सौंदर्य उपचार, सेहत से खिलवाड़
ईश्वर ने हमें जैसा बनाया है, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए

हमेशा जवान रहने का मोह क्यों?
'सौंदर्य वृद्धि' के नाम पर सेहत से खिलवाड़ के प्रयोग खतरनाक साबित हो रहे हैं। हाल में एक मशहूर अभिनेत्री की मौत के बाद ऐसी दवाइयों के सेवन को लेकर बहस होनी जरूरी है, जिनके लिए कहा जाता है कि ये बढ़ती उम्र की रफ्तार धीमी कर देती हैं, जिससे व्यक्ति ज्यादा जवान और ज्यादा सुंदर दिखने लगता है। सिनेमा जगत से जुड़े कई लोगों के बारे में ऐसी खबरें आ चुकी हैं कि उन्होंने विदेश जाकर सौंदर्य उपचार कराया था। उनकी देखादेखी भारत में भी कई लोग चेहरे की चमक बढ़ाने, ज्यादा जवान नजर आने, झुर्रियां मिटाने और ज्यादा आकर्षक दिखने के लिए खास तरह की दवाइयां ले रहे हैं। ऐसे भी मामले सुर्खियों में रहे हैं, जब किसी व्यक्ति ने सिर पर बाल लगवाए तो उसकी तबीयत बिगड़ गई। कुछ लोगों की मौत तक हो चुकी है। सवाल है- शारीरिक सुंदरता को बढ़ाने की ऐसी चाहत क्यों? हमेशा जवान रहने का मोह क्यों? आज सोशल मीडिया पर ऐसी सामग्री की भरमार देखने को मिलती है, जिसमें दावा किया जाता है कि फलां चीज लगाने या उपचार कराने से आप बहुत सुंदर दिखने लगेंगे! क्या ऐसे दावों से कृत्रिम सौंदर्य का भ्रम पैदा नहीं होता? लोग जिस चमक-दमक के पीछे भाग रहे हैं, उसके खतरों के बारे में क्यों नहीं जानना चाहते? अगर किसी उपचार के जरिए ज्यादा सुंदर, ज्यादा आकर्षक, ज्यादा जवान हो भी गए तो कितने वर्षों तक रहेंगे? उम्र बढ़ने के साथ शारीरिक बदलाव आना स्वाभाविक है। इसे रोकने की कोशिश करना प्रकृति के काम में हस्तक्षेप करना है। हां, शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहने की कोशिश जरूर करनी चाहिए। अगर कोई स्वास्थ्य समस्या हो तो चिकित्सक से उपचार कराना चाहिए। हमारे महान ऋषियों-मुनियों ने तो आयुर्वेद में ऐसे कई उपायों का उल्लेख किया है, जिन पर अमल करने से मनुष्य उत्तम स्वास्थ्य एवं दीर्घायु प्राप्त कर सकता है।
जहां तक ऐसे उपचारों का सवाल है, जो 'बढ़ती उम्र रोकने या धीमी करने' का दावा करते हैं, तो उनके साथ कई गंभीर जोखिम भी जुड़े होते हैं। युवाओं में बोटॉक्स, फिलर्स और लिपोसक्शन जैसे उपचारों को अपनाने की होड़ बढ़ती जा रही है। क्या बाहरी चमक-दमक ही असली सौंदर्य है? इतना ध्यान वैचारिक सौंदर्य की ओर क्यों नहीं दिया जाता? पिछले कुछ दशकों में समाज ने सुंदरता के जो कृत्रिम मानक बना लिए हैं, हमें उनसे बाहर निकलना होगा। क्या वजह है कि ब्याह-शादी के विज्ञापनों में एक खास रंग को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है? हमारे बाजार ऐसे सौंदर्य प्रसाधनों से भरे पड़े हैं, जिनकी कंपनियां वर्षों से दावा कर रही हैं कि ये त्वचा के रंग को बदलकर ऐसा बना देंगे, जिसे बहुत सुंदर माना जाता है! क्या ऐसी सोच उन लोगों के प्रति भेदभाव को बढ़ावा नहीं देती, जिनकी त्वचा का रंग वैसा नहीं है? सोशल मीडिया पर दिखाए जा रहे ‘परफेक्ट’ चेहरों और 'सुंदर' शरीरों का अनुकरण करने के बजाय उत्तम स्वास्थ्य और प्रकृति के अनुकूल जीवन को प्राथमिकता देनी चाहिए। जोखिम भरे सौंदर्य उपचार क्षणिक खुशी एवं संतुष्टि जरूर दे सकते हैं। इनके बल पर कोई व्यक्ति कब तक जवान रहेगा? एक दिन ये उपचार भी किसी काम नहीं आएंगे। ईश्वर ने जो जीवन दिया है, वह अनमोल है। उसे किसी खतरनाक सौंदर्य उपचार के नाम पर संकट में डाल देना कहां की अक्लमंदी है? लोगों को मैं कितना सुंदर दिखूंगा/गी, मैं कब तक ज्यादा जवान दिखूंगा/गी - जैसे सवाल हमारे मन में अनावश्यक चिंता पैदा करते हैं। इनमें उलझने के बजाय ईश्वर ने हमें जैसा बनाया है, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए।