आतंकी हमलों की गंभीरता
आतंकी हमलों की गंभीरता
पिछले सप्ताह शनिवार से शुरू हुए आतंकी हमले सोमवार तक जारी रहे। सेना व पाकी दहशतगर्दों की मुठभे़ड में शहीद हुए पांच जवानों का अंतिम संस्कार भी नहीं हो पाया था कि सोमवार को फिर आतंकवादियों ने सुरक्षा बलों के एक अन्य शिविर पर हमला कर दिया। हालांकि इस हमले को ड्यूटी पर तैनात संतरी की चौकसी ने विफल कर दिया पर आतंकवादियों की फायरिंग में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल का एक जवान शहीद हो गया। शनिवार को आतंकवादियों ने जम्मू-पठानकोट मार्ग पर आतंकवादियों ने सुंजवान में स्थित एक सैनिक शिविर पर त़डके सुबह हमला कर दिया था। हमले में एक जूनियर कमीशन अधिकारी सहित पांच जवान शहीद हुए थे। वहीं, तीन आतंकियों को मार गिराया गया। सेना को तीस घंटे तक छिपे आतंकियों की तलाश करनी प़डी। हमले में शामिल कुछ आतंकी रिहायशी ठिकानों में छुप गए थे। इस हमले के पीछे जैश-ए-मोहम्मद (अफजल गुरू स्क्वाइड) का हाथ बताया जाता है। आतंकी हमले का मास्टर माइंड रउफ असगर है। वह जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर का भाई है। नौ फरवरी को आतंकी अफजल गुरु की बरसी थी और इसी मौके को हमले के लिए तय किया गया था। अफजल गुरु को सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार फांसी दी गई थी। उसकी बरसी ९ को थी, जबकि एक अन्य मार गिराए गए आतंकी मकबूल बट की बरसी ११ फरवरी को थी। खुफिया एजेंसियों ने स्पष्ट इनपुट दिया था कि बरसी के दिनों आतंकी कोई हेक़डीबाजी कर सकते हैं्। सभी सैन्य ठिकानों पर चौकसी रखी जानी चाहिए थी, लेकिन यहां चूक बरती गई। बहरहाल, २०१४ से लगातार घाटी के शैन्य शिविरों को निशाना बनाया जा रहा है। उ़डी के सैन्य शिविर पर हुए हमले के बाद यह दूसरा ब़डा हमला है। पठानकोट वायुसेना अड्डे पर भी इसी तरह आतंकियों ने घुसकर हमला किया था। उ़डी हमले के बाद भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तानी सीमा के भीतर चल रहे आतंकी प्रशिक्षण शिविरों को तबाह कर दिया था। उस हमले के बाद सरकार ने सुरक्षा चौकसी ब़ढाने के लिए सैन्य खर्च में ब़ढोतरी का ऐलान किया था। सीमा पर बा़डबंदी और निगरानी को चौकस बनाने पर बल दिया गया था। इसके बावजूद अगर सीमा पार से आतंकी भारतीय सीमा में घुसकर अपनी साजिशों को अंजाम देने में कामयाब हो रहे हैं, तो खुफिया एजेंसियों और सेना के बीच तालमेल बेहतर बनाने की जरूरत है। अगर आतंकी सैन्य शिविरों में घुसकर हमला करने की हिम्मत जुटा पा रहे हैं तो इससे यही जाहिर होता है कि उनके सूचना तंत्र को भेद पाना हमारी खुफिया एजेंसियों के लिए आसान नहीं है। इन दोनों मोर्चों पर गंभीर विचार की जरूरत है।
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