कौन था आईएसआई का ब्रिगेडियर 'बिल्ला', जिसे बुढ़ापे में बेघर होना पड़ा?
यह कहानी बताती है कि बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है

Photo: ISPR
नई दिल्ली/दक्षिण भारत। पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही सत्ता के गलियारों में शह-मात के खेल खेलती रही है। यह एजेंसी धमकियां, अपहरण, हत्याओं से लेकर तख्ता-पलट जैसी गतिविधियों में भी शामिल रही है। आईएसआई के काले कारनामों की फेहरिस्त बहुत लंबी है, जिसके बूते इसके अधिकारियों की बड़ी दहशत रहती है। हालांकि वक्त सबका हिसाब लेता है। आज हम आपको आईएसआई के एक ऐसे ब्रिगेडियर के बारे में बताएंगे, जिसकी अपने ज़माने में बहुत तूती बोलती थी, लेकिन जब वक्त और निज़ाम बदले तो उसे बेघर होना पड़ा।
इस शख्स का नाम है- ब्रिगेडियर इम्तियाज अहमद। इसे अपनी चालाकी और बिल्ली जैसी आंखों की वजह से नाम मिला- ब्रिगेडियर बिल्ला! चार जून, 1935 को अविभाजित भारत में पंजाब के गुजरांवाला में जन्मे बिल्ला के परिवार का ताल्लुक कश्मीर से था। वह मैट्रिकुलेशन के बाद पाकिस्तानी फौज में भर्ती हुआ और काकुल स्थित पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी से प्रशिक्षण लेने लगा। इसके बाद रिसालपुर में मिलिट्री कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग में पढ़ाई करने गया।उस कॉलेज से बिल्ला ने सिविल इंजीनियरिंग में बीएस की डिग्री ली और साल 1960 में पाकिस्तान आर्मी कोर ऑफ इंजीनियर्स में सेकंड लेफ्टिनेंट बनकर आया। इसके बाद उसकी चालाकी और खुराफाती तिकड़मों का ऐसा सफर शुरू हुआ, जिसने पाकिस्तान के भविष्य को ही बदल दिया।
बिल्ला ने 1965 और 1971 के युद्धों में कॉम्बैट इंजीनियरिंग संरचनाओं के निर्माण से जुड़े काम भी किए। इसके बाद उसे क्वेटा में कमांड एंड स्टाफ कॉलेज में कोर्स करने भेज दिया गया। कहा जाता है कि बिल्ला का मन पढ़ाई से ज्यादा 'दूसरे कामों' में लगता था। उसकी हरकतें देखकर सीनियर अधिकारियों ने उसे आईएसआई में भेज दिया। यहां वह नेताओं और उनसे जुड़े लोगों के फोन टैप करने में बड़ी दिलचस्पी लेता था। उसे दूसरों के राज़ जानने का बहुत शौक था।
साल 1979 में, बिल्ला को एक बड़ी जिम्मेदारी मिली। उसे कराची परमाणु ऊर्जा संयंत्र की सुरक्षा को पुख्ता बनाने के लिए तैनात किया गया। वहां उसका काम था- संयंत्र में काम करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों का बैकग्राउंड चेक करना और तकनीशियनों को गुप्त सुरक्षा देना।
कहा जाता है कि बिल्ला को उसी साल पता चला कि सीआईए का एक जासूस इस संयंत्र को नुकसान पहुंचाना चाहता है। आखिरकार उस 'जासूस' को पकड़ लिया गया और पाक-अमेरिका रिश्तों में तल्खी आ गई। कुछ ऐसी मीडिया रिपोर्ट्स भी आई थीं, जिनमें दावा किया गया कि वह शख्स पीपीपी का सदस्य था, न कि ऊर्जा संयंत्र के लिए काम कर रहा था।
बिल्ला को साल 1980 में लेफ्टिनेंट कर्नल बनाकर जॉइंट काउंटर इंटेलीजेंस ब्यूरो भेज दिया गया था। यहां आकर उसने सिंध में कम्युनिस्ट विरोधी अभियान चलाए। उसने कई नेताओं की आवाज को निर्ममता से कुचला। उस दौरान सिंध से कई लोगों को रातोंरात गायब किया गया, जिनका आज तक सुराग नहीं लगा है।
बिल्ला ने एक विमान अपहरण कांड के बाद उग्रवादी समूह अल-जुल्फिकार पर शिकंजा कसा और बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व में लोकतंत्र की बहाली के लिए चलाए जा रहे आंदोलन एमआरडी में अपने जासूस छोड़े। उस पर कई पत्रकारों को धमकाने और उन्हें गलत मुकदमों में फंसाने के भी आरोप लगे।
साल 1988 में ब्रिगेडियर बिल्ला को इस्लामाबाद में आईएसआई की पॉलिटिकल विंग में डायरेक्टर का ओहदा देकर तैनात किया गया। इसके बाद तो उसने अपने विरोधियों को और ज्यादा ताकत से कुचलना शुरू किया। खासकर पीपीपी को लेकर उसके रवैए में खूब सख्ती आई। वह जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को परवान चढ़ाने में भी शरीक रहा।
