योग एवं योग-निद्रा के चमत्कारी प्रभाव से वैज्ञानिक सहमत
आज हर व्यक्ति अत्यधिक तनाव/दबाव एवं अनिद्रा महसूस कर रहा है
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ललित गर्ग
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आज हर व्यक्ति एवं परिवार अपने दैनिक जीवन में अत्यधिक तनाव/दबाव एवं अनिद्रा महसूस कर रहा है| हर आदमी संदेह, अंतर्द्वंद्व और मानसिक उथल-पुथल की जिंदगी जी रहा है| मनुष्य के सम्मुख जीवन का संकट खड़ा है| मानसिक संतुलन अस्त-व्यस्त हो रहा है| मानसिक संतुलन का अर्थ है विभिन्न परिस्थितियों में तालमेल स्थापित करना, जिसका सशक्त एवं प्रभावी माध्यम योग ही है| योग एक ऐसी तकनीक है, एक विज्ञान है जो हमारे शरीर, मन, विचार एवं आत्मा को स्वस्थ करती है| यह हमारे तनाव एवं कुंठा को दूर करती है| जब हम योग करते हैं, श्वासों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, प्राणायाम और कसरत करते हैं तो यह सब हमारे शरीर और मन को भीतर से खुश और प्रफुल्लित रहने के लिये प्रेरित करती है| नये शोध से तथ्य सामने आया है कि नियमित योग व ध्यान करने वाले प्रतिभागियों की नींद को नियंत्रित करने की क्षमता सामान्य प्रतिभागियों से अधिक पायी गई| इस नये वैज्ञानिक शोध में ऐसे कई महत्वपूर्ण खुलासे हुए| निस्संदेह, जिन लोगों को कई तरह के मनोकायिक रोग होते हैं, उनके लिये योग निद्रा रामबाण सिद्ध हो सकती है| यही वजह है कि अमेरिका व आस्ट्रेलिया आदि देशों में व्यावसायिक तनाव कम करने हेतु योग निद्रा पर जोर दिया जाता है| दिल्ली में हुए शोध में योग निद्रा से चेतना के उच्चतम स्तर को हासिल करने के तथ्य को भी स्वीकारा गया| शोधकर्ताओं ने माना कि योग निद्रा के जरिये गहरे अवचेतन मन में दबी कुंठाओं को मानसिक सतह पर लाकर, कालांतर उनसे मुक्ति में मदद मिलती है| जिससे व्यक्ति की सेहत में सुधार होता है| पिछले दिनों कनाडा के ओंटेरियो यूनिवर्सिटी में हुए एक अध्ययन के अनुसार कुंठा और तनाव के लगभग ६४ प्रतिशत मरीजों ने माना कि उन्हें इस बात का अंदाज नहीं था कि उनकी खास बीमारी की वजह अंदर दबा गुस्सा हो सकता है| यह गुस्सा दूसरों की वजह से शुरू होता है और अंततः इसे आप अपने ऊपर निकालने लगते हैं| कुछ मामलों में मरीजों ने अपने आपको नुकसान भी पहुंचाया|
विज्ञान ने यह प्रमाणित कर दिया है- जो व्यक्ति स्वस्थ रहना चाहता है, उसे योग को अपनाना होगा| बार-बार क्रोध करना, चिड़चिड़ापन आना, नींद न आना, मूड का बिगड़ते रहना- ये सारे भाव हमारी समस्याओं से लड़ने की शक्ति को प्रतिहत करते हैं| इनसे ग्रस्त व्यक्ति बहुत जल्दी बीमार पड़ जाता है| हमें अपनी भीतरी योग्यताओं और क्षमताओं को किसी दायरे में बांधने से बचना होगा| ऐसा तब होगा, जब हम योग को अपनी जीवनशैली बनायेंगे| हमारी हजारों साल के योग की विरासत की सार्थकता निर्विवाद है| लेकिन प्रगतिशील कहे जाने वाले एक तबके का तर्क होता है कि योग को विज्ञान की कसौटी पर कसा जाए| इसी के मध्यनजर तरह-तरह के शोध एवं अनुंसधान योग को लेकर हो रहे हैं, अब आईआईटी व एम्स दिल्ली के शोध में यह बात सामने आयी है कि योग से आराम के गहरे अहसास होते हैं| दरअसल, योग निद्रा सोने और जागने के बीच एक सचेतन अवस्था है| जिसका उपयोग योगी ध्यान साधना के लिये करते रहे हैं| योग निद्रा की मानसिक सेहत के लिये उपयोगिता निर्विवाद रही है| शोध के दौरान बनाये गए दो समूहों में से नियमित योग करने वाले समूह के लोगों के मस्तिष्क के पैटर्न के तुलनात्मक अध्ययन से पता चला कि योग निद्रा हमारे मस्तिष्क को कैसे नियंत्रित करती है| योगी बताते हैं कि कुछ मिनटों की योग निद्रा कई घंटे की सामान्य नींद के मुकाबले ज्यादा आराम देने वाली होती है| व्यक्ति धीरे-धीरे योग निद्रा की अवधि बढ़ाकर बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकता है| वहीं यह हमारे ध्यान को गहरा बनाने में भी मददगार साबित हो सकती है|
