घुसपैठियों के बुलंद हौसले

अवैध बांग्लादेशियों का बोझ भारत क्यों उठाए?

घुसपैठियों के बुलंद हौसले

एक-एक घुसपैठिए को बाहर निकालना होगा

एक बांग्लादेशी नागरिक के निर्वासन के कुछ ही दिनों बाद दिल्ली आकर उसी इलाके में रहने की घटना से पता चलता है कि घुसपैठियों के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं। उन्हें भारत में किसी का डर ही नहीं है! उक्त बांग्लादेशी ट्रांसजेंडर एवं भिखारी पहली बार 15 मई को पकड़ी गई थी और स्वदेश भेज दी गई थी। वह 30 जून को दोबारा दिल्ली में पकड़ी गई। राष्ट्रीय राजधानी से देश चलता है, वहां शीर्ष नेता और मंत्री रहते हैं, हमारी तमाम बड़ी एजेंसियों के मुख्यालय हैं, दिल्ली पुलिस है ... इन सबके बावजूद बांग्लादेशी घुसपैठिए धड़ल्ले से घूम रहे हैं! अधिकारी कर क्या रहे हैं? बांग्लादेशी ट्रांसजेंडर के साथ 300 अवैध प्रवासी भी निर्वासित किए गए थे। क्या उनमें से किसी ने वापस आने की कोशिश नहीं की होगी? अगर कोई शख्स यहां से निकाले जाने के बाद दोबारा अवैध ढंग से देश में प्रवेश करता है और उसी जगह पर रहने के लिए आ जाता है तो इसका साफ मतलब है कि उसने सोच रखा है कि मेरे खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं होने वाली है। देश की आबादी पहले ही 140 करोड़ को पार कर चुकी है। अब इन अवैध बांग्लादेशियों का बोझ भी भारत उठाए! यह कड़वी हकीकत है कि सरकारी तंत्र के ढीले रवैए की वजह से बांग्लादेशी और तमाम अवैध प्रवासी यहां मौज उड़ा रहे हैं, वरना मज़ाल है कि कोई निकाले जाने के बाद वापस वहीं आकर डेरा डाल ले। इससे यह भी पता चलता है कि भारत सरकार जिन तौर-तरीकों पर अमल करते हुए इन अवैध प्रवासियों को निकालती है, वे कारगर साबित नहीं हो रहे हैं। अवैध प्रवासियों को बाहर कर देना ही काफी नहीं होता। उन्हें सबक भी मिलना चाहिए कि हिंदुस्तान की धरती पर दोबारा गलत तरीके से कदम रखा तो नतीजा अच्छा नहीं होगा।

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कभी सोचा है कि बांग्लादेश, म्यांमार जैसे देशों से अवैध प्रवासी हमारे यहां ही क्यों आते हैं? ये चीन क्यों नहीं जाते? यहां ऐसा क्या आकर्षण है कि ये लोग अपना घर-द्वार छोड़कर भारत के किसी अनजान इलाके में रहने को तैयार हो जाते हैं? इसकी सबसे बड़ी वजह है- ये यहां आकर स्वच्छंद विचरण कर सकते हैं, जहां मर्जी हो झुग्गी बनाकर रह सकते हैं। इनका कोई रिकॉर्ड नहीं होता, इसलिए कई लोग अपराध करने लगते हैं। अगर फेरी लगाते या भीख मांगते हैं, तो बांग्लादेशी मुद्रा में अच्छी-खासी कमाई हो जाती है। ये मानकर चलते हैं कि भीड़ में घुलमिल जाएंगे, लिहाजा पकड़े जाने की आशंका कम होगी। भारत में इन्हें फर्जी आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र बनाकर देने वालों की कमी नहीं है। दो-चार साल रहने के बाद कुछ राजनीतिक दल इन्हें अपना वोटबैंक बनाने की कोशिशों में जुट जाते हैं। सरकारी दस्तावेजों में नाम जुड़वाने के बाद मुफ्त राशन, मुफ्त चिकित्सा और दूसरी सुविधाएं मिलने लगती हैं। अगर कभी पकड़े गए तो इनके 'अधिकारों की रक्षा' के लिए कुछ मशहूर वकील अदालत का दरवाजा खटखटा देते हैं। इतनी ज्यादा 'खातिरदारी' होगी तो घुसपैठिए क्यों नहीं आएंगे? जब ट्रंप ने अमेरिका से अवैध प्रवासियों को निकालना शुरू किया था तो सरकारी तौर-तरीकों को लेकर बहुत बहस छिड़ी थी, मानवाधिकार संगठनों ने खूब निंदा की थी। भारत सरकार उतना सख्त रुख न दिखाए, लेकिन कुछ ऐसे तरीके तो अपनाए, जिनसे घुसपैठिए हतोत्साहित हों। यह कोई असंभव काम नहीं है। केंद्र सरकार को दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाते हुए एक-एक घुसपैठिए को बाहर निकालने का इंतजाम करना होगा। साथ ही, यह सुनिश्चित करना होगा कि वे दोबारा यहां अवैध तरीके से आने का दुस्साहस न करें।

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