संत नहीं बन सकते तो कम से कम शांत अवश्य बनें: संतश्री वरुणमुनि
'क्रोध या आवेश आने पर मौन रहने से दूरगामी दुष्प्रभावों से बच सकते हैं'

'यदि पहला कदम सही रखें तो हम मुक्ति के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं'
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के गांधीनगर गुजराती जैन संघ में चातुर्मासार्थ विराजित श्रमण संघीय उपप्रवर्तक पंकजमुनिजी की निश्रा में मुनि डॉ. वरुणमुनिजी ने कहा कि यदि आप संत नहीं बन सकते तो कम से कम शांत अवश्य बनें।
जिस प्रकार सूर्य की कोई प्रशंसा करे या निंदा, सूर्य उससे अप्रभावित रहता है, उसी प्रकार क्रोध या आवेश आने पर मौन रहने या मन को शांत रखने से हम उसके दूरगामी दुष्प्रभावों से बच सकते हैं।मुनिश्री ने कहा कि जैसे शर्ट का पहला बटन यदि गलत लग जाए तो बाकी के सारे बटन गलत ही लगेंगे। वैसे ही यदि अध्यात्म में हमारा पहला कदम गलत हो जाए तो हम अपनी राह से भटक सकते हैं और यदि पहला कदम सही रखें तो हम मुक्ति के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं। यह पहला कदम है सम्यक दर्शन।
सम्यक दर्शन के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए सबसे सीधा और सरल मार्ग है भक्ति का मार्ग। जहां सदज्ञान हमें सन्मार्ग दिखाता है, वहीं अहंकार हमें पतन के मार्ग की ओर ले जाता है। जहां समर्पण का भाव जगता है, वहां विनय का भाव स्वत: ही जागृत हो जाता है। अभिमानी व्यक्ति के समक्ष चाहे कितनी ही अच्छी बात कही जाए किंतु उसके जीवन में किसी प्रकार का रूपांतरण नहीं होता।
श्री रूपेशमुनि जी ने मधुर भजन की प्रस्तुति दी। सभा का संचालन संघ के अध्यक्ष राजेश मेहता ने किया। अंत में उपप्रवर्तक पंकज मुनि जी ने मंगल पाठ प्रदान किया।
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