जब कोई सम्मान मिलता है, तो उसके साथ जिम्मेदारी भी बढ़ती है: मोदी
प्रधानमंत्री बोले: लोकमान्य तिलक नेशनल अवॉर्ड मिलना मेरे लिए सौभाग्य की बात है
'व्यवस्था निर्माण से संस्था निर्माण, संस्था निर्माण से व्यक्ति निर्माण, और व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण'
पुणे/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को महाराष्ट्र के पुणे में लोकमान्य तिलक पुरस्कार समारोह को संबोधित किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि आज का यह दिन मेरे लिए बहुत अहम है। मैं यहां आकर जितना उत्साहित हूं, उतना ही भावुक भी हूं। आज हम सबके आदर्श और भारत के गौरव बाल गंगाधर तिलक की पुण्यतिथि है। साथ ही आज अन्ना भाऊ साठे की जन्मजयंती भी है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि लोकमान्य तिलक तो हमारे स्वतंत्रता इतिहास के माथे के तिलक हैं, साथ ही अन्ना भाऊ ने भी समाज सुधार के लिए जो योगदान दिया, वो अप्रतिम है, असाधारण है। मैं इन दोनों ही महापुरुषों के चरणों में श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह पुण्यभूमि छत्रपति शिवाजी महाराज की धरती है। यह चापेकर बंधुओं की पवित्र धरती है। इस धरती से ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले की प्रेरणाएं और आदर्श जुड़े हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जो जगह, जो संस्था सीधे तिलक से जुड़ी रही हो, उसके द्वारा लोकमान्य तिलक नेशनल अवॉर्ड मिलना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। मैं इस सम्मान के लिए हिंद स्वराज्य संघ और आप सभी का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें जब कोई सम्मान मिलता है, तो उसके साथ ही हमारी जिम्मेदारी भी बढ़ती है। जब उस सम्मान से तिलक का नाम जुड़ा हो, तो दायित्वबोध और भी कई गुना बढ़ जाता है। मैं लोकमान्य तिलक नेशनल अवॉर्ड 140 करोड़ देशवासियों को समर्पित करता हूं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अंग्रेजों ने धारणा बनाई थी कि भारत की आस्था, संस्कृति, मान्यताएं, ये सब पिछड़ेपन का प्रतीक हैं, लेकिन तिलक ने इसे भी गलत साबित किया। इसलिए भारत के जनमानस ने न केवल खुद आगे आकर तिलक को लोकमान्यता दी, बल्कि लोकमान्य का खिताब भी दिया। इसीलिए महात्मा गांधी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता भी कहा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि एक महान नेता वह होता है, जो एक बड़े लक्ष्य के लिए न केवल खुद को समर्पित करता है, बल्कि उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संस्थाएं और व्यवस्थाएं भी तैयार करता है। इसके लिए हमें सबको साथ लेकर आगे बढ़ना होता है। सबके विश्वास को आगे बढ़ाना होता है। लोकमान्य तिलक के जीवन में हमें ये सारी खूबियां दिखती हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि लोकमान्य तिलक को अंग्रेजों ने जेल में डाला, उन पर अत्याचार हुए। उन्होंने आजादी के लिए त्याग और बलिदान की पराकाष्ठा की, लेकिन साथ ही उन्होंने टीम स्पिरिट के, सहभाग और सहयोग के अनुकरणीय उदाहरण भी पेश किए।
तिलक ने उस समय आजादी की आवाज को बुलंद करने के लिए पत्रकारिता और अखबार की अहमियत को भी समझा। अंग्रेजी में तिलक ने 'द मराठा' नाम का अखबार शुरू किया। मराठी में गोपाल गणेश अगरकर और विष्णु शास्त्री चिपलुनकर के साथ मिलकर उन्होंने 'केसरी' अखबार शुरू किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि लोकमान्य तिलक ने परंपराओं को भी पोषित किया था। उन्होंने समाज को जोड़ने के लिए सार्वजनिक गणपति महोत्सव की नींव डाली। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के साहस और आदर्शों की ऊर्जा से समाज को भरने के लिए शिव जयंती का आयोजन शुरू किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि ब्रिटेन में श्यामजी कृष्ण वर्मा युवाओं को अवसर देने के लिए दो स्कॉलरशिप चलाते थे - छत्रपति शिवाजी स्कॉलरशिप और महाराणा प्रताप स्कॉलरशिप। वीर सावरकर के लिए तिलक ने श्यामजी कृष्ण वर्मा से सिफारिश की थी। इसका लाभ लेकर वीर सावरकर लंदन में बैरिस्टर बन सके। ऐसे कितने ही युवाओं को तिलक ने तैयार किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि उस समय सावरकर युवा थे, तिलक ने उनकी प्रतिभा को पहचाना। वे चाहते थे कि सावरकर बाहर जाकर अच्छी पढ़ाई करें और वापस आकर आजादी के लिए काम करें। लोकमान्य तिलक इस बात को भी जानते थे कि आज़ादी का आंदोलन हो या राष्ट्र निर्माण का मिशन, भविष्य की ज़िम्मेदारी हमेशा युवाओं के कंधों पर होती है। लोकमान्य में युवाओं की प्रतिभा पहचानने की जो दिव्य दृष्टि थी, इसका एक उदाहरण हमें वीर सावरकर से जुड़े घटनाक्रम में मिलता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि व्यवस्था निर्माण से संस्था निर्माण, संस्था निर्माण से व्यक्ति निर्माण, और व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण, यह विजन राष्ट्र के भविष्य के लिए रोडमैप की तरह होता है। इसी रोडमैप को आज देश प्रभावी ढंग से फॉलो कर रहा है।
About The Author
Related Posts
Post Comment
Latest News

Comment List