अच्छे गुणों का श्रवण करना ही सर्वोत्तम जीवन का शुभ मार्ग: संतश्री ज्ञानमुनि
' जिंदगी की डोर एक बार छूट जाए तो फिर कभी भी जुड़ नहीं सकती'

'माता-पिता और दुखियारों की सेवा सबसे उत्तम कार्य है'
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के सुमतिनाथ जैन संघ यलहंका में विराजित आचार्यश्री हस्तीमलजी के शिष्य श्री ज्ञानमुनिजी के सान्निध्य में रविवार को लोकेश मुनि जी ने उत्तराध्ययन सूत्र के चौथे अध्याय का वर्णन करते हुए कहा कि जिंदगी की डोर एक बार छूट जाए तो फिर कभी भी जुड़ नहीं सकती।
जो कार्य आवश्यक है वह नहीं करना आलस्य है और जो कार्य वर्जित है वह करना प्रमाद है और हमें प्रमाण को पूर्णतः त्यागना चाहिए। जैन आगमों में उल्लिखित है कि माता-पिता और दुखियारों की सेवा सबसे उत्तम कार्य है।ज्ञानमुनि जी ने उत्तम जीवन के सद्मार्ग के बारे में बताते हुए कहा कि प्रातः उठते ही देव स्मरण, गुरु नमन, सामायिक व व्याख्यान ग्रहण कर स्वाध्याय करना, संयम नियम दान करना, इच्छा अनुसार तप करना और दूसरों से अच्छे गुणों का श्रवण करना यही सब सर्वोत्तम जीवन का
शुभ मार्ग है।
ज्ञानमुनिजी ने श्रमण संघीय श्री गणेशीलालजी की जयंती पर उन्हें भावपूर्ण वंदन करते हुए उनकी महिमा का गुणगान किया। रविवार को बड़ी संख्या में बेंगलूरु के उप नगरों से श्रद्धालु उपस्थित हुए थे। गौतमचंद नाबरिया ने गीत प्रस्तुत किया। गौतम चंद ओस्तवाल ने अपने भाव व्यक्त किए।
संयोजक नेमीचंद लुकड़ ने सभी का स्वागत किया। सभा का संचालन मनोहरलाल लुकड़ ने किया।
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