कितने कालनेमि?

कुछ लालची और भ्रष्ट लोग साधु का वेश धारण कर जनता को ठग रहे हैं

कितने कालनेमि?

एक ढोंगी शख्स तो बांग्लादेशी नागरिक निकला

उत्तराखंड सरकार ने 'ऑपरेशन कालनेमि' चलाकर उन लोगों को कड़ा संदेश दिया है, जो गलत पहचान के साथ साधु-संतों का वेश धारण कर आम जनता को ठग रहे हैं। ऐसे ठगों की संख्या इतनी ज्यादा हो गई है कि देहरादून जिले में ही अब तक 80 से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं। इस अभियान का विस्तार अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भी होना चाहिए। भारतीय समाज साधु-संतों का बहुत सम्मान करता है, लेकिन यह कड़वी हकीकत है कि प्राचीन काल से ही कुछ लालची और भ्रष्ट लोग साधु का वेश धारण कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। हाल के वर्षों में सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो वायरल हुए हैं, जिनमें इनका भलीभांति पर्दाफाश किया गया है। एक वीडियो में कोई शख्स साधु के वेश में लोगों से भिक्षा मांगता दिखाई देता है। वह दावा करता है कि हरिद्वार से आया है। वहां मौजूद एक व्यक्ति उसके साथ अध्यात्म संबंधी चर्चा शुरू कर देता है। उस कथित साधु से कहा जाता है कि 'गायत्री मंत्र सुनाएं', लेकिन वह नहीं सुनाता। उससे वेदों के नाम पूछे जाते हैं, लेकिन वह नहीं बताता। असल में उसे इस संबंध में कोई ज्ञान ही नहीं था। वह व्यक्ति उसका असली नाम पूछता है तो टालमटोल करने लगता है। पता चलता है कि साधु बनकर घूम रहा वह शख्स सिर्फ रुपए कमाने के लिए ऐसा कर रहा था। वह हिंदू भी नहीं था। इसी तरह एक और वीडियो में कोई कथित साधु गांव-गांव घूमकर चंदा इकट्ठा कर रहा था। उसका दावा था कि इस राशि से हनुमानजी का भव्य मंदिर बनेगा। उससे एक व्यक्ति ने हनुमानजी की माता का नाम पूछा तो वह बगलें झांकने लगा। उससे कहा गया, 'हनुमान चालीसा सुनाएं', तो वह इधर-उधर की बातें करने लगा। जब भगवान श्रीराम की माता का नाम पूछा गया तो उससे कोई जवाब देते नहीं बना। पता चला कि वह शख्स साधु के वेश में कोई ढोंगी था।

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'ऑपरेशन कालनेमि' के तहत पकड़ा गया एक ढोंगी शख्स तो बांग्लादेशी नागरिक रूकन रकम उर्फ शाह आलम निकला! वह देहरादून जिले के सहसपुर क्षेत्र में सक्रिय था। ऐसे कितने 'कालनेमि' और सक्रिय हैं? धर्म की आड़ में लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करने वालों को कठोर दंड मिलना चाहिए। इन ढोंगियों पर शिकंजा कसने का काम तो सरकार, पुलिस और एजेंसियां ही कर सकती हैं, लेकिन आम लोग भी इन्हें हतोत्साहित कर सकते हैं। राजस्थान में एक पुरानी कहावत है- 'पाणी पीओ छाण, गुरु बणाओ जाण' अर्थात् पानी पीना हो तो उसे पहले छानें, ताकि वह स्वच्छ हो जाए और किसी को गुरु बनाना हो तो उसे पहले जानें, परखें। यदि उसमें उचित गुण पाएं तो ही उसे गुरु स्वीकार करें। इसी तरह, अगर किसी अनजान व्यक्ति को साधु-संत समझकर उसे धन या आश्रय आदि दे रहे हैं तो पहले कुछ आध्यात्मिक चर्चा कर लेनी चाहिए। ऐसे लोगों से अपने गुरु का नाम, गुरु परंपरा के बारे में पूछें। संन्यास विधि, पूर्व गौत्र, गांव/शहर, माता-पिता के नाम, शिक्षा आदि के बारे में पूछ सकते हैं। वैदिक मंत्रों, देवी-देवताओं की स्तुति, गीता, रामचरितमानस आदि से जुड़े प्रश्न पूछें। 'कालनेमि' की श्रेणी में आने वाले ज्यादातर ढोंगी इधर ही फंस जाएंगे। यह उसी स्थिति में संभव है जब लोग खुद भी धर्म के बारे में जानें। जिन्हें अपने ऋषि-मुनियों के बारे में मालूम नहीं, जो अपने धर्म ग्रंथ नहीं पढ़ते, जिन्हें भगवान के अवतारों के बारे में जानकारी नहीं, जो पांच श्लोक भी नहीं जानते, वे तो 'कालनेमियों' द्वारा ठगे ही जाएंगे। इसमें आश्चर्य की बात क्या है? साधु-संतों का वेश अत्यंत पवित्र होता है। जो इसे धारण करता है, उस पर बहुत बड़े दायित्व आ जाते हैं। जो शख्स इस वेश को धन कमाने, अपने स्वार्थ सिद्ध करने और झूठ बोलकर लोगों को धोखा देने का माध्यम बनाए, उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी चाहिए। संतों का सम्मान करें, कालनेमियों से सावधान रहें।

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