जो बुराइयां सिखाएं, वे मित्र नहीं, शत्रु हैं: आचार्यश्री विमलसागरसूरीश्वर
चार सौ साधक तप साधना से जुड़े

कल्याणमित्र की प्राप्ति जीवन की उल्लेखनीय उपलब्धि है
गदग/दक्षिण भारत। शहर के राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में शनिवार को जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में प्रवचन को संबोधित करते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीजी ने कहा कि जिन्हें हम घनिष्ट मित्र मानते हैं, अमूमन शराब, जुआ, चोरी, धन और समय की बर्बादी, दुराचार, अपराध आदि सभी बुराइयां उनसे ही हमारी जिंदगी में आती हैं। ऐसे मित्र हितैषी नहीं, अहितकारी और खतरनाक होते हैं।
ऐसे मित्रों से दूर रहना अत्यंत आवश्यक है। हकीकत में ऐसे लोग मित्र नहीं, शत्रुतुल्य होते हैं। सद्गुरु हमें बुराइयों से बचाते हैं और अच्छाइयों के मार्ग पर आगे बढ़ाते हैं, इसलिए वे ही सच्चे कल्याणमित्र हैं। इसी प्रकार व्यवहारिक जगत में भी कोई हमारे कल्याणमित्र हो सकते हैं। कल्याणमित्र की प्राप्ति जीवन की उल्लेखनीय उपलब्धि है।
कल्याणमैत्री दुर्लभ होती है और सौभाग्य से मिलती है। सद्गुरु को जैन साहित्य ने कल्याणमित्र कहा है। सद्गुरु हमारे धन, व्यापार, सुख-सुविधा और परिवार से आगे, सदाचार, धर्म, आत्मकल्याण व आध्यात्मिक उन्नति का ध्येय लेकर चलते हैं। वे नश्वर सुखों से परे हमारे शाश्वत सुख की चिंता करते हैं। इसलिए इस दुनिया में हमारे मित्र-दोस्त कितने भी हों, सद्गुरु के रूप में एक कल्याणमित्र भी होने चाहिए।
मंत्री हरीश गादिया ने कहा कि शनिवार को यहां चार सौ साधकों ने सोलह दिवसीय सामूहिक कषाय जय तप का मंगल प्रारंभ किया। गणि पद्मविमलसागरजी ने मंत्रोच्चारपूर्वक उन्हें संकल्प दिलवाए। सभी को अभिमंत्रित श्रीफल प्रदान किया गया। कोषाध्यक्ष निर्मल पारेख ने जानकारी दी कि रविवार को पार्श्व बुद्धि वीर वाटिका में आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी की पहली जागरण सेमिनार आयोजित होगी।
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