साधु-संत धरा पर भगवान के जीवंत प्रतिनिधि हैं: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

जैनाचार्य का हुआ गदग में नगर प्रवेश

साधु-संत धरा पर भगवान के जीवंत प्रतिनिधि हैं: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

'साधु-संतों की बराबरी करना सरल नहीं है'

गदग/दक्षिण भारत। गुरुवार को सुबह गदग नगरपालिका की सीमा में आचार्यश्री विमलसागरसूरीजी व अन्य सहयोगी संतों ने प्रवेश किया। इस मौके पर जैनाचार्य विमलसागरसूरीजी ने कहा कि हम कुछ लेने नहीं, बल्कि सद्विचारों का उपहार देने आए हैं। 

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जैनाचार्य ने बताया कि भारत ऋषि और कृषि परंपरा की पवित्र भूमि है। यहां भोग-विलास की बातों को समाज ने कभी महत्व नहीं दिया। यहां हमेशा योग और धर्म-आध्यात्म की अनुगूंज जीवंत रही है। यही कारण है कि भारत समग्र विश्व को मार्गदर्शन देता था। 

लोग यहां कुछ सीखने आते थे, भारतीय मनुष्य कहीं बाहर नहीं जाता था। यदि कभी कोई भारतीय विदेश जाता था, तो वहां कुछ अच्छा देने और उनका उद्धार करने जाता था। भारत के डीएनए की यह विशिष्टता रही है। हम यह बतलाने और कुछ अच्छा सिखलाने आए हैं।

आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि साधु-संत इस धरा पर भगवान के जीवंत प्रतिनिधि हैं।  भगवान से उनकी तुलना तो नहीं होती, लेकिन इस कलयुग में भी वे भगवान के अंश और वंश हैं। यदि प्रमाणिकता पूर्वक निरीक्षण करें तो हम पाएंगे कि त्यागी, योगी, साधु-संतों जैसा श्रेष्ठ-पवित्र जीवन कोई नहीं जीता। 

संसार में सर्वत्र ऐसा जीवन दुर्लभ है। साधु-संतों की बराबरी करना सरल नहीं है, जो अपना घर-बार छोड़कर संन्यास ग्रहण करते हैं, पैदल चलते हैं, निस्पृह जीवनयापन करते हैं, निर्धारित समय सीमित सात्विक भोजन ही ग्रहण करते हैं, कंचन कामिनी के वे परित्यागी होते हैं, केशलुंचन करवाते हैं, अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह के रूप में पांच महाव्रतों का परिपालन करते हैं और प्रसन्नता पूर्वक भूख, प्यास, गर्मी, सर्दी आदि कष्ट सहते हैं। 

कोई माने या न माने लेकिन यह सच है कि यह पृथ्वी भोग-विलास, हिंसा और पाप के बलबूते पर नहीं, बल्कि योग साधक साधु-संतों के पुण्यप्रताप से टिकी है। भारतीय संस्कृति और साहित्य का यही उद्घोष है। इसी सात्विक साधक परंपरा का निर्वाह करते हुए हम गदग और उसके आसपास के क्षेत्रों में धर्म और मानवता का संदेश देने आए हैं।

नगर प्रवेश से पूर्व सीमा पर श्रमणगण ने ध्यान और मंत्रजाप किए और सबकी सुख-शांति और भलाई की कामना की गई। फिर शुभ मुहूर्त में नगर प्रवेश का विधान किया गया। कन्याओं और महिलाओं ने मंगल कलश और स्वस्तिक रचना कर श्रमणगण का स्वागत किया। 

इस अवसर पर जैन संघ के अध्यक्ष पंकज बाफना, दलीचंद कवाड़, हरीश शाह सहित अनेक  संस्थाओं के पदाधिकारी उपस्थित थे।

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