सदाचारी साधु-संत हैं जीवंत तीर्थ: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

'ज्ञान की निर्मल आभा से परिष्कृत उनका जीवन उन्हें तीर्थतुल्य बनाता है'

सदाचारी साधु-संत हैं जीवंत तीर्थ: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

'व्यक्ति जन्म से नहीं, कर्म से महान बनता है'

गदग/दक्षिण भारत। सोमवार को राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में धर्मसभा में उपस्थित जनों को संबोधित करते हुए आचार्यश्री विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि भारतीय साहित्य में साधु-संतों को जीवंत तीर्थ कहकर उनका महिमागान किया गया है। आचार-विचार की पवित्रता और ज्ञान की निर्मल आभा से परिष्कृत उनका जीवन उन्हें तीर्थतुल्य बनाता है। 

Dakshin Bharat at Google News
इस प्रकार साधु-संतों के कंधों पर जगत के उद्धार का बहुत बड़ा दायित्व हैं। वे संसार के पापपंक में डूब रहे जीवों को पार उतारने का काम करते हैं। स्वयं तैरने और दूसरों को तारने की यह प्रक्रिया तीर्थ के रूप में पारिभाषित होती है। इस अर्थ में जो पार लगाए वो तीर्थ हैं। साधु-संत भी तीर्थ कहे जाते हैं। वे जहां कहीं जाते हैं, वह घर, भूमि, गांव, तीर्थ बन जाते हैं। सदाचार के समक्ष देवता भी रमण करते हैं।

आचार्य विमलसागरसूरीश्वर ने कहा कि व्यक्ति जन्म से नहीं, कर्म से महान बनता है। कुल, जाति, धन, ज्ञान या परिवार नहीं, मनुष्य के आचार-विचार ही उसकी पहचान बनते हैं। सदाचार, जीवन का अमूल्य आभूषण है। 

भारतीय साहित्य और संस्कृति ने सदाचार को बहुत महत्ता दी है। साधु-संत और सज्जन मनुष्य सदाचार से चमकते-दमकते हैं। यूं ही कोई पूजा और प्रतिष्ठा के योग्य नहीं होता, मनुष्य की पवित्रता उसे पूजनीय बनाती है। जिसके जीवन में सद्विचार और सदाचार होते हैं, उसके समक्ष हर कोई नतमस्तक हो जाता है। सदाचार साधुत्व का प्रमाणपत्र हैं। 

जैन संघ के ट्रस्टी दलीचंद कवाड़ ने बताया कि ‘रात को ज्ञान की बात, आपके साथ’ कार्यक्रम में गणि पद्मविमलसागरजी ने बहुत ही सार्थक व प्रभावी ज्ञानचर्चा की। संघ के विनोद फोलामुथा ने बताया कि कषाय जय तप के चार सौ साधकों के लिए श्रीफल अभिमंत्रित कर जयघोष पूर्वक उन्हें प्रदान किए गए।

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download