व्यर्थ की धारणा का निर्माण

व्यर्थ की धारणा का निर्माण

मेरा एक पुराना लेख जो कुछ वर्ष पूर्व फेसबुक पर काफी चर्चित रहा, कुछ संपादन के साथ पुनः प्रस्तुत है .... शायद आप लोगों को पसंद आए ....। यह लेख कापीराइट से बंधा है इसलिए आगाह करता हूं कि मेरे नाम के बिना इसको प्रसारित/प्रकाशित करने का प्रयास न किया जाए।


* श्रीकांत पाराशर *
हम बहुत-सी बार किसी के प्रति अपने  मन में एक धारणा बना लेते हैं, एक मान्यता निर्मित कर लेते हैं, एक सोच तय कर लेते हैं और फिर उससे एक रत्ती भी इधर-उधर नहीं होना चाहते। दूसरों की छोड़िए, हम अपने प्रति भी एक धारणा बना लेते हैं और फिर इस बात की परवाह नहीं करते कि उस धारणा का सच्चाई से कुछ लेना-देना भी है कि नहीं। ऐसा नहीं है कि हमारी अपने प्रति या किसी दूसरे के प्रति अपने मन में निर्मित की गई सोच पूरी तरह से निराधार ही हो, कई बार उसमें कुछ हद तक सच्चाई भी होती है, परन्तु  अधिकांश बार सच्चाई से कहीं ज्यादा, बल्कि कई गुणा ज्यादा झूठ पर आधारित होती है हमारी सोच। 

मुझे लगता है कि शायद हमारी सोच, हमारी धारणा, हमारी मान्यता आसपास के वातावरण से प्रभावित होती है। हम कोई छोटा-मोटा अच्छा काम करते हैं तो समाज में पांच-पच्चीस जगह हमारी  पूछ होने लगती है, लोग हमें मान देने लगते हैं, हमारी यहां-वहां चर्चा होने लगती है और हम उस वातावरण के प्रति इतने सम्मोहित हो जाते हैं कि सच्चाई से मुंह मोड़कर सम्मोहन में फंस जाते हैं। ऐसे मौके पर होना तो यह चाहिए कि हम अपने मन को समझाएं कि ऐसा कोई हमने तीर नहीं मार लिया समाजसेवा के क्षेत्र में, परन्तु होता इसका उल्टा है। हम आंखें मूंद कर उस वातावरण के कारण अपने प्रति एक धारणा बना लेते हैं। इसी प्रकार, अगर हमने अपने व्यापारिक या व्यावसायिक क्षेत्र में कुछ हासिल कर लिया तब भी हमारा यही हाल होता है। हम थोड़ा, लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल हो जाते हैं और जब प्रशंसा के पुल बंधने लगते हैं तो हम यथार्थ से ऊपर उठकर अपने प्रति एक धारणा बना लेते हैं। हमें लगता है कि हमारे बराबर कोई नहीं है। हम अपने परिजनों, बड़े बुजुर्गों, अपने साथियों के सहयोग को भी भुला देते हैं और सफलता का पूरा श्रेय मन ही मन अपने आप को देने लगते हैं। यही स्थिति हर क्षेत्र में होती है। हमें यह याद रखना चाहिए कि हम अपने आसपास के वातावरण के कारण  केवल सम्मोहित हैं, सच्चाई कुछ और है। हमें आंखें खोलनी चाहिएं कि यह मिथ्या है, एक स्वप्न है, सच्चाई से कोसों दूर है, एक धारणा है, एक सोच है, एक मान्यता है जो हमने खुद ने बना ली है। ऐसी धारणा हम खुद वातावरण के कारण निर्मित कर लते हैं।

