पुण्य के उदय में कभी रुकावट न बनें: डॉ. समकित मुनि
'जिसने हमें कभी दुःख नहीं दिया, हम उसे कभी दुःख न दें'
 
                                                 जीवन ऐसा बनाना चाहिए कि माता-पिता को फख्र हो और गुरु कहें कि यह मेरा शिष्य है
चेन्नई/दक्षिण भारत। यहां पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम जैन मेमोरियल ट्रस्ट में मंगलवार को विराजमान डॉ. समकित मुनिजी म.सा. ने प्रवचन में कहा कि भगवान की कथा हम हर साल सुनते हैं, लेकिन क्या कभी अपनी खुद की जीवन कथा सुनी है? हम बिना क्रोध के शायद ही कोई काम करते हैं, और जब रोज क्रोध करते हैं तो वही हमारा स्वभाव बन जाता है।
साधना, धर्म, त्याग और तपस्या जितनी करने की शक्ति हो, उतनी करो, तभी हम अपने कर्मों से बच सकते हैं। दुनिया में कई ऐसे लोग और रिश्ते होते हैं जिनका स्वभाव ही दुःख पहुँचाना होता है।मुनिश्री ने सभी से संकल्प लेने को कहा कि जिसने हमें कभी दुःख नहीं दिया, हम उसे कभी दुःख न दें। माता-पिता अगर कभी किसी बात की कमी नहीं आने देते, तो बच्चे उन्हें बड़े होकर दुःख क्यों देते हैं? जीवन ऐसा बनाना चाहिए कि माता-पिता को फख्र हो और गुरु कहें कि यह मेरा शिष्य है। परदेसी राजा के पास पुण्य का उदय था, लेकिन वह पाप का राजा बन गया।
मुनिश्री ने चेताया कि पुण्य के उदय में कभी पापी मत बनिए। जैसे पिता को दिन के अंत में अपने बेटे से हिसाब पूछना चाहिए, वैसे ही हमें अपने पुण्य के लेखे-जोखे पर भी ध्यान देना चाहिए। जिस दिन बेटे से हिसाब नहीं मिले, समझो वह हाथ से निकल गया। वैसे ही जब पुण्य का हिसाब न मिले, समझो जीवन गलत दिशा में जा रहा है।
मुनिश्री ने कहा, पद ऊँचा नहीं बढ़ाता, ऐड़ियाँ उठाने से। पद ऊँचा बढ़ता है गर्दन को झुकाने से। ऐसा करने से हम अपने दिल का राजा बनते हैं।


 
                 

 
             
                 
                 
                 
                 
                 
                