साल 1989 में, ब्रिगेडियर बिल्ला और मेजर आमिर खान का एक वीडियो सामने आया, जिसमें वह प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो को हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात कह रहा था। उसकी चाल थी कि पीपीपी के सांसदों को लालच देकर या धमकाकर तोड़ा जाए और नवाज शरीफ की सरकार बनाई जाए। बिल्ला का वह प्लान चौपट हो गया और उस पर जांच बैठा दी गई।
ब्रिगेडियर बिल्ला और मेजर आमिर खान, दोनों की मिलिट्री कमीशन से छुट्टी हो गई। हालांकि यह पता नहीं चला कि वीडियो बनाकर बिल्ला का भंडाफोड़ किसने किया था! साल 1990 में आम चुनाव के बाद जब नवाज शरीफ सत्ता में आए तो उन्होंने बिल्ला को फिर से खुफिया ब्यूरो का डीजी नियुक्त कर दिया। अब वह और ज्यादा खूंखार होकर अपने विरोधियों पर टूट पड़ा। उसने साल 1992 में कराची को असामाजिक तत्त्वों से निजात दिलाने के बहाने 'ऑपरेशन क्लीन-अप' चलाया और मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) के सदस्यों को निशाना बनाया। उस दौरान कराची में गोलीबारी आम बात थी और बोरियों में लाशें मिला करती थीं। माना जाता है कि इसके पीछे बिल्ला का हाथ था।
अब बिल्ला के अच्छे दिन खत्म होने वाले थे। नवाज शरीफ के इस्तीफे के बाद उसने भी 19 अप्रैल, 1992 को खुफिया ब्यूरो के डीजी के पद से इस्तीफा दे दिया था। पीपीपी समेत कई विरोधियों ने उसके खिलाफ कार्रवाई की मांग तेज कर दी थी। उसने नेटवर्क टेलीविज़न मार्केटिंग की बागडोर भी संभाली, लेकिन तब तक उसके हाथों से ताकत निकल चुकी थी।
साल 1994 में प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने बिल्ला पर शिकंजा कसना शुरू किया। उसके खिलाफ वारंट जारी हुए और पूछताछ होने लगी। साल 1999 में एनएबी ने उससे आईबी का डायरेक्टर रहते बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार और पैसों की हेराफेरी के मामले में पूछताछ शुरू की। वह साल 2001 में दोषी पाया गया। उसे आठ साल की सजा हुई।
बिल्ला 21 सितंबर, 2010 को एक बार फिर कानून के लपेटे में आया, जब उसे तेल एवं गैस विकास कंपनी (ओजीडीसी) के पूर्व अध्यक्ष अदनान ख्वाजा के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। उसे अडियाला जेल भेजा गया।
बता दें कि साल 2009 में हुमायूं अख्तर खान नामक शख्स के इस आरोप से सनसनी फैल गई थी कि बिल्ला ने 17 अगस्त, 1988 को उसके पिता जनरल अख्तर अब्दुर रहमान से इस बात के लिए बहुत आग्रह किया था कि वे बहावलपुर से उड़ान भरने वाले सी-130 विमान में बैठें। वह विमान हादसे का शिकार हुआ था और जनरल अख्तर परलोक सिधार गए थे। विमान में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति और फौजी तानाशाह जनरल ज़िया-उल हक़ की भी मौत हो गई थी।
जेल से छूटने के बाद बिल्ला शक्तिहीन हो चुका था। अब न तो पाकिस्तान सरकार ने उसे कोई अहमियत दी और न फौज को उसकी जरूरत थी। वह किसी तरह सुर्खियों में रहना चाहता था। इसके लिए टीवी चैनलों पर होने वाली डिबेट में शामिल होने लगा। वहां अपने खुफिया कारनामों की डींगें हांकने लगा।
बिल्ला जुलाई 2024 में एक बार फिर सुर्खियों में आया, जब उसके बेटे ने उसे घर से निकाल दिया था। उसका वीडियो भी वायरल हुआ था, जिस पर लोगों को हैरानी हुई कि कभी पाकिस्तान के बेहद ताकतवर फौजी अफसर रहे बिल्ला के ये दिन कैसे आ गए! पता चला कि बाप-बेटे के बीच जायदाद का झगड़ा था, जो काफी बढ़ गया था। बेटे ने बिल्ला को धक्के मारकर घर से बाहर निकाला और पुलिस बुलाकर उसे गिरफ्तार करने की मांग कर रहा था। वीडियो में बिल्ला बहुत कमजोर नजर आ रहा था। उसका बेटा पुलिस से बार-बार कह रहा था, 'इस ... को उठाकर बाहर फेंक दो।' हालांकि पुलिस वाले दोनों के बीच समझाइश करते नजर आए थे।
उस घटना के बाद बिल्ला कहीं दिखाई नहीं दिया। पाकिस्तानी मीडिया ने भी उसके बारे में चुप्पी साध ली। बिल्ला कैंसर का मरीज है। उसके अर्श से फर्श पर गिरने की कहानी बताती है कि बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है।