मैंने एक बोधकथा पढ़ी थी, उसका उल्लेख करना यहां समीचीन होगा। नागार्जुन नामक एक बोद्ध भिक्षु हुए हैं। उनके पास एक बार एक युवक ज्ञानार्जन के लिए आया तो उन्होंने उसकी परीक्षा लेनी चाही । उन्होंने कहा, सामने एक गुफा है, तुम उसमें चले जाओ। तीन दिन तक उसमें आंखें बंद करके बैठ जाओ और पूरे समय तक यही विचार करते रहो कि तुम मनुष्य नहीं, बल्कि एक भैंस हो। युवक को प्रारंभ में तो यह अटपटा लगा परन्तु उसने तो नागार्जुन से कुछ न कुछ सीखकर लौटने की ठान रखी थी। वह भूखा प्यासा तीन दिन तक उस गुफा में बैठे बैठे बस यही दोहराता रहा...मैं भैंस हूं, मैं भैंस हूं, मैं भैंस हूं। वह मुंह से उच्चारण भी करता जाता था। गुफा में वही आवाज गूंजती। उसे कानों से भी वही स्वर सुनाई देता। धीरे धीरे उसके मन में वही भाव जगने लगे, मन के अंदर से भैंस प्रकट होने लगी। वह बीच में आंख खोलकर देखता तो वही आदमी का शरीर और जब आंख बंद करे तो भैंस जैसा स्थूल शरीर महसूस होता।

वातावरण में ‘मैं भैंस हूं’ की ध्वनि गूंजती, मन में भी एक धारणा पलने लगती  कि मैं वास्तव में भैंस ही हूं। वह यही सोचने लगा कि वह भैंस ही है। तीन दिन पूरे हुए तो नागार्जुन ने सोचा कि युवक को बाहर बुलाया जाए। वे गुफा के द्वार पर आकर खड़े हो गए और युवक से कहा, बाहर आ जाओ। तो युवक ने गुफा से निकलने की कोशिश की। उसने कहा, नहीं निकल सकता सींग अटक रहे हैं और द्वार भी छोटा है, मेरा शरीर भारी है, मोटा है, बाहर निकलने को नहीं हो रहा है।

नागार्जुन युवक के पास गए और जोर से एक चांटा मारा और कहा, आंखें खोलो, कैसी सींग? उसने आंखें खोली तो पता लगा कि न तो कोई सींग है, न कोई बात। यह केवल सम्मोहन की एक स्थिति थी। व्यर्थ की धारणा।

आदमी उस सम्मोहन में इतना आनंदित हो उठता है कि अपनी आंखें भी खोलना नहीं चाहता। आज कितने ही लोग हैं जिनमें से किसी को बड़े समाजसेवी होने की, किसी को बड़े उद्योगपति या व्यापारी होने की, किसी को महान धर्मात्मा होने की सींग उग आई हैं। कोई नागार्जुन उनको चांटा मारकर आंख खोलेगा तभी वह यथार्थ की जमीन पर उतरेंगे अन्यथा मिथ्या धारणा, झूठी सोच, व्यर्थ की मान्यता की सींगें लगाए घूमते फिरेंगे और जीवन के बहुमूल्य समय का एक बड़ा हिस्सा यों ही गंवा देंगे।

Google News
Tags:

About The Author

Related Posts

Post Comment

Comment List

Advertisement

Latest News

इंडि गठबंधन वालों को इस चुनाव में लड़ने के लिए उम्मीदवार ही नहीं मिल रहे: मोदी इंडि गठबंधन वालों को इस चुनाव में लड़ने के लिए उम्मीदवार ही नहीं मिल रहे: मोदी
प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस के 'शहजादे' को भी वायनाड में संकट दिख रहा है
नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता दस वर्ष बाद भी बरकरार है: विजयेन्द्र येडीयुरप्पा
टेस्ला के सीईओ एलन मस्क के भारत दौरे के बारे में आई बड़ी खबर
आ गए संशोधित आंकड़े, तमिलनाडु में इतना हुआ मतदान
डीपफेक की खतरनाक डगर
जनता ने '300 पार' करवाया तो हमने धारा-370 समाप्त कर दी, 5वीं बड़ी अर्थव्यवस्था बना दी: शाह
हुब्बली की कॉलेज छात्रा से बर्बरता, पूर्व सहपाठी ने कई बार चाकू मारकर जान ली