दो का चार, बंटाधार!

यह एक गंभीर प्रश्न है

दो का चार, बंटाधार!

भारतीय एजेंसियों को इस पर जरूर विचार करना चाहिए

डिजिटल क्रांति के इस युग में ऑनलाइन गेमिंग, सट्टेबाजी और जुए की लत ने युवा वर्ग को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। ये गतिविधियां शुरुआत में तो मनोरंजन का साधन लगती हैं, लेकिन धीरे-धीरे दिलो-दिमाग पर ऐसी जड़ जमा लेती हैं कि पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाता है। इनकी लत ने कई लोगों का जीवन बर्बाद कर दिया है। हमने 9 जून को प्रकाशित संपादकीय ('नीयत में खोट, विश्वास पर चोट') में बताया था कि ऑनलाइन गेमिंग, सट्टेबाजी और जुए की लत लगने के कारण कई बैंक कर्मचारियों ने खाताधारकों की रकम उड़ा दी। अब इन गतिविधियों के दुष्प्रभाव राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा बनते जा रहे हैं। हाल में नई दिल्ली स्थित नौसेना भवन में कार्यरत जिस यूडीसी को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के लिए जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया, वह ऑनलाइन गेमिंग का आदी बताया जा रहा है। उसने पैसों के लिए एक पाकिस्तानी जासूस 'प्रिया' को संवेदनशील जानकारी उपलब्ध करवाई, जिसमें 'ऑपरेशन सिंदूर' से संबंधित विवरण भी शामिल था! क्या ऑनलाइन गेमिंग की लत किसी व्यक्ति के विवेक का इतना हरण कर लेती है कि वह दुश्मन एजेंसियों के लिए जासूसी करने से नहीं हिचकता? जासूसी के मामलों में पहले भी कई लोग पकड़े गए हैं, जो अलग-अलग वजहों से यह काम कर रहे थे। प्राय: लोग लालच, मोहपाश, ब्लैकमेलिंग, विचारधारा, आत्मिक लगाव आदि के वशीभूत होकर दुश्मन एजेंसियों के लिए जासूसी करने लग जाते हैं। क्या भविष्य में ऐसे लोग भी इन एजेंसियों के आसान शिकार हो सकते हैं, जिन्हें ऑनलाइन गेमिंग, सट्टेबाजी और जुए की लत लग गई? यह एक गंभीर प्रश्न है। भारतीय एजेंसियों को इस पर जरूर विचार करना चाहिए।

यह भी पढ़ें: 'मुझे मैडम ने भेजा है, वे आपका इंतज़ार कर रही हैं' - इसके बाद जो हुआ, वह रोंगटे खड़े कर देगा

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यह घटना समाज और सरकार के लिए एक चेतावनी है कि ऐसी गतिविधियों पर तत्काल अंकुश नहीं लगाया गया तो खतरा बढ़ सकता है। ऑनलाइन गेमिंग और सट्टेबाजी ने न सिर्फ परिवारों को तबाह किया, बल्कि सामाजिक और नैतिक मूल्यों को भी नुकसान पहुंचाया है। जो इस जाल में फंस जाते हैं, वे किसी भी चीज को दांव पर लगाने से नहीं हिचकते। हाल के वर्षों में ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जब किसी व्यक्ति को ऐसी लत लगी तो उसने अपराधों की ओर कदम बढ़ा दिए। जो लोग किसी तरह इस दलदल से बाहर आ गए, वे अपने अनुभवों से बताते हैं कि ऑनलाइन गेमिंग और सट्टेबाजी ने फैसले लेने की उनकी क्षमता को कमजोर कर दिया था। वे दिन-रात इसी सोच में डूबे रहते थे कि मुझे 'दो का चार' करना है। जब दांव में नुकसान होता है तो किसी काम में मन नहीं लगता, व्यक्ति उचित-अनुचित का विचार नहीं कर पाता। बस, इसी कोशिश में रहता है कि किसी भी तरह से पैसा आना चाहिए। अब क्रिप्टोकरेंसी जैसे अनियंत्रित विकल्पों ने इस खतरे को और बढ़ा दिया है। सरकार को ऑनलाइन गेमिंग और सट्टेबाजी के प्लेटफॉर्म्स के संबंध में सख्त नियम लागू करने होंगे। बैंकों और सुरक्षा बलों से जुड़े कर्मियों के लिए तो खास हिदायत होनी चाहिए कि वे इन ऐप्स से दूर रहें। साथ ही, जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को इन गतिविधियों के दुष्परिणामों से सावधान करना चाहिए। स्कूलों और कॉलेजों के विद्यार्थियों को जरूर बताना चाहिए कि जुआ खेलकर कोई धनवान नहीं होता, सट्टा लगाकर कोई समृद्ध नहीं होता। ये बर्बादी के रास्ते हैं, जिनसे कोसों दूर रहने में ही भलाई है। अगर एक बार इनकी लत लग गई तो संभलने में बहुत वक्त लगेगा। लोगों को सबकुछ गंवाने के बाद समझ में आता है कि 'जुआ, किसी का ना हुआ'।

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