सबक नहीं लिया

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री मोदी की तुलना ‘जहरीले सांप’ से की है

सबक नहीं लिया

अगर राष्ट्रीय अध्यक्ष ऐसी टिप्पणी करेंगे तो सामान्य कार्यकर्ताओं की भाषा क्या होगी?

ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस ने अपने पिछले अनुभवों से कोई सबक नहीं लिया। उसके पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधने की कोशिश में इतने आगे निकल गए थे कि संसद सदस्यता गंवा बैठे और अब अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं। वहीं, कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे प्रधानमंत्री मोदी की तुलना ‘जहरीले सांप’ से कर रहे हैं। उन्होंने कर्नाटक में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की, लेकिन जब विवाद बढ़ा तो 'सफाई' देने लगे कि यह सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ थी। 

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खरगे ने यह टिप्पणी ऐसे समय में की है, जब कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। स्वाभाविक रूप से किसी भी विवेकशील व्यक्ति को यह बात अच्छी नहीं लगेगी कि उसके देश के प्रधानमंत्री की तुलना ‘जहरीले सांप’ से की जाए। यह तुलना गली-मोहल्ले का कोई नेता नहीं, एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल, जिसने केंद्र में सर्वाधिक समय तक शासन किया है, का अध्यक्ष करे तो संदेह भी पैदा होता है कि संगठन में नीतियों और सिद्धांतों का लोप होता जा रहा है! 

उसके वरिष्ठ नेता चुनावी माहौल के जोश में आकर कुछ भी कह देते हैं! फिर सफाई देने लगते हैं। बेहतर तो यह होता कि राहुल गांधी द्वारा 'मोदी उपनाम' को लेकर की गई विवादित टिप्पणी मामले में गुजरात की अदालत का फैसला आते ही इस पर गंभीरता से विचार-विमर्श किया जाता और सभी नेताओं को यह हिदायत दी जाती कि विवादित टिप्पणी करने से परहेज करेंगे। खासतौर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निजी हमले करने से बचेंगे। ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेताओं ने उस घटनाक्रम को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया।

अगर राष्ट्रीय अध्यक्ष ऐसी टिप्पणी करेंगे तो सामान्य कार्यकर्ताओं की भाषा क्या होगी? अध्यक्ष और वरिष्ठ नेताओं की वाणी तथा व्यवहार से कार्यकर्ता शिक्षा लेते हैं। अगर वे मर्यादा का उल्लंघन करने लगेंगे तो यही 'संदेश' नीचे तक जाएगा। फिर कार्यकर्ता भी ऐसी टिप्पणी करेंगे। कांग्रेस को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि उसने जब-जब नरेंद्र मोदी पर निजी हमले किए हैं, उनसे उसे ही नुकसान हुआ है। 

मोदी ने कांग्रेस के ऐसे शब्दबाणों का रुख उसकी ही ओर कर दिया था। फिर चाहे सोनिया गांधी द्वारा 'मौत का सौदागर', राहुल गांधी द्वारा 'चौकीदार ही ... है' और मणिशंकर अय्यर द्वारा '... आदमी' की टिप्पणी हो। मोदी ने कांग्रेस नेताओं के इन शब्दों को ऐसे घुमाया कि वे कालांतर में उन पर ही भारी पड़ गए। क्या कर्नाटक चुनाव में भी ऐसा हो सकता है? 

नरेंद्र मोदी शनिवार और रविवार को कर्नाटक के दो दिवसीय दौरे पर रहेंगे। मतदान की तारीख नजदीक आने के साथ ही यहां प्रधानमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की खूब जनसभाएं होंगी। उस दौरान पूरी संभावना है कि भाजपा खरगे के उक्त शब्दों को भी मुद्दा बनाए। कांग्रेस महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद और लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेताओं की पार्टी रही है, जिनके शब्द बड़े ही नपे-तुले होते थे। देश-विदेश से विद्वान संपादक उनके साक्षात्कार लेते थे। उनके शब्द-चयन की मिसाल दी जाती थी। 

ये वो नेता थे, जिन्होंने साम्राज्यवादी शक्तियों से लेकर चीन और पाकिस्तान से टकराव का दौर देखा था। राजनीतिक वाद-विवाद अपनी जगह थे, लेकिन उन्होंने किसी के लिए भी ऐसे शब्दों का उपयोग नहीं किया था। कांग्रेस नेताओं को चाहिए कि वे उनके ऐतिहासिक भाषणों का अध्ययन करें। हर पार्टी के नेताओं को वाणी की मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए। जिसका जितना बड़ा पद हो, उसे उतनी ही गंभीरता से वाणी पर संयम भी रखना चाहिए। अतीत में बोले गए कुछ शब्द भविष्य में बहुत महंगे पड़ सकते हैं।

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