मोक्ष प्राप्ति के प्रमुख मार्ग हैं- दान, शील, तप और भाव: आचार्यश्री प्रभाकरसूरी
भावना शुद्ध रही तो आधे घंटे में ही महान कर्म निर्जरा कर सकते हैं

आचार्यश्री ने कहा कि भावधर्म दरिद्रता का नाश करता है
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के महालक्ष्मी लेआउट स्थित चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्यश्री प्रभाकरसूरीश्वरजी ने शुक्रवार को अपने प्रवचन में कहा कि प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी ये चातुर्मास आया है। ये चातुर्मास आत्मकल्याणकारी चातुर्मास है जिसमें आत्मा के कल्याण के लिए भगवान महावीर ने दान, शील, तप और भाव चार प्रकार के धर्म बताए हैं।
उसमें भी भाव का महत्व सबसे अधिक है। जिस प्रकार खाने में सभी मसालों में से नमक का महत्व ज्यादा होता है, उसी तरह दान, शील, तप का महत्व भी तभी है अगर उसमें भाव जुडे हुए हों। उन्होंने कहा कि भावना से रहित आत्मा कितना भी प्रयत्न करे, वह मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकती।मोक्ष प्राप्ति के चार प्रमुख मार्ग हैं दान, शील, तप और भाव। दान के साथ दान की शुद्ध भावना, तप करने में शुद्ध भाव और शील (ब्रह्मचर्य) का पालन करने में भी सच्ची भावना होनी चाहिए। जिस तरह हवा के बिना अच्छे से अच्छा जहाज भी समुंदर में चल नहीं सकता। वैसे ही अच्छे से अच्छा चतुर साधक भी भाव के बिना संसार सागर को पार नहीं कर सकता।
नाव को चलाने में जैसे पवन कारक है, वैसे ही धर्म रूपी साधना भी भाव रूपी नाव से ही पार की जा सकती है। भावना शुद्ध रही तो आधे घंटे में ही महान कर्म निर्जरा कर सकते हैं।
आचार्यश्री ने कहा कि भावधर्म दरिद्रता का नाश करता है। दान से सादगी एवं सन्मति की प्राप्ति होती है। शीलधर्म अनंत जन्मों से उपार्जित बुरे कर्मो का नाश करता है। तप हमारी आत्मा के ऊपर जो कर्मों का बंधन है उसे हटाता है। तपस्या के अंदर तप करना आवश्यक है। मंदिर के ट्रस्टी नरेश बम्बोरी ने बताया कि 14जुलाई से आचार्यश्री की निश्रा मे मोक्षदंड तप की तपस्या की शुरुआत होगी।
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