जीवन को नंदनवन बनाने के लिए जरूरी है धर्म का आचरण: कपिल मुनि
प्रभु महावीर की अहिंसा का तात्पर्य है कि किसी के प्रति आक्रामक नहीं बनना

धन्य हैं वे लोग जो संत समागम और वीतराग वाणी के श्रवण का लाभ लेकर जीवन को धन्य बनाते हैं
चेन्नई/दक्षिण भारत। यहां गोपालपुरम में लॉयड्स रोड स्थित छाजेड़ भवन में चातुर्मासार्थ विराजित क्रांतिकारी प्रवचनकार श्री कपिल मुनि जी म.सा. ने ‘जानें जीवन के मर्म को’ विषय पर आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन माला के दौरान शनिवार को कहा कि जीवन मे दुर्लभता से मिलने वाली चीज हैं संत समागम और धर्म वाणी का श्रवण। जिसने पुण्य के सुमेरु खड़े किए हैं उन्हीं भाग्यशाली आत्माओं को यह दुर्लभ योग प्राप्त हो पाता है। धन्य हैं वे लोग जो संत समागम और वीतराग वाणी के श्रवण का लाभ लेकर जीवन को धन्य बनाते हैं।
मुनि श्री ने कहा कि संत वही होता है जो सत अर्थात शाश्वत तत्व आत्मा में रमण करता है और उसकी खोज को ही जीवन का परम लक्ष्य मानकर जीवन यात्रा को तय करता है। ऐसे संत महापुरुष की संगति मंगल स्वरूप और वरदान तुल्य होती है इसलिए हजारों काम छोड़कर संत सानिध्य का लाभ उठाना चाहिए।उन्होंने आगे कहा कि धर्म वाणी वही है जिसे सुनकर तप, क्षमा और अहिंसा की चेतना जागृत होती है। जिसे सुनकर अमर्यादित जीवन पर अंकुश लगता है बेशुमार बढ़ती इच्छाओं पर नियंत्रण और राग द्वेष की आंच मंद होती है वही जिनवाणी है। जहाँ समता है वहाँ अहिंसा है। अहिंसा में ही विश्व की समस्या का समाधान है।
प्रभु महावीर की अहिंसा का तात्पर्य है कि किसी के प्रति आक्रामक नहीं बनना और क्रूरतापूर्ण बर्ताव नहीं करना। प्राणी मात्र के अस्तित्व को सहर्ष सम्मान के साथ स्वीकार करना चाहिए। मुनिश्री ने आगे कहा कि भगवान महावीर के अनेकान्त सिद्धान्त के परिपालन से घर, परिवार और समाज के वातावरण में समरसता और खुशहाली लाई जा सकती है।
जहाँ एकांतवादी दृष्टिकोण है वहाँ स्वयं को सही और अन्य को गलत समझने की वृत्ति है जो कि संघर्ष और हिंसा का प्रमुख कारण है। मैं सही हूँ ये कहने का व्यक्ति को अधिकार है मगर दूसरों को गलत बताने का अधिकार उसे किसने दिया है? दूसरों के विचारों को सहन करना और समादर करना ही अहिंसक जीवन जीने की अनिवार्य शर्त है।
व्यक्ति को वैचारिक सहिष्णुता के सद्गुण का विकास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर ने जीवन के प्रति सम्यक दृष्टिकोण पर बल दिया। क्योंकि गलत दृष्टिकोण और भ्रांत धारणा ही जीवनगत समस्याओं का कारण है। गलत धारणा से बढ़कर व्यक्ति का कोई शत्रु नहीं है। भगवान महावीर ने अपनी सद शिक्षाओं में व्यक्ति के भीतर पल रही गलत धारणा पर प्रहार किया।
उन्होंने जीवन को नंदनवन बनाने के लिए धर्म का आचरण को जरूरी बताया। धर्मसभा का संचालन संघ के मंत्री राजकुमार कोठारी ने किया।
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