इतिहास का ज्ञान, भविष्य का निर्माण

हमें इतिहास का ज्ञान होना चाहिए

इतिहास का ज्ञान, भविष्य का निर्माण

जिन्हें अपना इतिहास मालूम नहीं होगा, वे भविष्य का निर्माण कैसे करेंगे?

एनसीईआरटी ने आठवीं कक्षा की नई पाठ्यपुस्तक में मुगल शासकों के बारे में जो जानकारी दी है, उससे विद्यार्थियों को इनकी असलियत से रू-ब-रू होने में मदद मिलेगी। पिछले कई दशकों से पुस्तकों में मुगल शासकों का गुणगान किया जा रहा था। उन्हें न्यायकर्ता, संस्कृति के निर्माता, कलाप्रेमी, दयालु आदि बताया जा रहा था, जबकि हकीकत इससे कहीं अलग है। यह कहकर उनकी कथित महानता के किस्से खूब प्रचारित किए गए कि उन्होंने सुंदर इमारतों का निर्माण करवाया था। ऐसा कहने वाले यह नहीं बता पाते कि यहां आने से पहले मुगल जिन इलाकों में रहे, जहां शासन किया था, वहां कौनसी सुंदर इमारतें बना दीं और विकास का कौनसा उल्लेखनीय काम किया था? उन्होंने भारत में जो भी इमारतें बनाईं, वे भारतीयों की जमीन पर बनाईं, उनके निर्माण में भारतीयों का खून-पसीना लगा था। हमें इतिहास का ज्ञान होना चाहिए। जिन्हें अपना इतिहास मालूम नहीं होगा, वे भविष्य का निर्माण कैसे करेंगे और उन गलतियों से कैसे सीखेंगे, जो उनके पूर्वजों से हुई थीं? फलां बादशाह कब जन्मे और कब परलोक सिधार गए - इतिहास सिर्फ इन तिथियों और तथ्यों का संग्रह मात्र नहीं होता है। इस पर भविष्य की नींव टिकी होती है। आज हम जो कुछ भी हैं, इतिहास की कई घटनाओं के कारण हैं। जब बच्चों को स्कूलों में इतिहास का पाठ पढ़ाया जाता है तो बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। उसमें न तो अतिशयोक्ति होनी चाहिए और न ही किसी की उपेक्षा होनी चाहिए। दुर्भाग्य से ऐसा हुआ है। हमारे पाठ्यक्रम में ऐसे कई नेताओं की अनदेखी की गई या उनके योगदान के बारे में बहुत कम जानकारी दी गई, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए बड़े त्याग किए, महान बलिदान दिए थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, रास बिहारी बोस, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे कई नाम हैं, जिनके बारे में विद्यार्थियों को विस्तार से बताना चाहिए। ये कैसा भारत बनाना चाहते थे? यह समझाना चाहिए।

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इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में इस बात का खास तौर से जिक्र होना चाहिए कि हम विदेशी शासकों के गुलाम क्यों हुए थे? क्या वजह थी कि मामूली लुटेरे भी यहां आकर हुकूमत करने लगे थे? हमारे पूर्वज करोड़ों की तादाद में थे। इसके बावजूद मुट्ठीभर विदेशी लुटेरे यहां सदियों तक कैसे काबिज रहे? किन लोगों ने उनकी मदद की थी? वे कैसे हमारे समाज में फूट डालते रहे? हमारे साथ कैसे धोखा हुआ? अतीत में हुईं कुछ अप्रिय घटनाओं को कैसे टाला जा सकता था? अगर वे न होतीं तो आज का भारत कैसा होता? बच्चों को यह सब बताना चाहिए। इससे वे इतिहास की घटनाओं से सबक लेंगे और भविष्य में उन गलतियों को दोहराने से बचेंगे। यह देखकर आश्चर्य होता है कि कई स्कूली बच्चों को वर्ष 1965 और 1971 के युद्ध के बारे में कोई जानकारी नहीं है! उन्हें यह भी नहीं मालूम कि कारगिल युद्ध कब हुआ था, क्यों हुआ था! शत्रुबोध का अभाव यहीं से शुरू होता है। पांचवीं कक्षा तक के हर बच्चे को इन घटनाओं के बारे में मालूम हो जाना चाहिए। अगर पाकिस्तान, चीन जैसे देशों के संबंध में शत्रुबोध ही नहीं होगा तो भविष्य में दृढ़ कैसे रहेंगे? विद्यार्थियों को इतिहास के ज्ञान के साथ ही वर्तमान की चुनौतियों के बारे में भी जानकारी देनी चाहिए। इसके लिए सुबह प्रार्थना सभा में नियमित रूप से समाचार पत्रों का वाचन होना चाहिए। विद्यार्थियों को हमारे पड़ोसी देशों और बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य के बारे में जरूर समझाना चाहिए। इतिहास के ज्ञान और बेहतर वर्तमान से ही सुनहरे भविष्य का निर्माण संभव है।

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