अभी कुछ दिन पहले ही एक बात समाचारपत्रों में पढ़ी कि कैंसर क्यों होता है, इसके कई कारण हैं| एक कारण यह है कि जो लोग मस्तिष्क का सही उपयोग करना नहीं जानते उनके कैंसर हो सकता है| मस्तिष्क विज्ञानी तो यह भी कहते हैं कि मस्तिष्क की शक्तियों का केवल चार या पांच प्रतिशत उपयोग आदमी करता है, शेष शक्तियां सुप्त पड़ी रहती है| यह भी कहा जाता है कि कोई मस्तिष्क की शक्तियों का उपयोग सात या आठ प्रतिशत करने में समर्थ हो जाए तो वह दुनिया का सुपर जीनियस बन सकता है| इस आधार पर तो हम यही कह सकते हैं कि हम अपने मस्तिष्क का सही और पूरा उपयोग करना नहीं जानते| चाहे कर्म का क्षेत्र हो या धर्म का क्षेत्र हो, दोनों में हम पिछड़े हुए हैं| सबसे पहले हमारी जानकारी मस्तिष्क विद्या के बारे में होनी चाहिए| योग विद्या भारत की सबसे प्राचीन विद्या है| योगविद्या के आचार्यों ने मस्तिष्क विद्या से दुनिया का परिचय कराया था|
बहुत सारी शारीरिक एवं मानसिक समस्याएं अज्ञान के कारण पैदा होती हैं| शरीर और उसके विभिन्न अवयवों के बारे में जानकारी के अभाव में आदमी के सामने अनेक शारीरिक कठिनाइयां खड़ी हो जाती हैं| हमारे मस्तिष्क में एक पर्त है एनीमल ब्रेन की| वह पर्त सक्रिय होती है तो आदमी का व्यवहार पशुवत हो जाता है| जितने भी हिंसक और नकारात्मक भाव हैं, वे इसी एनीमल ब्रेन की सक्रियता का परिणाम है| इसे संतुलित करने का माध्यम योग है| शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक शांति एवं स्वस्थ्यता के लिये योग की एकमात्र रास्ता है| लेकिन भोगवादी युग में योग का इतिहास समय की अनंत गहराइयों में छुप गया है| वैसे कुछ लोग यह भी मानते हैं कि योग विज्ञान वेदों से भी प्राचीन है| दुनिया में भारतीय योग को परचम फहराने वाले स्वामी विवेकानंद कहते हैं-निर्मल हृदय ही सत्य के प्रतिबिम्ब के लिए सर्वोत्तम दर्पण है| इसलिए सारी साधना हृदय को निर्मल करने के लिए ही है| जब वह निर्मल हो जाता है तो सारे सत्य उसी क्षण उसमें प्रतिबिम्बित हो जाते हैं|...पावित्रय के बिना आध्यात्मिक शक्ति नहीं आ सकती| अपवित्र कल्पना उतनी ही बुरी है, जितना अपवित्र कार्य|’’ आज विश्व में जो आतंकवाद, हिंसा, युद्ध, साम्प्रदायिक विद्धेष की ज्वलंत समस्याएं खड़ी है, उसका कारण भी योग का अभाव ही है|
हम जितना ध्यान रोगों को ठीक करने में देते हैं, उतना उनसे बचने में नहीं देते| दवा पर जितना भरोसा रखते हैं, उतना भोजन, संतुलित जीवन एवं श्वासों पर नहीं रखते| यही कारण है रोग पीछा नहीं छोड़ते| योग एवं ध्यान एक ऐसी विधा है जो हमें भीड़ से हटाकर स्वयं की श्रेष्ठताओं से पहचान कराती है| हममें स्वयं पुरुषार्थ करने का जज्बा जगाती है| स्वयं की कमियों से रू-ब-रू होने को प्रेरित करती है| स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार कराती है| आज जरूरत है कि हम अपनी समस्याओं के समाधान के लिये औरों के मुंहताज न बने| ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान हमारे भीतर से न मिले| हमारे भीतर ऐसी शक्तियां हैं, जो हमें बचा सकती हैं| योग, संकल्प एवं संयम की शक्ति बहुत बड़ी शक्ति है|