चीन का आर्थिक साम्राज्यवाद

चीन का आर्थिक साम्राज्यवाद

चीन ने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था का जो हश्र किया है वह दूसरे देशों के लिए सबक हो सकता है। चीन छोटे-छोटे देशों की अर्थव्यवस्था को निवेश के नाम पर गुलाम बनाने की कोशिश कर रहा है। पहले ये देश निवेश की चकाचौंध में आ जाते हैं लेकिन जब वस्तुस्थिति का ज्ञान होता है तब तक काफी देर हो चुकी होती है। चीन ने श्रीलंका को भी इसी प्रकार से दिवालियेपन की कगार पर लाकर ख़डा कर दिया है। करीब चार साल पहले कोलबों से २५० कि.मी. दूर हब्बनटोटा में मताला राजपक्षे अतंराष्ट्रीय हवाई अड्डे’’ का चीनी मदद से निर्माण किया गया जिसकी लागत १.९० मिलियन डॉलर थी। यह हवाई अड्डा आज घाटे में चल रहा है। इसी तरह हंबनटोटा में ही चीन की कंपनियों द्वारा बनाए गए बन्दरगाह को भी आर्थिक रूप से नुकसानदेह पाकर श्रीलंका ने चीन को ९९ साल के पट्टे पर सौंप दिया है। भारत की सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखते हुए इस पट्टेनामे में यह शर्त जो़ड दी गई है कि चीन द्वारा इस बन्दरगाह का उपयोग सैन्य दृष्टि से नहीं किया जाएगा। श्रीलंका को दिए गए कर्ज पर चीन ६.३ प्रतिशत ब्याज वसूलता है जबकि विश्व बैंक व एशियाई विकास बैंक सिर्फ ०.२५ से ३ प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण देते हैं। चीन की यही रणनीति दूसरे छोटे देशों की अर्थव्यवस्था को भी निवेश के नाम पर अस्थिर करने की है। एशिया और अफ्रीका के दर्जन भर देशों में ओबोर परियोजना के नाम पर करीब एक ट्रिलियन डालर निवेश के माध्यम से बन्दरगाह, स़डके, रेल लाईने तथा दूसरे निर्माण कार्य कर रहा है। ये सब निर्माण कार्य चीनी कंपनियों द्वारा किए जा रहे हैं। जो ज्यादातर चीनी सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियां हैं। इससे सीमेंट, स्टील की खपत ब़ढ रही है। रोजगार ब़ढ रहे हैं। जिसके कारण चीन की सुस्त व्यवस्था को हवा मिल रही है। ओबोर परियोजना में कुल छः कॉरिडोर बनाए जाने की योजना है। खुद पाकिस्तान के कबायली इलाकों में इस परियोजना का विरोध हो रहा है। वर्ष २०१४ से जुलाई २०१७ तक इस परियोजना में लगे ६४ चीनी अधिकारी-कर्मचारी मारे जा चुके हैं। पाकिस्तान के बुद्धिजीवी वर्ग में भी चीन के प्रति शंका ब़ढती जा रही है। जानकारों का मानना है कि इस योजना में चीन का पाकिस्तान मे ८० प्रतिशत, म्यांमार में ५० प्रतिशत और मध्य एशिया में ३० प्रतिशत निवेश डूब जाएगा लेकिन महाशक्ति बनने की ललक में चीन यह जुआ खेलने को तैयार बैठा है।

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