खादी से लेकर ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘वेस्ट टू वैल्थ’ ... 'मन की बात' में यह बोले मोदी
मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम की 106वीं कड़ी में देशवासियों के साथ अपने विचार साझा किए
हमारा साहित्य एक भारत-श्रेष्ठ भारत की भावना को प्रगाढ़ करने के सबसे बेहतरीन माध्यमों में से एक है
नई दिल्ली/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को 'मन की बात' कार्यक्रम की 106वीं कड़ी में देशवासियों के साथ अपने विचार साझा किए। इस अवसर पर उन्होंने देशवासियों को त्योहारों की बधाइयां दीं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि त्योहारों की इस उमंग के बीच दिल्ली की एक खबर से ही मैं ‘मन की बात’ की शुरुआत करना चाहता हूं। इस महीने की शुरुआत में गांधी जयंती के अवसर पर दिल्ली में खादी की रिकॉर्ड बिक्री हुई। यहां कनॉट प्लेस में एक ही खादी स्टोर में एक ही दिन में डेढ़ करोड़ रुपए से ज्यादा का सामान लोगों ने खरीदा। इस महीने चल रहे खादी महोत्सव ने एक बार फिर बिक्री के अपने सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। आपको एक और बात जानकार भी बहुत अच्छा लगेगा, दस साल पहले देश में जहां खादी प्रोडक्ट्स की बिक्री बड़ी मुश्किल से 30 हजार करोड़ रुपए से भी कम की थी। अब यह बढ़कर सवा लाख करोड़ रुपए के आसपास पहुंच रही है। खादी की बिक्री बढ़ने का मतलब है इसका फायदा शहर से लेकर गांव तक में अलग-अलग वर्गों तक पहुंचता है। इस बिक्री का लाभ हमारे बुनकर, हस्तशिल्प के कारीगर, हमारे किसान, आयुर्वेदिक पौधे लगाने वाले कुटीर उद्योग सबको लाभ मिल रहा है, और यही तो ‘वोकल फॉर लोकल’ अभियान की ताकत है और धीरे-धीरे आप सब देशवासियों का समर्थन भी बढ़ता जा रहा है।प्रधानमंत्री ने कहा कि आज मैं अपना एक और आग्रह आपके सामने दोहराना चाहता हूं और बहुत ही आग्रहपूर्वक दोहराना चाहता हूं। जब भी आप पर्यटन पर जाएं, तीर्थाटन पर जाएं, तो वहां के स्थानीय कलाकारों के द्वारा बनाए गए उत्पादों को जरूर खरीदें। आप अपनी उस यात्रा के कुल बजट में स्थानीय उत्पादों की खरीद को एक महत्त्वपूर्ण प्राथमिकता के रूप में जरूर रखें। 10 परसेंट हो, 20 परसेंट हो, जितना आपका बजट बैठता हो, लोकल पर जरूर खर्च करिएगा और वहीं पर खर्च कीजिए।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हर बार की तरह इस बार भी हमारे त्योहारों में हमारी प्राथमिकता हो ‘वोकल फॉर लोकल’ और हम मिलकर उस सपने को पूरा करें, हमारा सपना है ‘आत्मनिर्भर भारत’। इस बार ऐसे प्रोडक्ट से ही घर को रोशन करें जिसमें मेरे किसी देशवासी के पसीने की महक हो, मेरे देश के किसी युवा का टैलेंट हो, उसके बनने में मेरे देशवासियों को रोज़गार मिला हो, रोज़मर्रा की जिन्दगी की कोई भी आवश्यकता हो - हम लोकल ही लेंगे। लेकिन, आपको, एक और बात पर गौर करना होगा। ‘वोकल फॉर लोकल’ की यह भावना सिर्फ त्योहारों की खरीदारी तक के लिए ही सीमित नहीं है और कहीं तो मैंने देखा है, दिवाली का दीया लेते हैं और फिर सोशल मीडिया पर डालते हैं ‘वोकल फॉर लोकल’ – नहीं जी, वो तो शुरुआत है। हमें बहुत आगे बढ़ना है, जीवन की हर आवश्यकता - हमारे देश में अब सब कुछ उपलब्ध है। यह