नमामि गंगे परियोजना को मिली वैश्विक पहचान
गंगोत्री से निकलकर गंगा नदी गंगासागर में मिल जाती है
Photo: PixaBay
ई. प्रभात किशोर
मोबाइल : 8544128428
गंगोत्री से निकलकर २५२५ किमी की दूरी तय करते हुए गंगा नदी गंगासागर में मिल जाती है| गंगा नदी घाटी के जल अधिग्रहण क्षेत्र का फैलाव लगभग १०८६०० वर्ग किमी में है, जिसमें भारत के साथ-साथ नेपाल, तिब्बत एवं बंगला देश के भूभाग भी सम्मिलित हैं| भारत में गंगा का जल अधिग्रहण क्षेत्र ८६१४०४ वर्ग किमी में फैला है, जो इसके कुल क्षेत्रफल का लगभग २६ प्रतिशत है| भारतीय संस्कृति में मोक्षदायिनी गंगा की महत्ता को ध्यान में रखते हुए जून २०१४ में भारत सरकार के द्वारा नमामि गंगे नामक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन प्रारम्भ की गयी, जिसका मुख्य उद्देश्य है- गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त कर इसे पुनः जीवंत करना| इस मिशन की सफलता की दृष्टि से सिवरेज निपटान हेतु बुनियादी संरचनात्मक निर्माण, औद्योगिक प्रवाह की निगरानी, रिवर फ्रंट का विकास, नदी सतह की सफाई, जैव विविधता संरक्षण, वनीकरण, गंगा ग्राम, जनजागरण आदि लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं| इस परियोजना में ९ राज्य क्रमशः उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान एवं हिमाचल प्रदेश सम्मिलित हैं|
नमामि गंगे परियोजना में लक्ष्यों की संप्राप्ति हेतु निर्धारित गतिविधियों को तीन भागो में विभाजित किया गया है - प्रारम्भिक स्तर (तत्काल लागू करने हेतु), मध्यम अवधि (५ वर्ष के अंदर) एवं दीर्घ अवधि (१० वर्ष के अंदर) की गतिविधियां| प्रारम्भिक गतिविधियों में नदी की उपरी सतह की सफाई से लेकर बहते हुए ठोस कचरे की समस्या का निदान, ग्रामीण क्षेत्रों की नालियों में बहने वाले ठोस व तरल मैले पदार्थ की सफाई एवं शौचालय का निर्माण, अधजले शव को नदी में बहने से रोकने हेतु शवदाह गृह का नवीकरण, आधुनिकीकरण एवं निर्माण, नदी घाटों की मरम्मति, आधुनिकीकरण एवं निर्माण आदि| मध्यम अवधि की गतिविधियों में नगर निकाय से आनेवाले कचरे के निपटान हेतु ट्रीटमेंट क्षमता का निर्माण एवं औद्योगिक प्रदूषण को दूर करने हेतु उद्योगों को अपने गंदे पानी को समाप्त करने तथा इस हेतु रियल टाईम ऑनलाईन निगरानी केन्द्र स्थापित करना, जैव विविधता संरक्षण, वनीकरण, एवं जल की गुणवत्ता की निगरानी का लक्ष्य निर्धारित है|
दीर्घ अवधि की गतिविधियों में ई-फ्लो का निर्माण, बेहतर जल उपयोग क्षमता एवं सतही सिंचाई क्षमता को बेहतर बनाकर नदी के सही प्रवाह को सुनिश्चित करने का लक्ष्य है| केन्द्रीय जल शक्ति मंत्रालय के प्रतिवेदन के अनुसार ३१ जनवरी २०२२ तक कुल निर्धारित १६० में से ७६ सिवरेज परियोजना, ९० में से ६६ रिवर फ्रंट, नदी घाट व शवदाह गृह परियोजना, ५ में से १ घाट एवं नदी की सतह की सफाई संबंधी परियोजना, ४१ में से २६ वनीकरण एवं जैव विविधता संरक्षण परियोजना, ५ में से ३ समग्र पारिस्थितिकी कार्य बल एवं गंगा मित्र परियोजना, २५ में से ७ अनुसंधान एवं विकास, सार्वजनिक पहुंच एवं जिला गंगा समिति सहायता परियोजना तथा ८ में से २ गंगा ज्ञान एवं निगरानी केन्द्र परियोजनाएं पूर्ण हो चुकी हैं| वस्तुतः ८ वर्ष व्यतीत होने एवं कई हजार करोड़ व्यय होने के उपरान्त भी इस महत्वाकांक्षी योजना का नगण्य प्रभाव दृष्टिगोचर हो रहा है| गंगा जल की गुणवत्ता जस की तस है| निर्माणाधीन संरचनाएं काफी घटिया स्तर की हैं तथा कार्य की कछुआ चाल से आम नागरिकों का दैनन्दिन जीवन प्रभावित हो रहा है| प्रशासनिक व्यवस्था में लालफीताशाही एवं निर्माण एजेंसियों के मनमानेपूर्ण रवैये से इस योजना की सफलता पर प्रश्न-चिन्ह खड़ा होना लाजिमी है|
संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा मांट्रियल (कनाडा) में जैव विविधता पर आयोजित १५ वें शिखर सम्मेलन (कॉप १५) में नमामि गंगे परियोजना को विश्व की शीर्ष १० पुनरूद्वार फ्लैगशीप पहलों में शामिल किया गया है| विश्व की शीर्ष ९ अन्य पहलों में ट्राई नेशनल अंटलांटिक फॉरेस्ट पैक्ट (ब्राजील, पैराग्वे एवं अर्जेन्टिना), अबु धाबी मैरिन रिस्टोरेशन, ग्रेट ग्रीन वॉल फॉर रिस्टोरेशन एण्ड पीस (अफ्रिका), मल्टी कन्ट्री माउन्टेन इनिशिएटिव (सर्बिया, किर्गिस्तान, युगान्डा एवं रवान्डा), स्मॉल आईलैंड डेवलपिंग स्टेट रिस्टोरेशन ड्राईव (बनियातु, सेंट लूसिया, कॉमरोस), एल्टीन डाला कंजर्वेशन इनिशिएटिव (कजाकिस्तान), सेन्ट्रल अमेरिकन ड्राई कॉरिडोर, बिल्डिंग विद नेचर (इंडोनेशिया), शान-शुई इनिशिएटिव (चीन) शामिल है| संयुक्त राष्ट्र संघ की मान्यता के उपरान्त विश्व भर में प्राकृतिक स्थलों के क्षरण की रोकथाम एवं पुनरूद्धार हेतु कटिबद्ध सभी चयनित पहलों को संयुक्त राष्ट्र की सहायता, वित्त पोषण एवं तकनीकी विशेषज्ञता प्राप्त होने की आशा है|