जिसमें अपनी मेहनत लगती है, वही अपनी यात्रा होती है: डॉ. समकित मुनि
'इस संसार में सैकड़ों यात्राएँ हैं'

'ज्ञानी सदा कहते हैं कि अगर तुम बड़े बने हो तो कार्य भी बड़े करो'
चेन्नई/दक्षिण भारत। यहां पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम जैन मेमोरियल ट्रस्ट में डॉ. समकित मुनिजी म.सा. ने शनिवार को अपने प्रवचन में कहा जिसमें अपनी मेहनत और प्रयास लगते हैं, वही हमारी सच्ची यात्रा होती है। इस संसार में सैकड़ों यात्राएँ हैं।
मधुबन की यात्रा है तो पतझड़ की भी यात्रा है। लेकिन जीवन में कुछ कर सको या न कर सको, समकित यात्रा जरूर करना। ‘परदेसी’ की कथा को आगे बढ़ाते हुए मुनिश्री ने बताया कि वह एक बहुत बड़ा राजा था, लेकिन उसने बड़े होने के कर्तव्यों को नहीं निभाया।ज्ञानी सदा कहते हैं कि अगर तुम बड़े बने हो तो कार्य भी बड़े करो, क्योंकि यह जीवन बार-बार बड़ा नहीं बनाता। यदि कोई बड़ा बनकर खड़ा हो जाए लेकिन व्यवहार में प्रेम न हो, तो उसकी महानता खो जाती है। श्रेष्ठ बनना हमारा काम है - मनुष्य होकर भी कोई श्रेष्ठ बन सकता है, और मनुष्य होकर भी नीचता की ओर जा सकता है। श्रेष्ठता केवल अच्छे कार्यों से प्राप्त होती है, पद और स्थान से नहीं।
उन्होंने आगे कहा कि बिना ऊँचे पद पर हुए भी कोई श्रेष्ठ बन सकता है, और बिना किसी विशेष पहचान के भी सच्चे कर्म करके महानता हासिल की जा सकती है। पंजाब से जयवंत मुनिजी म.सा. की माताश्री भी इस प्रवचन में विशेष रूप से उपस्थित रहीं।
इस अवसर पर संचालन विनयचंद पावेचा ने किया। संस्था के अध्यक्ष चंद्रप्रकाश तालेड़ा, उपाध्यक्ष मिठालाल पगारिया, कोषाध्यक्ष महावीरचंद कोठारी सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित रहे।