विजन केवल छोटे दुकानदारों और रेहड़ी-पटरी से सामान लेने तक सीमित नहीं है। आज भारत दुनिया का बड़ा विनिर्माण हब बन रहा है। कई बड़े ब्रांड यहीं पर अपने उत्पाद को तैयार कर रहे हैं। अगर हम उन प्रोडक्ट को अपनाते हैं तो मेक इन इंडिया को बढ़ावा मिलता है, और यह भी ‘लोकल के लिए वोकल’ ही होना होता है, और हाँ ऐसे प्रोडक्ट को खरीदते समय हमारे देश की शान यूपीआई डिजिटल भुगतान प्रणाली से भुगतान करने के आग्रही बनें, जीवन में आदत डालें, और उस प्रोडक्ट के साथ, या उस कारीगर के साथ सेल्फी नमोऐप पर मेरे साथ शेयर करें और वो भी मेड इन इंडिया स्मार्ट फ़ोन से। मैं उनमें से कुछ पोस्ट को सोशल मीडिया पर शेयर करूंगा, ताकि दूसरे लोगों को भी ‘वोकल फॉर लोकल’ की प्रेरणा मिले।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जब आप भारत में बने, भारतीयों द्वारा बनाए गए उत्पादों से अपनी दिवाली रौशन करेंगे, अपने परिवार की हर छोटी-मोटी आवश्यकता लोकल से पूरी करेंगे तो दिवाली की जगमगाहट और ज़्यादा बढ़ेगी ही बढ़ेगी, लेकिन उन कारीगरों की ज़िंदगी में, एक नई दिवाली आयएगी, जीवन की एक सुबह आएगी, उनका जीवन शानदार बनेगा। भारत को आत्मनिर्भर बनाइए, ‘मेक इन इंडिया’ ही चुनते जाइए, जिससे आपके साथ-साथ और भी करोड़ों देशवासियों की दिवाली शानदार बने, जानदार बने, रौशन बने, दिलचस्प बने।
प्रधानमंत्री ने कहा कि 31 अक्टूबर का दिन हम सभी के लिए बहुत विशेष होता है। इस दिन हमारे लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की जन्म-जयंती मनाते हैं। हम भारतवासी, उन्हें कई वजहों से याद करते हैं और श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं। सबसे बड़ी वजह है – देश की 580 से ज्यादा रियासतों को जोड़ने में उनकी अतुलनीय भूमिका। हम जानते हैं, हर साल 31 अक्टूबर को गुजरात में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पर एकता दिवस से जुड़ा मुख्य समारोह होता है। इस बार इसके अलावा दिल्ली में कर्तव्य पथ पर एक बहुत ही विशेष कार्यक्रम आयोजित हो रहा है। आपको याद होगा, मैंने पिछले दिनों देश के हर गांव से, हर घर से मिट्टी संग्रह करने का आग्रह किया गया था। हर घर से मिट्टी संग्रह करने के बाद उसे कलश में रखा गया और फिर अमृत कलश यात्राएं निकाली गईं। देश के कोने-कोने से एकत्रित की गई यह माटी, ये हजारों अमृत कलश यात्राएं अब दिल्ली पहुंच रहे हैं। यहां दिल्ली में उस मिट्टी को एक विशाल भारत कलश में डाला जाएगा और इसी पवित्र मिट्टी से दिल्ली में ‘अमृत वाटिका’ का निर्माण होगा। यह देश की राजधानी के हृदय में अमृत महोत्सव की भव्य विरासत के रूप में मौजूद रहेगी। 31 अक्टूबर को ही देशभर में पिछले ढ़ाई साल से चल रहे आजादी के अमृत महोत्सव का समापन होगा। आप सभी ने मिलकर इसे दुनिया में सबसे लंबे समय तक चलने वाले महोत्सव में से एक बना दिया। अपने सेनानियों का सम्मान हो या फिर हर घर तिरंगा, आजादी के अमृत महोत्सव में, लोगों ने अपने स्थानीय इतिहास को, एक नई पहचान दी है। इस दौरान सामुदायिक सेवा की भी अद्भुत मिसाल देखने को मिली है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं आज आपको एक और खुशखबरी सुना रहा हूं, विशेषकर मेरे नौजवान बेटे-बेटियों