अंकुश का काम करते हुए सबको नियंत्रण में रखते हैं सद्गुरु: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

बड़े-बड़े राजा सद्गुरुओं के समक्ष नतमस्तक रहे हैं

अंकुश का काम करते हुए सबको नियंत्रण में रखते हैं सद्गुरु: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

दक्षिण के अनेक राज परिवारों पर गुरुओं का गहरा प्रभाव था

गदग/दक्षिण भारत। शहर के राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में गुरुवार को जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में धर्मसभा को संबोधित करतेे हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि सद्गुरु के बिना मनुष्य भटक जाता है और राजा उद्दंडी बन जाता है। सद्गुरु अंकुश का काम करते हुए सबको नियंत्रण में रखते हैं। 

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आचार्यश्री ने कहा कि राजा हो या रंक, सद्गुरु के बिना सब अधूरे हैं। जीवन में ज्ञान का प्रकाश भी गुरु के माध्यम से ही आता है। संसार को नीति-रीति की शिक्षा भी गुरु देते हैं। भारतीय इतिहास में तो बड़े-बड़े राजा सद्गुरुओं के समक्ष नतमस्तक रहे हैं। अरब में सूफी संत खलीफाओं को मार्गदर्शन देते थे। 

छत्रपति शिवाजी अपने गुरु स्वामी रामदास की आशीष लेकर ही आगे बढ़ते थे। सम्राट विक्रम को आचार्य सिद्धसेन के रूप में महान गुरु की प्राप्ति हुई थी। चंद्रगुप्त मौर्य का निर्माण चाणक्य ने किया था और वे आचार्य भद्रबाहु को अपना सर्वस्व मानते थे। 

गुजरात के चौलुक्य सम्राट कुमारपाल का तो शुरू से अंत तक का जीवन सफर आचार्य हेमचंद्र के दिशानिर्देशों में संपन्न हुआ था। इनकी तरह अनेक राजाओं की जिंदगी सद्गुरुओं की कृपादृष्टि से सफल बनी हैं। दक्षिण के अनेक राज परिवारों पर गुरुओं का गहरा प्रभाव था। 

इससे यह फलित होता है कि भारतीय इतिहास में राजनायकों से भी धर्मनायक गुरु प्रभावशाली रहे हैं और उन्होंने राज्य व्यवस्थाओं में न्याय-नीति  का दिशानिर्देश देकर मानवता की बहुत भलाई की है।
 
आचार्य विमलसागरसूरीश्वर ने आगे कहा कि मौर्य सम्राट अशोक के पौत्र मालवा के अधिपति राजा संप्रति पर जैनाचार्य सुहस्तिसूरि का वरदहस्त था। रंक से राज सिंहासन तक पहुंचे सम्राट संप्रति ने विदेशों में जैनधर्म के प्रसार-प्रचार का ऐतिहासिक कार्य किया था। 

उनके युग में ईरान, इराक, सीरिया, तुर्की, कुवैत, तजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, अफगानिस्तान, इंडोनेशिया, मलेशिया, जकार्ता, सुमात्रा, नेपाल, तिब्बत, भूटान, श्रीलंका और मध्य एशिया व चीन के अनेक क्षेत्रों तक महावीरस्वमी के विश्वकल्याणकारी सिद्धांतों का व्यापक प्रचार हुआ था। 

उस युग में विदेशों में हजारों जैन मंदिरों के निर्माण हुए थे। आज भी इन देशों में जहां कहीं उत्खनन होता है, संप्रतिकालीन जैन प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं। यह बाईस सौ वर्ष पुराना गौरवशाली इतिहास है। सम्राट संप्रति द्वारा अहिंसा, शाकाहार, व्यसन मुक्ति, सदाचार आदि के लिए किए गए पुरुषार्थ में सद्गुरु सुहस्तिसूरि का स्पष्ट मार्गदर्शन था। इस अर्थ में सद्गुरु सिर्फ जीवन निर्माता ही नहीं, धर्म प्रचारक, संस्कृति रक्षक और राष्ट्र हितचिंतक भी होते हैं।

जैन संघ के ट्रस्टी दलीचंद कवाड़ ने बताया कि गुरुवार को हगरीबोम्मन हल्ली, गंगावती, हुब्बली, बल्लारी, होसपेट आदि अनेक क्षेत्रों के भक्तगण धर्मसभा में उपस्थित थे। कषाय जय तप की साधना सुंदर रूप से आगे बढ़ रही है। संघ के अध्यक्ष पंकज बाफना ने बताया कि कार्यकर्ताओं की बैठक में सैकड़ों युवक-युवतियों ने उत्साह पूर्वक भाग लिया जिन्हें गणि पद्मविमलसागरजी ने संबोधित किया।

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