मानवता के निरंतर विकास में सत्य की आधारभूत भूमिका

धन बहुत कुछ है पर सब कुछ नहीं

मानवता के निरंतर विकास में सत्य की आधारभूत भूमिका

Photo: PixaBay

संजीव ठाकुर
मोबाइल: 9009 415 415

Dakshin Bharat at Google News
मानव सभ्यता का सतत विकास उसकी अदम्य जिज्ञासा, उत्कट उत्साह, जिजीविषा, निरंतर उन्नति की भूख और आशावादिता का प्रतिफल है| सभ्यता और संस्कृति की सुविधा के विभिन्न सोपानो में समय-समय पर नवीन मूल्यों की स्थापना और पुराने मूल्यों का विस्थापन एक सास्वत सत्य की तरह है| परिवर्तन और प्रगति प्रकृति का आधारभूत नियम है| विकास में धन की आवश्यकता अवश्य होती है पर और धन का अतिरेक विकास की दिशा को दिग्भ्रमित भी कर सकता है| इसके अलावा परिस्थितियों, आवश्यकताओं, दर्शन तथा अर्थ एवं धार्मिक स्थापनाओं के अनुरूप ही समकालीन समाज का दृष्टिकोण और जीवन दर्शन निरंतर विकासवान होता है| आदिकाल से विकास के क्रम में धन के प्रयोग को बड़ा प्रबल माना गया है| शाश्वत मूल्य की मीमांसा एवं उसकी निरंतरता मानवी जीवन से जुड़े अंतरंग पहलुओं को उजागर करती है| सत्य को सिद्धांत के रूप में भी देखा गया है| मानवी जीवन दर्शन में धन और सत्य दोनों कारकों का प्राचीन काल से ही पर्याप्त महत्व रहा है| धन का महत्व है पर धनबल सब कुछ नहीं है| सत्य एक सार्वभौमिक जीवन दर्शन है, इसे धन बल की मिथ्या कभी नष्ट अथवा विलोपित नहीं कर सकती है| 

धन बहुत कुछ है पर सब कुछ नहीं| सत्य सिद्धांत के बिना धन की विवेचना में मीमांसा अधूरी तथा महत्वहीन है| गलत तरीके से कमाया गया धन मनुष्य के चरित्र में उजियारे दिन के बाद घनघोर तमस की तरह है| सत्य जीवन का सार्वकालिक उजाला है| यह बात भी महसूस की गई है कि निवृत्ति, त्याग, संयम,सन्यास के स्थान पर भोग विलास को प्राथमिकता दिए जाने के कारण धन पर सत्य व नैतिक मूल्यों को बरीयता दी जाने की परंपरा रही है| वेद तथा पुराणों पर भी सत्य एवं नैतिकता के व्यवहारिक पक्ष को उजागर करते हुए लिखा गया है कि ’सत्य का सुख सोने के पात्र से ढका हुआ है, धन जब मुखर होता है तो सत्य नेपथ्य में होता है| सत्य तब मुखर होता है जब धनबल का अतिरेक होने लगता है| 

धनबल मिथ्या है, सत्य शाश्वत और परंपरागत अनुवांशिक शक्ति है| भारतीय संस्कृति एवं परंपरा सत्य के मूल्य को सर्वोत्कृष्ट है उस सर्वोच्च मानती है| इसे मन वचन और कर्म में अद्वैत के स्तर तक निश्चित अकाट्य और सदैव अपरिवर्तनीय ही माना गया है, लोक जीवन का ’सांच को आंच नहीं’ जैसी कहावतें और मूल्य जनजीवन में अंतरतम तक समाए हुए है| मुंडक उपनिषद में उल्लेखित सत्यमेव जयते आज भारतीय गणतंत्र का आदर्श वाक्य है, जो भारतीय दर्शन और जीवन की अभिव्यक्ति भी है| यह उल्लेखनीय है कि वैदिक दर्शन से लेकर जैन व बौद्ध दर्शन तक इस्लाम ईसाई धर्मों से लेकर सिख गुरुओं तक सत्य का महत्व और निर्विवाद सर्वोच्च स्थान सर्वमान्य रूप से स्वीकार्य किया गया है| यूरोप में औद्योगिक क्रांति के बाद तो भोग दर्शन में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए और आर्थिक तत्व का महत्व वैश्विक तथा आंतरिक जीवन का सबसे प्रमुख निर्धारक तथ्य बनने लगा| पश्चिमी देशों में पूंजीवादी, उदारवादी संस्कृति के विकास का प्रभाव पूरे विश्व पर पर्याप्त मात्रा में पड़ा और वैश्विक स्तर पर मूल्यों में नैतिक स्तर पर परिवर्तन आने लगे|

