यूसीसी: आम सहमति बनाएं

यूसीसी एक ऐसा मुद्दा है, जिसको लेकर भाजपा उत्साहित नजर आ रही है

यूसीसी: आम सहमति बनाएं

जब केंद्र सरकार सीएए लेकर आई थी तो उसके बारे में भी सोशल मीडिया पर बहुत अफवाहें फैलाई गईं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के ‘मेरा बूथ सबसे मजबूत’ कार्यक्रम में बूथ कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए जिस अंदाज में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) समेत विभिन्न मुद्दों का जिक्र किया, उससे संकेत मिल गया है कि ये अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में खूब चर्चा में रहने वाले हैं। मोदी विपक्ष को 'तुष्टीकरण' और 'वोटबैंक' के नाम पर घेरते हुए 'संतुष्टीकरण' का नारा देते हैं। वे 'परिवारवाद' पर प्रश्न उठाते हैं। 

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अब खासतौर से यूसीसी एक ऐसा मुद्दा है, जिसको लेकर भाजपा उत्साहित नजर आ रही है। इसके जवाब में विपक्ष के पास महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दे हैं। क्या देश को यूसीसी की जरूरत है? वैसे यह एक पुराना मुद्दा है, लेकिन इस पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई है। अब समय आ गया है कि इसके हर पहलू पर चर्चा हो। 

निस्संदेह संविधान सभा से लेकर संसद, विभिन्न सामाजिक संगठन, संविधान विशेषज्ञ और उच्चतम न्यायालय यूसीसी की संवैधानिक जरूरत की बात कह चुके हैं। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान निर्माताओं का यह स्वप्न था कि देश में सामाजिक समानता हो। सब पर एक जैसे कानून लागू हों। देश ने इस दिशा में प्रगति की है। लोगों में चेतना भी आई है। इसका परिणाम है कि आज सबके लिए समान कानून की बात हो रही है। 

हालांकि इस दिशा में कदम बढ़ाने के लिए बहुत जरूरी है कि यूसीसी से संबंधित हर बिंदु पर विस्तार से चर्चा की जाए। कोई भी दल मात्र इसलिए विरोध न करे, क्योंकि उसे विरोध ही करना है। मानव ने समय के साथ बहुत प्रगति की है। हर जमाने में परिस्थितियों के आधार पर नई समस्याएं आती हैं, जिनके लिए नए सुधारों की जरूरत होती है। अगर उन सुधारों को लागू नहीं करेंगे तो हानि उठाएंगे। आज महिला और पुरुष हर क्षेत्र में साथ आगे बढ़ रहे हैं। बल्कि पहले जो क्षेत्र सिर्फ पुरुषों के समझे जाते थे, वहां महिलाएं उनसे बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं।

देश को दोनों की शक्ति का पूर्ण लाभ मिले, इसके लिए जरूरी है कि समानता के सिद्धांत की स्थापना की जाए। विवाह, संपत्ति, विरासत ... जैसे कानूनों में समानता लाकर इनका सरलीकरण होना चाहिए। सरकार इस बात का ध्यान रखे कि यह सांप्रदायिक मुद्दा बिल्कुल न बने। 

जब प्रधानमंत्री ने भोपाल में भाषण दिया, उसके बाद विभिन्न सोशल मीडिया समूहों में शरारती तत्त्व भी सक्रिय हो गए हैं। वे यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को इस तरह पेश कर रहे हैं कि अगर यह कानून आ गया तो सबको एक जैसी यूनिफॉर्म पहननी पड़ेगी और कुछ समुदायों के धार्मिक पहनावे संबंधी पहचान छीन ली जाएगी! जबकि हकीकत यह है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड किसी के खानपान, पहनावे और धार्मिक आस्था में कोई हस्तक्षेप नहीं करता। 

जब केंद्र सरकार सीएए लेकर आई थी तो उसके बारे में भी सोशल मीडिया पर बहुत अफवाहें फैलाई गईं। यह कहा गया कि इससे लोगों की नागरिकता छीन ली जाएगी। इसके बाद राष्ट्रीय राजधानी में हिंसक घटनाएं हुई थीं। हालांकि उस कानून से एक भी व्यक्ति की नागरिकता नहीं गई, क्योंकि वह नागरिकता देने का कानून है, छीनने का नहीं! लेकिन कुछ तत्त्वों ने समाज में कटुतापूर्ण दुष्प्रचार कर दिया, जिससे नुकसान हुआ था। 

देश में दशकों तक ऐसे कानून चलते रहे, जिससे समाज के एक वर्ग को भेदभाव व असमानता का दंश झेलना पड़ा। इसका सबसे बड़ा उदाहरण जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए के प्रावधान थे। इस कारण भारत के अन्य राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में लागू होने वाले कई कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते थे। दशकों तक यह व्यवस्था चलती रही, जो सर्वसमाज को समान अधिकार देने में बाधाएं पैदा कर ही थी। 

मोदी सरकार ने ये प्रावधान हटाए तो कुछ विरोध हुआ, लेकिन जम्मू-कश्मीर में समानता का सूर्योदय हो गया, जिसके सुफल दिखाई देने लगे हैं और ये सबको मिलेंगे। यूसीसी को आम आदमी पार्टी ने सैद्धांतिक समर्थन दिया है, लेकिन विचार-विमर्श के बाद आम सहमति से ही इसे लाने की बात कही है। जब इस पर चर्चा होगी तो और पार्टियां भी सहमत नजर आएंगी। सरकार को चाहिए कि वह सबको विश्वास में लेकर ही इस दिशा में आगे बढ़े।

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