को, जिनके दिलों में देश के लिए कुछ करने का जज़्बा है, सपने हैं, संकल्प हैं। यह खुशखबरी देशवासियों के लिए तो है ही है, मेरे नौजवान साथियो आपके लिए विशेष है। दो दिन बाद ही 31 अक्टूबर को एक बहुत बड़े राष्ट्रव्यापी संगठन की नींव रखी जा रही है और वो भी सरदार साहब की जन्मजयन्ती के दिन। इस संगठन का नाम है – मेरा युवा भारत, यानी माईभारत संगठन। भारत के युवाओं को राष्ट्रनिर्माण के विभिन्न आयोजनों में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर देगा। यह विकसित भारत के निर्माण में भारत की युवा शक्ति को एकजुट करने का एक अनोखा प्रयास है। मेरा युवा भारत की वेबसाइट माईभारत भी शुरू होने वाली है। मैं युवाओं से आग्रह करूंगा, बार-बार आग्रह करूंगा कि आप सभी मेरे देश के नौजवान, आप सभी मेरे देश के बेटे-बेटी माईभारत.जीओवी.इन पर रजिस्टर करें और विभिन्न कार्यक्रम के लिए साइन अप करें। 31 अक्टूबर को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि भी है। मैं उन्हें भी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारा साहित्य एक भारत-श्रेष्ठ भारत की भावना को प्रगाढ़ करने के सबसे बेहतरीन माध्यमों में से एक है। मैं आपके साथ तमिलनाडु की गौरवशाली विरासत से जुड़े दो बहुत ही प्रेरक प्रयासों को साझा करना चाहता हूं। मुझे तमिल की प्रसिद्ध लेखिका बहन शिवशंकरी के बारे में जानने का अवसर मिला है। उन्होंने एक प्रोजेक्ट किया है – निट इंडिया, थ्रू लिटरेचर। इसका मतलब है – साहित्य से देश को एक धागे में पिरोना और जोड़ना। वे इस प्रोजेक्ट पर बीते 16 सालों से काम कर रही हैं। इसके जरिए उन्होंने 18 भारतीय भाषाओं में लिखे साहित्य का अनुवाद किया है। उन्होंने कई बार कन्याकुमारी से कश्मीर तक और इंफाल से जैसलमेर तक देशभर में यात्राएं कीं, ताकि अलग-अलग राज्यों के लेखकों और कवियों के साक्षात्कार कर सकें। शिवशंकरी ने अलग-अलग जगहों पर अपनी यात्रा की, यात्रा टिप्पणी के साथ उन्हें प्रकाशित किया है। यह तमिल और अंग्रेजी, दोनों भाषाओं में है। इस प्रोजेक्ट में चार बड़े संस्करण हैं और हर संस्करण भारत के अलग-अलग हिस्से को समर्पित है। मुझे उनकी इस संकल्प शक्ति पर गर्व है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कन्याकुमारी के थिरु एके पेरूमल का काम भी बहुत प्रेरित करने वाला है। उन्होंने तमिलनाडु की जो कहानी कहने की परंपरा है, उसको संरक्षित करने का सराहनीय काम किया है। वे अपने इस मिशन में पिछले 40 सालों से जुटे हैं। इसके लिए वे तमिलनाडु के अलग-अलग हिस्सों में यात्रा करते हैं और लोक कला के स्वरूपों को खोज कर अपनी किताब का हिस्सा बनाते हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उन्होंने अब तक ऐसी करीब 100 किताबें लिख डाली हैं। इसके अलावा पेरूमल का एक और भी जुनून है। तमिलनाडु की मंदिर संस्कृति के बारे में अनुसंधान करना उन्हें बहुत पसंद है। उन्होंने चमड़े की कठपुतलियों पर भी काफी अनुसंधान की है, जिसका लाभ वहां के स्थानीय लोक कलाकारों को हो रहा है। शिवशंकरी और एके पेरूमल के प्रयास हर किसी के लिए एक मिसाल हैं। भारत को अपनी संस्कृति को सुरक्षित करने वाले ऐसे हर प्रयास पर गर्व है, जो हमारी राष्ट्रीय एकता को मजबूती देने के साथ ही देश का नाम, देश का मान, सब कुछ बढ़ाए।