कब रुकेगा यह सिलसिला?

चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर भगदड़ मचने से रंग में भंग पड़ गया

कब रुकेगा यह सिलसिला?

भविष्य में ऐसी घटनाएं कहीं न हों, इसके लिए पुख्ता इंतजाम होने चाहिएं

बेंगलूरु में चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर भगदड़ मचने से रंग में भंग पड़ गया। लोग आरसीबी की जीत का जश्न मनाने आए थे। किसने सोचा था कि यह मातम में बदल जाएगा! दर्जनभर लोग काल का ग्रास बन गए। अगर समय रहते भीड़ प्रबंधन की ओर ध्यान दिया होता तो इस हादसे को टाला जा सकता था। अब आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। मुआवजे की घोषणा हो चुकी है। सोशल मीडिया पर संवेदनाएं व्यक्त की जा रही हैं। यह सब एक रस्म-अदायगी की तरह नहीं होना चाहिए। भविष्य में ऐसी घटनाएं कहीं न हों, इसके लिए पुख्ता इंतजाम होने चाहिएं। हमें स्वीकार करना होगा कि देश में भीड़ प्रबंधन के मामले में ढेरों खामियां हैं। कहीं व्यवस्थाओं में कमियां रह जाती हैं, कहीं जनता की ओर से अनुशासन का अभाव रह जाता है। कहीं ये दोनों ही बिंदु मिलकर अपने पीछे अप्रिय यादें छोड़ जाते हैं। इस साल तिरुमला स्थित भगवान वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में भगदड़ मच गई थी। पिछले साल जुलाई में उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुए 'सत्संग' में मची भगदड़ के कारण 121 लोगों की मौत हो गई थी और कम से कम 150 लोग घायल हो गए थे। देश में ऐसी छोटी-बड़ी कई घटनाएं हर साल होती हैं, जिन पर हंगामा तो खूब मचता है, लेकिन यह सिलसिला नहीं रुकता। इसे रोकना होगा। ऐसे ज्यादातर मामलों में यह देखने में आता है कि जिस जगह भगदड़ मचती है, वहां उसकी क्षमता से ज्यादा लोग होते हैं। इससे अव्यवस्था फैलती है, अनुशासन भंग होता है। सुरक्षाकर्मी मौजूद होते हैं, लेकिन वे भारी हुजूम को नियंत्रित नहीं कर पाते। उस दौरान एक क्षण ऐसा आता है, जब मामला हाथों से निकल जाता है।

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जाहिर है कि क्षमता से ज्यादा भीड़ को संभालना आसान नहीं होता। अगर भविष्य में भगदड़ जैसी घटनाओं को होने से रोकना है तो सबसे पहले इस नियम का सख्ती से पालन करवाया जाए कि जगह की क्षमता से ज्यादा लोग इकट्ठे न हों। चाहे इसके लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया जाए, ड्रोन्स के जरिए निगरानी की जाए या ज्यादा सुरक्षाकर्मी तैनात करें। चिन्नास्वामी स्टेडियम की क्षमता 35,000 लोगों की बताई गई है, लेकिन दो लाख से ज्यादा लोग उमड़ आए थे। क्या प्रशासन इस बात का अंदाजा नहीं लगा पाया? भारत में क्रिकेट के प्रति लोगों का उत्साह किसी से छिपा हुआ नहीं है। जब बड़े मैच होते हैं तो लोग अपने कार्यस्थलों पर भी ताजा परिणाम जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। प्राय: आयोजकों को इस बात का मोह होता है कि जितने ज्यादा लोग जुटेंगे, कार्यक्रम की उतनी ज्यादा चर्चा होगी और वह उतना ही सफल माना जाएगा। उन्हें प्रशासन के साथ मिलकर यह भी देखना चाहिए कि इतनी भीड़ को संभाल भी सकेंगे या नहीं? आज भीड़ इकट्ठी करना कोई मुश्किल काम नहीं है। डेढ़-दो दशक पहले किसी कार्यक्रम में भीड़ जुटाने के लिए पर्चे बांटने होते थे, घर-घर जाकर निमंत्रण देना होता था। आज वॉट्सऐप ग्रुप में एक पोस्ट डालने की देर है, वह संदेश तुरंत उन लोगों के पास पहुंच जाता है। उसे खूब साझा भी किया जाता है। पूर्व में ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं, जब किसी ने अपनी शादी का निमंत्रण पत्र सोशल मीडिया पर पोस्ट किया तो हजारों मेहमान आ गए। किसी यूट्यूबर ने अपने वीडियो संदेश में कह दिया कि मैं फलां दिन वहां आ रहा हूं। उधर निर्धारित समय से पहले ही इतनी भीड़ जुट गई कि हालात को संभालने में प्रशासन के पसीने छूट गए। इन घटनाओं से यह सबक लेना चाहिए कि आयोजन स्थल पर बाकी सब इंतजाम जरूर हों, लेकिन उतनी ही भीड़ जुटाने की अनुमति हो, जितनी संभाल सकें। कोशिश यह की जाए कि संबंधित जगह की क्षमता से कुछ कम भीड़ हो। जीवन अनमोल है। उसकी भरपाई किसी चीज से नहीं की जा सकती।

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