डिजिटल इंडिया: एक क्रांतिकारी पहल
'डिजिटल इंडिया' ने जटिलताओं को दूर किया है

यह पहल किसी जन-आंदोलन से कम नहीं है
पिछले एक दशक में 'डिजिटल इंडिया' पहल ने देशवासियों के जीवन को आसान बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत, जो अत्यंत विविधतापूर्ण देश है, में इस पहल को बहुत संदेह की दृष्टि से देखा गया था। कुछ 'बुद्धिजीवी' तो यह दावा करते थे कि लोगों के पास अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए संसाधन नहीं हैं, लिहाजा वे डिजिटल तौर-तरीकों से दूर ही रहेंगे। हालांकि देशवासियों ने उन्हें पूरी तरह गलत साबित कर दिया। आज डिजिटल सेवाओं का बहुत विस्तार हो चुका है। एक दशक पहले लोगों को अपनी कई जरूरतों के लिए दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते थे। 'डिजिटल इंडिया' ने उनकी जटिलताओं को दूर किया है। याद करें, वर्ष 2014 और उससे पहले बिजली का बिल चुकाने के लिए कितनी लंबी कतारें लगती थीं? बैंक से संबंधित किसी काम के लिए जाते थे तो कितना समय लगता था? रसोई गैस सिलेंडर लेने जाते तो कितने समय बाद बारी आती थी? सिनेमा, बस और ट्रेन की टिकटें लेने का अनुभव कैसा होता था? कई बार तो उन कतारों में धक्का-मुक्की, बहस आदि की वजह से झगड़े तक हो जाते थे। अब डिजिटल इंडिया' की वजह से विभिन्न सेवाएं तथा सुविधाएं मोबाइल फोन पर कुछ ही सेकंडों में आसानी से मिल जाती हैं। यह तो एक शुरुआत है। देश में डिजिटलीकरण का जिस तरह विस्तार होता जा रहा है, वह अगले दशक में बहुत बड़े बदलाव लेकर आएगा। उस समय किशोरों और नौजवानों को आश्चर्य होगा कि उनके माता-पिता और घर के बड़े सदस्यों को कभी कतारों में लगना होता था,
दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते थे! मोदी सरकार को इस बात का श्रेय मिलना चाहिए, जिसने तमाम आलोचनाओं के बावजूद डिजिटलीकरण के जरिए सेवाओं तथा सुविधाओं का सरलीकरण जारी रखा। 'डिजिटल इंडिया' पहल की वजह से समय, संसाधन और ऊर्जा की बचत हुई है। पहले, बैंकिंग सेवाएं एक खास वर्ग तक सीमित थीं। ग्रामीण आबादी इससे वंचित थी। खाता खुलवाने से लेकर छोटी-छोटी सेवाओं के लिए लंबी कागजी प्रक्रिया होती थी। उस व्यवस्था ने कई बिचौलियों को जन्म दिया, जो जरूरतमंद लोगों से धन ऐंठते थे। सरकारें कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि वाले परिवारों के कल्याण के लिए जो योजनाएं चलाती थीं, उनका बहुत बड़ा हिस्सा बिचौलिए और भ्रष्टाचारी खा जाते थे। एक पूर्व प्रधानमंत्री ने तो स्वीकार किया था कि सरकार 100 पैसे भेजती थी तो उसमें से 85 पैसे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते थे। अगर आज सरकार दूर-दराज के इलाके में रहने वाले किसी किसान के खाते में रुपए भेजती है तो उसे पूरी रकम मिलती है। एक पैसा भी कम नहीं होता। क्या यह देश की उपलब्धि नहीं है? क्या इससे भ्रष्टाचारियों पर लगाम नहीं लगी है? वास्तव में 'डिजिटल इंडिया' पहल किसी जन-आंदोलन से कम नहीं है। इसने परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया है। इसने मोबाइल फोन को कई जरूरतों का एक ठिकाना बना दिया है। भारत ने सबसे बड़ा कीर्तिमान तो डिजिटल लेनदेन के क्षेत्र में बनाया है। यूपीआई जैसे प्लेटफॉर्म की सफलता से अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर, जापान जैसे देश हैरान हैं। एक वर्ष में 100 अरब से ज्यादा लेनदेन को संभालना कोई मामूली बात नहीं है। आधे ‘रियल टाइम’ डिजिटल लेनदेन का भारत में होना हमारे लिए गर्व का विषय है। जो देश तकनीक और संसाधनों के मामले में बहुत संपन्न माने जाते हैं, वे हमारे आस-पास भी नहीं हैं। आधार, डिजिलॉकर, कोविन और फास्टैग को दुनियाभर से सराहना मिल रही है। इंटरनेट ने हुनरमंद लोगों के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। आज वे गांवों में रहकर लाखों रुपए कमा रहे हैं। 'डिजिटल इंडिया' देशवासियों के सपनों को हकीकत में बदलने का संकल्प साबित हो रहा है।