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आने वाले 15 नवंबर को पूरा देश जनजातीय गौरव दिवस मनाएगा। यह विशेष दिन भगवान बिरसा मुंडा की जन्म-जयंती से जुड़ा है। भगवान बिरसा मुंडा हम सब के हृदय में बसे हैं। सच्चा साहस क्या है और अपनी संकल्प शक्ति पर अडिग रहना किसे कहते हैं, यह हम उनके जीवन से सीख सकते हैं। उन्होंने विदेशी शासन को कभी स्वीकार नहीं किया। उन्होंने ऐसे समाज की परिकल्पना की थी, जहां अन्याय के लिए कोई जगह नहीं थी। वे चाहते थे कि हर व्यक्ति को सम्मान और समानता का जीवन मिले। भगवान बिरसा मुंडा ने प्रकृति के साथ सद्भाव से रहना इस पर भी हमेशा जोर दिया। आज भी हम देख सकते हैं कि हमारे आदिवासी भाई-बहन प्रकृति की देखभाल और उसके संरक्षण के लिए हर तरह से समर्पित हैं। हम सब के लिए, हमारे आदिवासी भाई-बहनों का ये काम बहुत बड़ी प्रेरणा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि 30 अक्टूबर को गोविन्द गुरुजी की पुण्यतिथि भी है। हमारे गुजरात और राजस्थान के आदिवासी और वंचित समुदायों के जीवन में गोविन्द गुरुजी का बहुत विशेष महत्व रहा है। गोविन्द गुरुजी को भी मैं अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। नवंबर महीने में हम मानगढ़ नरसंहार की बरसी भी मनाते हैं। मैं उस नरसंहार में, शहीद मां भारती की, सभी संतानों को नमन करता हूं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतवर्ष में आदिवासी योद्धाओं का समृद्ध इतिहास रहा है। इसी भारत भूमि पर महान तिलका मांझी ने अन्याय के खिलाफ बिगुल फूंका था। इसी धरती से सिद्धो-कान्हू ने समानता की आवाज उठाई। हमें गर्व है कि जिन योद्धा टंट्या भील ने हमारी धरती पर जन्म लिया। हम शहीद वीर नारायण सिंह को पूरी श्रद्धा के साथ याद करते हैं, जो कठिन परिस्थितियों में अपने लोगों के साथ खड़े रहे। वीर रामजी गोंड हों, वीर गुंडाधुर हों, भीमा नायक हों, उनका साहस आज भी हमें प्रेरित करता है। अल्लूरी सीताराम राजू ने आदिवासी भाई-बहनों में जो अलख जगाई, उसे देश आज भी याद करता है। उत्तर पूर्व में कियांग नोबांग और रानी गाइदिन्ल्यू जैसे स्वतंत्रता सेनानियों से भी हमें काफी प्रेरणा मिलती है। आदिवासी समाज से ही देश को राजमोहिनी देवी और रानी कमलापति जैसी वीरांगनाएं मिलीं। देश इस समय आदिवासी समाज को प्रेरणा देने वाली रानी दुर्गावती की 500वीं जयंती मना रही हैं। मैं आशा करता हूं कि देश के अधिक से अधिक युवा अपने क्षेत्र की आदिवासी विभूतियों के बारे में जानेंगे और उनसे प्रेरणा लेंगे। देश अपने आदिवासी समाज का कृतज्ञ है, जिन्होंने राष्ट्र के स्वाभिमान और उत्थान को हमेशा सर्वोपरि रखा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि त्योहारों के इस मौसम में, इस समय देश में खेलकूद का भी परचम लहरा रहा है। पिछले दिनों एशियाई खेलों के बाद पैरा एशियाई खेलों में भी भारतीय खिलाड़ियों ने जबरदस्त कामयाबी हासिल की है। इन खेलों में भारत ने 111 मेडल जीतकर एक नया इतिहास रच दिया है। मैं पैरा एशियाई खेलों में हिस्सा लेने वाले सभी एथलीटों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं आपका ध्यान