मानवभव दोस्त बनाने, साधना करने का अवसर है: साध्वीश्री मयूरयशा
आत्मा को सही मार्ग बताने के लिए महापुरुषों ने अनेक ग्रंथों की रचना की है

वरघोड़े का अंतिम लक्ष्य सिद्ध शिला है
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के मागड़ी रोड स्थित सुमतिनाथ जैन संघ के तत्वावधान में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी मयूरयशा श्रीजी की निश्रा में मंगलवार को महाप्रभाविक भक्तामर महातप प्रारंभ हुआ। आचार्यश्री मानतुंगसूरीश्वरजी द्वारा रचित भक्तामर स्तोत्र में आदिनाथ परमात्मा की आराधना स्वरूप 44 दिवसीय यह तप प्रारंभ हुआ।
धर्मरत्न ग्रंथ का वाचन करते साध्वीजी ने कहा कि क्षुद्र व्यक्ति का कोई मित्र नहीं बनता, उसको कुटुंब का प्रेम नहीं मिलता, वह स्वार्थ प्रिय होता है, उसको प्रेम संवेदना नहीं होती है। हमें मानवभव दोस्त बनाने, साधना करने का अवसर मिला है उसका उपयोग करना चाहिए।साध्वी चैतन्ययशा श्रीजी ने कहा कि अनंत संसार परिभ्रमण कर रही आत्मा को सही मार्ग बताने के लिए पूर्व के महापुरुषों ने अनेक ग्रंथों की रचना की है। निगोद से निकला हुआ हमारी आत्मा का वरघोड़ा अभी तक चल रहा है। जिस दिन सिद्ध शिला में आत्मा पहुंचेगी उस दिन यह वरघोड़ा पूर्ण होगा। वरघोड़े का अंतिम लक्ष्य सिद्ध शिला है।
साध्वीश्री ने कहा कि उपाध्याय विनय विजयजी द्वारा रचित शांतसुधारस ग्रंथ में राग को मिटाने की 12 और द्वेषभाव को मिटाने की 4 कुल 16 भावना का वर्णन किया गया है। भव भ्रमण से बचने के लिए हमें 16 भावना की शरण में जाना है। जिस तरह रोग मिटाने के लिए वैद्य के पास जाते हैं, उसी तरह हमें भव रोग से बचने के लिए 16 भावना की शरण में जाना है।
पानी का स्वभाव नीचे जाने का है लेकिन पंप से हम उसको ऊपर चढ़ा सकते हैं। इस तरह नीचे गिर रही आत्मा की परिणीति को 16 भावना के पंप द्वारा हम ऊपर ले जा सकते हैं। कर्म से भारी बनी हुई आत्मा को भाव से ऊपर उठाना है बिना भाव के मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है।
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