा होगा
केरल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने मंदिरों में गौशाला, सनातन धर्म की शिक्षा देने वाले संस्थान और चिकित्सालय स्थापित किए जाने का सुझाव देकर सर्वसमाज के कल्याण के लिए बहुत गहरी बात कही है। मंदिर मुख्यत: पूजा-अर्चना के स्थान हैं। ये सामाजिक उत्थान के कार्यों में अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं। मंदिरों के साथ गौशालाएं होंगी तो किसानों को फायदा होगा। अब तो कई वैज्ञानिक प्रयोगों से यह तथ्य सामने आ चुका है कि गोबर की खाद जमीन को न सिर्फ उपजाऊ बनाती है, बल्कि वह उसकी गुणवत्ता भी सुधारती है। उस धरती की उपज मानव एवं पशु धन के स्वास्थ्य की रक्षा करती है। आज अत्यधिक विषैले रसायनों और कीटनाशकों के प्रयोग से धरती बंजर होती जा रही है। उसकी उपज का स्वाद बदल गया है। उसमें विष का अंश पाया जाता है, जिससे गंभीर बीमारियां हो रही हैं। स्व. राजीव दीक्षित ने अपने विभिन्न व्याख्यानों में इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया था और किसानों को वैज्ञानिक तरीके से गोबर की खाद बनाने का तरीका भी समझाया था। पश्चिमी प्रभाव के कारण भारत में गोबर, गौमूत्र और प्राकृतिक कीटनाशकों का बहुत मजाक उड़ाया गया था। इनकी जगह खतरनाक रसायनों की पैरवी की गई थी। आज दुनिया जान चुकी है कि गोबर, गौमूत्र और प्राकृतिक कीटनाशक धरती को उपजाऊ बनाते हैं। अगर इनका वैज्ञानिक तरीके से प्रयोग किया जाए तो खेती की लागत घटेगी, उपज बढ़ेगी। हमारे मंदिरों में पर्यावरण के रक्षक बनने की शक्ति एवं सामर्थ्य है। यहां प्रसाद के साथ आम, नींबू, नीम, आंवला, तुलसी जैसे पौधों का वितरण किया जा सकता है। मंदिरों के सोशल मीडिया समूहों में बागवानी के तरीके बताए जा सकते हैं।
मंदिरों में सनातन धर्म की शिक्षा देने वाले संस्थान जरूर होने चाहिएं। प्राय: किशोरों और युवाओं के मन में धर्म को लेकर कई सवाल होते हैं। उन्हें अपने घर-परिवार में संतोषजनक जवाब नहीं मिलते। वहीं, देश में ऐसे कई गिरोह चल रहे हैं, जिनका काम ही ऐसे बच्चों को बरगलाना होता है। वे उनके दिलो-दिमाग में सनातन धर्म के खिलाफ बातें भर देते हैं। हाल के वर्षों में ऐसे कितने ही मामले सामने आए हैं, जिनमें हिंदू परिवारों की बेटियों को प्रेमजाल में फंसाकर उनका धर्मांतरण कराना पाया गया। सोशल मीडिया ऐसे मामलों से भरा पड़ा है। इन्हें सख्त कानून बनाकर कुछ हद तक रोका जा सकता है, लेकिन यह पुख्ता समाधान नहीं होगा। अपने बच्चों को धर्म की शिक्षा देकर ही ऐसे गिरोहों से बचा सकते हैं। मंदिरों में चिकित्सालय की सुविधा भी होनी चाहिए। वहां विशेषज्ञ डॉक्टरों को बुलाना चाहिए। देश में ऐसे अनेक सेवाभावी डॉक्टर हैं, जो आने के लिए खुशी-खुशी तैयार हो जाएंगे। आज जीवन शैली संबंधी बीमारियां बढ़ती जा रही हैं। लोगों की दिनचर्या प्रकृति के विरुद्ध होती जा रही है। आहार में हानिकारक पदार्थों की मात्रा बढ़ती जा रही है। अत्यधिक चटपटे, तीखे और गरिष्ठ पदार्थ सेहत को बिगाड़ रहे हैं। लोगों को मंदिर में भगवान के दर्शन करने के बाद आयुर्वेद विशेषज्ञ यह समझाएं कि शरीर भी एक मंदिर है, जिसमें परमात्मा के अंश (आत्मा) का वास है। अगर यह बताया जाए कि किस ऋतु में कौनसी वनस्पति, कौनसे पदार्थ का सेवन करने से शरीर स्वस्थ रहेगा, तो लोग इस ओर जरूर ध्यान देंगे। इससे वे कई बीमारियों से सुरक्षित रहेंगे। हमारे आस-पास ही इतनी वनस्पतियां होती हैं, जिनकी सही जानकारी हो तो व्यक्ति काफी स्वस्थ रह सकता है। मंदिरों के माध्यम से इस क्रांति का मार्ग प्रशस्त होना ही चाहिए।About The Author
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