युवा शक्ति और उज्ज्वल भविष्य
अच्छाइयों को बढ़ावा देने के लिए हम क्या कर रहे हैं?

अच्छाइयों को जीवित रखने के लिए समाज के संगठित प्रयास जरूरी हैं
होसपेट के एमजे नगर में युवाओं के लिए आयोजित सेमिनार में आचार्यश्री विमलसागरसूरी ने जो प्रवचन दिए, वे समाज और राष्ट्र के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकते हैं। उनके ये शब्द अत्यंत प्रासंगिक हैं कि 'देश का भविष्य व्यापार-उद्योग, सेना, प्रशासन, जीडीपी की वृद्धि और साधन-सुविधाओं के भरोसे ही उज्ज्वल होगा, ऐसा नहीं है। देश के किशोर और युवा कौनसी राह पर आगे बढ़ते हैं, उस पर भविष्य निर्भर करेगा। किशोर तथा युवा वर्ग राष्ट्र और समाज की रीढ़ हैं।' यह संदेश आज के भौतिकवादी युग में एक गहरी चेतना जगाता है। आज का दौर उपभोग और तात्कालिक सुख की ओर झुका हुआ है। सोशल मीडिया, मनोरंजन और भौतिक सुखों की दौड़ में अच्छाइयों और नैतिक मूल्यों का स्थान धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है। मनुष्य को बुराइयां जल्दी प्रभावित कर रही हैं। अच्छाइयों को अपनाने के लिए तो आत्म-नियंत्रण और सतत प्रयासों की आवश्यकता होती है। यह एक कटु सत्य है कि आज बुराइयों का प्रचार-प्रसार अधिक हो रहा है और यह समाज के लिए गंभीर चुनौती बन चुका है। युवा वर्ग, जो ऊर्जा, उत्साह और नवाचार का प्रतीक है, उसे इस चुनौती का सामना करने के लिए तैयार करना होगा। प्रश्न है- अच्छाई को कैसे बढ़ावा दिया जाए? लोग यह तो शिकायत करते हैं कि बुराइयां बढ़ गई हैं। अखबार, टीवी, सिनेमा, सोशल मीडिया ... जहां नजर जाती है, ये ही ज्यादा दिखती हैं। उनका कहना गलत भी नहीं है। अब इसके दूसरे पहलू को देखें। बेशक बुराइयां बढ़ रही हैं, लेकिन अच्छाइयों को बढ़ावा देने के लिए हम क्या कर रहे हैं? जब ज्यादा से ज्यादा लोग अच्छाई के समर्थन में खड़े होंगे, तब ही तो उसकी जड़ मजबूत होगी। अच्छे साहित्य और अच्छे सिनेमा की कमी इसलिए है, क्योंकि उन्हें बहुत कम लोगों का समर्थन मिलता है। जिस दिन लोग अच्छाई को बढ़ावा देने में रुचि लेने लगेंगे, उसका पलड़ा अपनेआप भारी हो जाएगा।
आचार्यश्री का यह कथन कि 'अच्छाइयों को जीवित रखने के लिए समाज के संगठित प्रयास जरूरी हैं', हमें सामूहिक जिम्मेदारी की याद दिलाता है। केवल धन कमाने या उत्सवों में डूबे रहने से न तो व्यक्ति का कल्याण संभव है और न ही समाज का भला हो सकता है। युवाओं को धर्म, नैतिकता और मानवीय मूल्यों के प्रति जागरूक करना आज की बहुत बड़ी आवश्यकता है। क्या हम अपने युवाओं को सही दिशा दे पा रहे हैं? हम उन्हें केवल कमाई और भौतिक सफलता की दौड़ में धकेल रहे हैं या उन्हें एक संतुलित, मूल्य-आधारित जीवन जीने की प्रेरणा भी दे रहे हैं? आचार्यश्री का संदेश स्पष्ट है- युवा वर्ग को न केवल आर्थिक और सामाजिक प्रगति का वाहक बनाना है, बल्कि उसे ऐसी पीढ़ी के रूप में ढालना है, जो अच्छाइयों को संजोए और बुराइयों का डटकर मुकाबला करे। इसके लिए परिवार, समाज और शिक्षण संस्थानों को मिलकर ऐसा माहौल बनाना होगा, जहां युवा न केवल तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण करें, बल्कि नैतिकता, करुणा और आत्म-अनुशासन जैसे गुण भी विकसित करें। आचार्यश्री के प्रवचन हमें यह स्मरण कराते हैं कि राष्ट्र का भविष्य केवल धन-दौलत से उज्ज्वल नहीं हो सकता। भावी पीढ़ी को चरित्रवान भी बनाना होगा। यह संदेश किसी एक समुदाय या वर्ग के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण राष्ट्र एवं मानवता के लिए है। यह हर उस व्यक्ति, परिवार और समाज के लिए प्रासंगिक है, जो एक बेहतर, मूल्य-आधारित और समृद्ध भविष्य की कामना करता है। इस समय अपने युवाओं को वह शक्ति देनी होगी, जो उन्हें न केवल स्वयं का, बल्कि पूरे राष्ट्र का गौरव बढ़ाने में सक्षम बनाए।About The Author
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