प्रलोभन और धर्मांतरण: समाधान क्या है?

यह एक गंभीर समस्या है

प्रलोभन और धर्मांतरण: समाधान क्या है?

भारत में सदियों से धर्मांतरण हो रहा है

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने प्रलोभन के जरिए धर्मांतरण कराए जाने की घटनाओं पर जो चिंता जताई है, वह स्वाभाविक है। यह एक गंभीर समस्या है, जिसकी ओर हमें ध्यान देने की जरूरत है। भारत में सदियों से प्रलोभन के जरिए धर्मांतरण हो रहा है। इसके भयावह नतीजे देखे गए हैं। पीड़ित, वंचित और जरूरतमंद लोग ऐसे गिरोहों के जाल में आसानी से फंस जाते हैं, जिन्होंने धर्मांतरण को धंधा बना रखा है। यूं तो भारत में सबको अपने धर्म का पालन और प्रचार करने की स्वतंत्रता है। अगर कोई व्यक्ति स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करना चाहता है तो कर सकता है। समस्या तब पैदा होती है, जब किसी को बहला-फुसलाकर, लालच देकर, अनिष्ट का भय दिखाकर, दूसरों के प्रति मन में घृणा भरकर धर्मांतरण करवा दिया जाए। इसमें विदेशी संगठन लिप्त पाए गए हैं, जो इस तरह काम करते हैं, जिससे जल्द ही न तो उनके असल मकसद का पता चलता है और न ही सरकारें उनके खिलाफ तुरंत कार्रवाई कर पाती हैं। प्राय: ऐसे संगठन दलील देते हैं कि 'हम तो भारत के जरूरतमंद लोगों की मदद कर रहे हैं ... अगर वे हमारे कार्यों से प्रभावित होकर धर्मांतरण कर लेते हैं तो उन्हें इसकी स्वतंत्रता होनी चाहिए!' दो दशक पहले कुछ विदेशी रेडियो स्टेशन बहुत योजनाबद्ध ढंग से धर्मांतरण की जमीन तैयार कर रहे थे। यूरोप के एक देश से चलने वाला रेडियो स्टेशन, जो बाद में सोशल मीडिया पर स्थानांतरित हो गया, मुख्यत: पंजाब को केंद्र में रखकर खूब कार्यक्रम चलाता था। वह पंजाबी गानों के साथ हिंदी में 'प्रचार' करता था। शाम को जब सब लोग घर में होते हैं, तब उसकी सभा शुरू होती और देर रात तक चलती। अगले दिन सुबह भी उस पर गीत आते रहते थे। उसमें दावा किया जाता कि हमारी शरण में आने से फलां व्यक्ति बीमारी से ठीक हो गया, किसी को कनाडा का वीजा मिल गया, किसी को जीवनसाथी मिल गया!

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उस रेडियो स्टेशन समेत ऐसी विचारधारा वाले अन्य संगठन मुफ्त किताबें उपलब्ध करा देते हैं। प्राय: किशोर और नौजवान ऐसी चीजों की ओर जल्दी आकर्षित होते हैं। लंबे अरसे तक इनके प्रभाव में रहने से व्यक्ति की विचारधारा बदल जाती है। उसे अपने पूर्वजों की आस्था और मान्यताओं में खोट नजर आने लगता है। वहीं, जो बातें उसे आकर्षित करती हैं, उनमें सबकुछ अच्छा लगने लगता है। ऐसा भी देखा गया है कि कुछ लोग, जिन्होंने अभी धर्मांतरण तो नहीं किया है, लेकिन उससे काफी हद तक प्रभावित हो चुके हैं, वे अपनी पूर्व आस्था से जुड़े त्योहार मनाना बंद कर देते हैं या उनमें रुचि खत्म हो जाती है। वे अभिवादन के तरीके तक बदल लेते हैं। उनके घरों में विवाद होने लगते हैं। वे कई बार माता-पिता से बहुत तीखी बहस करते हैं, उन्हें गलत ठहराते हैं। प्रलोभन देकर धर्मांतरण कराने में लिप्त संगठनों / व्यक्तियों पर गंभीर आरोप लग चुके हैं। उनके कुछ लोग तो जेल जा चुके हैं। उनके द्वारा चमत्कारी ढंग से बीमारी का इलाज करने संबंधी दावों पर सवाल उठते रहे हैं। वैज्ञानिक ऐसे तरीकों को खारिज करते हैं, लेकिन इन पर विश्वास करने वालों की कमी नहीं है। उन्हें लगता है कि वे इनकी शरण में आकर पूरी तरह स्वस्थ हो जाएंगे। इस अंधविश्वास के जाल में फंसने वाले लोग बाद में किसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या के शिकार हो सकते हैं। अब सवाल है-  समाधान क्या है? जवाब है- सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की हालत सुधारें, समाज में सद्भाव एवं एकता पैदा करें, फिजूलखर्ची और दिखावेबाजी को बंद करें, उस धन से समाज के पीड़ित, वंचित और जरूरतमंद लोगों का उत्थान करें। सरकारों को ऐसे संगठनों / लोगों पर कड़ी नजर रखनी चाहिए, जो प्रलोभन के जरिए धर्मांतरण कराते हैं। जब सख्त कार्रवाई शुरू हो जाएगी तो धर्मांतरण का सिलसिला अपनेआप बंद हो जाएगा।

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