सैफ को लगा 15,000 करोड़ का झटका, यहां जानिए पूरा मामला
उच्च न्यायालय ने मालिकाना हक पर फिर से सुनवाई का आदेश दिया

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जबलपुर/दक्षिण भारत। अभिनेता सैफ अली खान और उनके परिवार को झटका देते हुए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने दो दशक पहले दिए गए निचली अदालत के फैसले को खारिज कर दिया है और मामले में दोबारा सुनवाई का आदेश दिया है। सैफ अली खान और उनके परिवार को भोपाल के पूर्व शासकों की 15,000 करोड़ रुपए की संपत्ति विरासत में मिली थी।
30 जून को पारित अपने आदेश में, न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी की उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने ट्रायल कोर्ट के फैसले और डिक्री को खारिज कर दिया, जिसमें पटौदी (सैफ अली खान, उनकी मां शर्मिला टैगोर और उनकी दो बहनों सोहा और सबा) को संपत्तियों का मालिक माना गया था।इसने ट्रायल कोर्ट को एक वर्ष के भीतर मामले को समाप्त करने और निर्णय देने के लिए सभी संभव प्रयास करने का भी निर्देश दिया।
नवाब हमीदुल्लाह भोपाल रियासत के आखिरी शासक नवाब थे। उनकी और पत्नी मैमूना सुल्तान की तीन बेटियां थीं - आबिदा, साजिदा और राबिया। साजिदा ने इफ्तिखार अली खान पटौदी से शादी की और भोपाल की नवाब बेगम बनी थीं। उनके बेटे, भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मंसूर अली खान पटौदी ने शर्मिला टैगोर से शादी की थी।
नवाब हमीदुल्लाह की सबसे बड़ी बेटी आबिदा के पाकिस्तान चले जाने के बाद साजिदा संपत्तियों की मालिक बन गई थीं। बाद में, उनके बेटे मंसूर अली खान पटौदी (टाइगर पटौदी, जिन्होंने शर्मिला टैगोर से विवाह किया) इन संपत्तियों के उत्तराधिकारी बने, जिनकी अनुमानित कीमत लगभग 15,000 करोड़ रुपए थी। यह सैफ अली और उनके भाई-बहनों को विरासत में मिली थी।
दो अपीलों में, एक बेगम सुरैया रशीद और अन्य द्वारा तथा दूसरी नवाब मेहर ताज साजिदा सुल्तान और अन्य द्वारा दायर की गई थी। ये सभी दिवंगत नवाब मोहम्मद हमीदुल्ला खान के उत्तराधिकारी हैं। इन अपीलों में कहा गया है कि निचली अदालत ने शाही संपत्ति के अनुचित बंटवारे के खिलाफ उनके मुकदमों को खारिज कर दिया था। अपनी याचिकाओं में उन्होंने कहा कि भोपाल जिला न्यायालय के 14 फरवरी, 2000 के निर्णय और डिक्री द्वारा उनके मुकदमों को अनुचित तरीके से खारिज कर दिया गया।
उनके वकीलों ने दलील दी कि उनकी (नवाब की) निजी संपत्ति का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार उनके और प्रतिवादी सैफ अली, शर्मिला और 16 अन्य उत्तराधिकारियों के बीच किया जाना चाहिए था।
अपीलकर्ताओं ने प्रतिवादियों (पटौदी) द्वारा 10 जनवरी, 1962 को भारत सरकार द्वारा साजिदा बेगम के पक्ष में सभी निजी संपत्तियों के एकमात्र उत्तराधिकारी के रूप में जारी प्रमाण पत्र का हवाला देने का विरोध किया।
न्यायमूर्ति द्विवेदी ने कहा, 'मामले को नए सिरे से निर्णय लेने के लिए वापस निचली अदालत को भेजा जा रहा है।'
अदालत ने आदेश दिया, 'और यदि आवश्यक हो, तो ट्रायल कोर्ट बाद के घटनाक्रम और बदली हुई कानूनी स्थिति को देखते हुए पक्षों को आगे साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति दे सकता है।'
न्यायाधीश ने कहा, 'मेरा मानना है कि ट्रायल कोर्ट ने मामले के अन्य पहलुओं पर विचार किए बिना ही मुकदमों को खारिज कर दिया, वह भी उस फैसले पर भरोसा करते हुए जिसे पहले ही उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया है। इस प्रकार, मेरी राय में, विवादित फैसला और डिक्री को खारिज किया जाना चाहिए और इसे खारिज किया जाता है।'
इसमें कहा गया है, 'यह स्पष्ट किया जाता है कि चूंकि ये मुकदमे साल 1999 में दायर किए गए थे, इसलिए निचली अदालत को इसे शीघ्रता से, अधिमानतः एक वर्ष की अवधि के भीतर, समाप्त करने और निर्णय लेने के लिए सभी संभव प्रयास करने चाहिए।'