विशेष ओलंपिक विश्व ग्रीष्मकालीन खेलों की ओर भी ले जाना चाहता हूं। इसका आयोजन बर्लिन में हुआ था। यह प्रतियोगिता हमारे इंटेलेक्चुअल डिसएबिलीटीज वाले एथलीटों की अद्भुत क्षमता को सामने लाती है। इस प्रतियोगिता में भारतीय दल ने 75 स्वर्ण पदक सहित 200 पदक जीते। रोलर स्केटिंग हो, बहच वॉलीबॉल हो, फ़ुटबॉल हो, या टेनिस, भारतीय खिलाड़ियों ने पदकों की झड़ी लगा दी। इन पदक विजेताओं की जीवन यात्रा काफ़ी प्रेरणादायक रही है। हरियाणा के रणवीर सैनी ने गोल्फ़ में स्वर्ण पदक जीता है। बचपन से ही ऑटिज्म से जूझ रहे रणवीर के लिए कोई भी चुनौती गोल्फ़ को लेकर उनके जुनून को कम नहीं कर पाई। उनकी मां तो यहां तक कहती हैं कि परिवार में आज सब गोल्फर बन गए हैं। पुड्डुचेरी के 16 साल के टी-विशाल ने चार पदक जीते। गोवा की सिया सरोदे ने पावर लिफ्टिंग में 2 स्वर्ण पदक सहित चार पदक अपने नाम किए। नौ साल की उम्र में अपनी मां को खोने के बाद भी उन्होंने खुद को निराश नहीं होने दिया। छत्तीसगढ़ के दुर्ग के रहने वाले अनुराग प्रसाद ने पावर लिफ्टिंग में तीन स्वर्ण और एक रजत पदक जीता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आप सभी ने गुजरात के तीर्थक्षेत्र अंबाजी मंदिर के बारे में तो अवश्य ही सुना होगा। यह एक महत्वपूर्ण शक्तिपीठ है, जहां देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां अंबे के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। यहां गब्बर पर्वत के रास्ते में आपको विभिन्न प्रकार की योग मुद्राओं और आसनों की प्रतिमाएं दिखाई देंगी। क्या आप जानते हैं कि इन प्रतिमाओं की खास क्या बात है? दरअसल ये स्क्रैप से बनी मूर्तियां हैं, एक प्रकार से कबाड़ से बने हुए और जो बेहद अद्भुत हैं। यानि ये प्रतिमाएं इस्तेमाल हो चुकी, कबाड़ में फेंक दी गईं पुरानी चीजों से बनाई गई हैं। अंबाजी शक्ति पीठ पर देवी मां के दर्शन के साथ-साथ ये प्रतिमाएं भी श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बन गई हैं। इस प्रयास की सफलता को देखकर, मेरे मन में एक सुझाव भी आ रहा है। हमारे देश में बहुत सारे ऐसे लोग हैं, जो वेस्ट से इस तरह की कलाकृतियां बना सकते हैं। तो मेरा गुजरात सरकार से आग्रह है कि वो एक प्रतियोगिता शुरू करे और ऐसे लोगों को आमंत्रित करे। यह प्रयास, गब्बर पर्वत का आकर्षण बढ़ाने के साथ ही, पूरे देश में ‘वेस्ट टू वैल्थ’ अभियान के लिए लोगों को प्रेरित करेगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जब भी स्वच्छ भारत और ‘वेस्ट टू वैल्थ’ की बात आती है, तो हमें, देश के कोने-कोने से अनगिनत उदाहरण देखने को मिलते हैं। असम के कामरूप मेट्रोपोलिटन जिले में अक्षर फोरम इस नाम का एक स्कूल बच्चों में सतत विकास की भावना भरने का, संस्कार का, एक निरंतर काम कर रहा है। यहां पढ़ने वाले विद्यार्थी हर हफ्ते प्लास्टिक अपशिष्ट जमा करते हैं, जिसका उपयोग पर्यावरण के अनुकूल ईटें और चाबी की चेन जैसे सामान बनाने में होता है। यहां विद्यार्थ्यिों को पुनर्चक्रण और प्लास्टिक अपशिष्ट से उत्पादों बनाना भी सिखाया जाता है। कम आयु में ही पर्यावरण के प्रति ये जागरूकता, इन बच्चों को देश का एक कर्तव्यनिष्ठ नागरिक बनाने में बहुत मदद करेगी।