प्रभु और गुरु की कृपाप्राप्ति के लिए पात्रता चाहिए: आचार्यश्री विमलसागरसूरीश्वर
साधना और शुभ प्रवृत्तियों में मन रमना चाहिए

ज्ञान और विवेक के अभाव में शिष्यत्व या भक्ति सफल नहीं होती
गदग/दक्षिण भारत। मंगलवार को राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में धर्मसभा को संबोधित करते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि भगवान का मार्ग और सद्गुरु का साथ मिल जाने के बाद पापों के प्रति रुचि कम होने लगती है। साधना और शुभ प्रवृत्तियों में मन रमना चाहिए।
संसार में जीने और उसे देखने का नजरिया बदलना चाहिए। यदि मन नहीं बदलता है तो भगवान और सद्गुरु, दोनों की प्राप्ति भी आपके लिए सामान्य उपक्रम बनकर रह जाएंगी। यह भगवान और सद्गुरु की शक्ति का अवमूल्यांकन नहीं, भक्त और शिष्य की सत्वहीनता का परिचायक है।आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि भगवन, गुरु और धर्म की कृपा तो निरंतर बरसती हैं, उसे ग्रहण करने के लिए भक्त या शिष्य को अपनी पात्रता बनानी पड़ती है। श्रद्धा और समर्पण से कोई भक्त या शिष्य बनता है, लेकिन ज्ञान और विवेक के अभाव में शिष्यत्व या भक्ति सफल नहीं होती।
जैन साहित्य ने भक्ति और शिष्यत्व के लिए ज्ञान एवं विवेक को बहुत महत्वपूर्ण माना है। विवेकहीन शिष्यत्व और अज्ञानतापूर्ण भक्ति, दोनों ही हानिकारक हैं। जीवन में परम सौभाग्य से भगवान की भक्ति और किसी सद्गुरु का शिष्यत्व मिलता है। लेकिन इन उपलब्धियों को सार्थक करने के लिए श्रद्धा-समर्पण के साथ-साथ रागद्वेष को कम करने की रुचि और आध्यत्म की साधना का भाव आना चाहिए।
आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने समझाया कि अध्यात्म के पथ पर पात्रता का अत्याधिक महत्व है। भौतिक संसार में भी बिना योग्यता के किसी को कुछ नहीं मिलता, इसलिए हर भक्त और हर शिष्य को अधिक से अधिक अपनी योग्यता बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। वर्तमान युग में भक्तों और शिष्यों की भरमार हैं, लेकिन उनमें योग्यता कितनी है, यह कोई नहीं देखता। भारतीय साहित्य में भक्त और शिष्य के संबंध में अद्भुत और मार्मिक कथाएं मिलती हैं।
रात्रिकालीन ज्ञानसत्र को संबोधित करते हुए गणि पद्मविमलसागरजी ने कहा कि भगवान की भक्ति और गुरु की शक्ति ही हमें दुःखों से मुक्त करेगी। खीर-नीर का भेद करना सीखिये। अध्यात्म का रास्ता बुद्धि और तर्क से नहीं, श्रद्धा और भक्ति से ही प्रशस्त हो सकता है।
जैन संघ के अध्यक्ष पंकज बाफना ने बताया कि वर्षायोग की सफलता और सार्थकता के लिये धीरज बाफना परिवार ने मंगलमय लब्धि कुंभ एवं माणिभद्र देव, घंटाकर्ण वीर तथा क्षेत्रपाल की स्थापना की। इसके लिए श्रमणगण ने विविध मंत्रों और स्तोत्रों द्वारा शांतिपाठ किया।
सकल संघ ने आत्मरक्षा का विधान किया। महिलाओं ने स्वस्तिक रचना कर यह मंगल विधि संपन्न की। ट्रस्टी गौतम कवाड़ ने बताया कि कषाय जय तप में चौथे दिन सभी चार सौ साधकों ने निराहार उपवास की तपस्या की है। बुधवार को साधना का दूसरा चरण प्रारंभ होगा।