आधुनिक युग वैश्वीकरण, उदारीकरण और आर्थिक विकास का युद्ध इस युग में अर्थ अथवा धनबल अपनी अकूत शक्ति के बल पर पूरी सभ्यता व व्यवस्था का केंद्रीय तत्व बनकर उभरा है| धन बल पर आधारित इस युग में स्थिति यह बन गई है कि राजनीति, समाज, धर्म ,अध्यात्म ,अंतरराष्ट्रीय संबंध, पर्यावरण, ज्ञान विज्ञान ,जीवन दर्शन सभी अर्थ व धन के निर्देशों के अनुरूप ही चलन में आ गए हैं| धन के बल पर आज पारिवारिक संबंधों सामाजिक क्षेत्र में प्रतिष्ठा राजनैतिक शक्ति,संतुलन, आध्यात्मिक स्तर पर प्रभाव नैतिक स्तर पर सहमति एवं अंतरराष्ट्रीय संबंधों को केवल प्रभावित ही नहीं कर रहे हैं अपितु उन्हें लगभग खरीदने की ताकत रखने जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है| इसके बावजूद सत्य के मूल्य को और उसकी सार्वभौमिकता को दबाना या शांत करना या उसके दमन के लिए उसे विवश करना लगभग असंभव है| वैश्विक स्तर पर कुछ अमीर देश और मुट्ठी भर धनाढ्य व्यक्ति इस बात को मान्यता देते हैं कि जब धन बोलता है तो सत्य मौन रहता है, पर सार्वजनिक रूप से ऐसा मानना तार्किक स्तर पर जरूर ठीक लगता हो पर दार्शनिक अथवा सांस्कृतिक एवं धार्मिक रूप से यह पूर्ण रूप से असत्य भी है| 

पारिवारिक सामाजिक स्तर पर भी देखें तो समाज के नैतिक मूल्यों में आई गिरावट के परिणाम स्वरूप सामाजिक प्रतिष्ठा उसी को प्राप्त होती है जिसके पास पर्याप्त तथा अकूत धन हो| धनवान व्यक्ति की विचारधारा उसकी मान्यताओं को समाज महत्व देता है एवं उसे प्रेरणा का स्रोत माना जाता है| निर्धन व्यक्ति कितना भी विद्वान ऊर्जावान हो उसकी बातें सत्य पूर्ण सत्य तथा उदास बातें भी समाज में कई उदाहरणों में महत्वहीन हो जाती है| धन तथा बाहुबल के महत्व के अनेक उदाहरण राजनीतिक स्तर पर प्रतिदिन हमारे सामने आने लगे हैं| राजनीतिक जीवन में धन के बल पर किए जाने वाले भ्रष्टाचार, चुनाव में धांधली, मतदाताओं की खरीद-फरोख्त, पार्टियों पर अनुचित प्रभाव मीडिया चैनल न्यूज़ प्रिंट मीडिया आदि की खरीदारी सत्य के मूल्यों पर प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं| आज धन व सत्ता का अनुचित प्रयोग सत्य का दमन तथा उसे नकारने की शक्ति बन चुका है| कई राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सर्वे के अनुसार उसके सूचकांक में भारत का निम्न स्थान धन के बल पर सत्ता प्रतिष्ठानों को प्रभावित करने बढ़ती घूसखोरी, सरकारी गैर सरकारी, कारपोरेट जगत के बढ़ते नैतिक पतन को उजागर करता है| विधायिका, न्यायपालिका तथा कार्यपालिका सभी स्तरों पर सत्य के मूल्य के दमन की घटनाओं से आज अखबार अटा पड़ा है| आज की स्थिति में निचले स्तर से उच्च स्तर की अदालतों तक न्याय पाने के लिए महंगे वकील करने के लिए धन की अत्यंत आवश्यकता होती है, न्याय भी अब धन पर आधारित हो गया है| न्याय पाना अब गरीबों का हक नहीं रह गया है,यह केवल अमीर लोगों की मुट्ठी में बंद होकर रह गया है| 

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पर्यावरण संरक्षण को लेकर दिखने वाली बराबरी अनेक बार सत्य को दबाकर दादागिरी के बल पर अमीर देशों की जिद की भेंट चढ़ जाती है| अमीर देशों की धन के दम पर दादागिरी कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों में दिखाई देती है| अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन पर होने वाले वैश्विक सम्मेलन इसीलिए भी असफल होते दिखाई दिए हैं| क्योंकि अमीर देश कार्बन उत्सर्जन की मात्रा की जिम्मेदारी ज्यादा जनसंख्या वाले विकासशील देशों के सिर पर डाल देते हैं| सत्य की मनमानी व्याख्या आधुनिक युग की सच्चाई है सत्य का दमन इस स्तर पर पहुंच चुका है कि व्यक्ति अपने व्यक्तिगत स्तर पर दिन में कितनी बार धनबल के दबाव में अपने अंतःकरण से समझौता कर अपनी सहज प्रवृत्ति का दमन करने से नहीं चूकता है|

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download

Latest News

क्या ट्रंप की हत्या के लिए साजिशें रच रहा ईरान? तेहरान से आया बड़ा बयान क्या ट्रंप की हत्या के लिए साजिशें रच रहा ईरान? तेहरान से आया बड़ा बयान
Photo: @Khamenei_fa X account
पाकिस्तान में बीएलए का कहर, आत्मघाती धमाके में पूरा रेलवे स्टेशन उड़ा दिया!
मोदी का कांग्रेस पर आरोप- 'चुनाव महाराष्ट्र में है, वसूली कर्नाटक-तेलंगाना में डबल हो गई'
भाजपा सरकार बनने के बाद झारखंड के युवाओं की नौकरी घुसपैठिए नहीं खा पाएंगे: शाह
भाजपा अपनी लकीर लंबी नहीं कर पाई, हमारी लकीर छोटी करने की साजिश रचती रहती है: कांग्रेस
झारखंड: आयकर विभाग ने मारे छापे, हेमंत सोरेन के सहयोगी के परिसरों की भी तलाशी
पाकिस्तान: क्वेटा रेलवे स्टेशन पर हुआ बड़ा धमाका, 24 लोगों की मौत, 50 घायल