बिलावल का बयान: सौदेबाजी या सैन्य दबाव?
भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' का आगाज कर अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं
भारत सरकार को अपने रुख पर दृढ़ रहना चाहिए
पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने कुछ खूंखार आतंकवादियों का भारत को प्रत्यर्पण करने के संबंध में जो बयान दिया है, उससे किसी को भ्रमित नहीं होना चाहिए। उन्होंने यह बात कहते हुए लगभग उन्हीं शब्दों को दोहराया है, जो पाकिस्तानी फौज और सरकार दोहराती रही हैं। बिलावल का यह कहना कि 'जांच के दायरे में आए व्यक्तियों को भारत को प्रत्यर्पित करने में कोई आपत्ति नहीं है, बशर्ते नई दिल्ली इस प्रक्रिया में सहयोग करने की इच्छा दिखाए', का सीधा मतलब यही है कि आतंकवादियों के खिलाफ सबूत जुटाकर पहले की तरह ही 'चिट्ठी-पत्री का खेल' खेला जाए। अब यह नहीं हो सकता। भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' का आगाज कर अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। अब भारत पाकिस्तानी आतंकवादियों की करतूतों की शिकायत नहीं करेगा, बल्कि उनके ठिकानों को ही मिसाइलों से उड़ा देगा। हमारे सशस्त्र बलों ने पीओके से लेकर पाकिस्तान की जमीन पर चल रहे आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों को जिस तरह निशाना बनाया, उससे इस पड़ोसी देश में डर का माहौल है। भारत सरकार ने सिंधु जल संधि को स्थगित कर इस्लामाबाद को जोरदार झटका दिया है। इससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तानी नेता और सैन्य अधिकारी भले ही आतंकवाद को बढ़ावा देते हों, लेकिन बात जब उनके फायदे की आती है तो वे 'सौदा' करने से भी गुरेज़ नहीं करते। पाकिस्तान के कई पत्रकार और विश्लेषक यह खुलासा कर चुके हैं कि ओसामा-बिन लादेन का पता लगाने और उसका खात्मा कराने के लिए उनके मुल्क के कई नेताओं, सैन्य अधिकारियों और चिकित्सा कर्मियों ने अमेरिका से डॉलर वसूले थे।
अगर सिंधु जल संधि स्थगित होने के कारण पाकिस्तान में अफरा-तफरी का माहौल बनता है तो इस्लामाबाद खुद को पाक-साफ दिखाने के लिए कुछ आतंकवादियों को खुद ही ढेर कर सकता है। वह इस तरह ऐसी दलील देने के लिए आधार तैयार कर सकता है कि भारत जिन आतंकवादियों का जिक्र कर उस पर हमला बोलता है, अब वे खत्म हो चुके हैं, लिहाजा सिंधु जल संधि को बहाल कर देना चाहिए। उक्त बयान के लिए बिलावल की आलोचना हो रही है, लेकिन यह भी चर्चा है कि वे पाकिस्तानी फौज के इशारे पर ऐसा कह रहे हैं। उनके जरिए रावलपिंडी एक ऐसे चेहरे को आगे बढ़ाना चाहती है, जिसे वह 'उदार' दिखा सके। साथ ही, राष्ट्रीय राजनीति में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान का कद घटा सके। पाकिस्तान में पंजाब से लेकर सिंध तक इस बात की चर्चा है कि सिंधु जल संधि स्थगित होने से खेती चौपट हो सकती है। इससे पाक में आटा, दाल, सब्जियों आदि की भारी किल्लत हो सकती है, जिसके नतीजे में जनता विद्रोह कर सकती है। याद करें, इस साल मई में सिंध में प्रदर्शनकारियों ने गृह मंत्री जियाउल हसन लंजार का घर ही फूंक दिया था। पाकिस्तान में समस्या सिर्फ पानी की कमी से जुड़ी हुई नहीं है। हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ ने भी हाहाकार मचा दिया था। खासकर जुलाई के आखिरी हफ्ते से लेकर पूरे अगस्त माह में बाढ़ का खतरा मंडराता रहता है। पाकिस्तान में बहुत लोग चिंतित हैं कि अगर अगस्त में बाढ़ आ गई और उधर से भारत ने भी बहुत बड़ी मात्रा में पानी छोड़ दिया तो कई इलाके जलमग्न हो जाएंगे। इस तरह आतंकवादियों की करतूतों का खामियाजा करोड़ों नागरिक भुगतेंगे। बिलावल भुट्टो जरदारी भारत के इस 'जल अस्त्र' से पाकिस्तान को बचाने के लिए अभी से तैयारी करने लगे हैं। भारत सरकार को अपने रुख पर दृढ़ रहना चाहिए। आतंकवाद के संपूर्ण खात्मे से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करना चाहिए।

