आंखें ही मन का सबसे बड़ा दर्पण होती हैं: संतश्री ज्ञानमुनि

साधुओं को हमेशा नीचे देखकर चलना चाहिए

आंखें ही मन का सबसे बड़ा दर्पण होती हैं: संतश्री ज्ञानमुनि

किसी जीव की हिंसा न हो

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के सुमतिनाथ जैन संघ यलहंका में विराजित आचार्यश्री हस्तीमलजी के शिष्य श्री ज्ञानमुनिजी के सान्निध्य में गुरुवार को लोकेश मुनि जी ने कहा कि हमें हमारे कर्मों का कर्ज़ चुकाना ही पड़ता है चाहे वह इस भव को हो या पर भव का। 

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कोई भी अपनी मौत को टाल नहीं सकता, किंतु अपनी गति से अपने शुभ कार्यों से जरूर बदल सकता है। कोई भी सामान्य इंसान किसी बात का मात्र सामने से देखता है लेकिन एक ज्ञानी इंसान उसी बात के पीछे छुपे अर्थ को ढूंढ़ कर उसका समाधान करता है। 

संतश्री ज्ञान मुनि जी ने कहा कि साधुओं को हमेशा नीचे देखकर चलना चाहिए ताकि किसी जीव की हिंसा न हो और हर उपलब्ध घर से बिना किसी भेदभाव के गोचरी लेना चाहिए। 

मुनिश्री ने कहा कि जो भी विवेक रखता हैं, वक्त की कदर करते हैं, करुणामयी होते हैं, वात्सल्यपूर्ण होते हैं, अपनत्व भावनाओं का धनी होते हैं, विघ्नों से डरते नहीं, वह पंडित कहलाते हैं। आंखें ही मन का सबसे बड़ा दर्पण होती हैं। 

बड़ों के आशीर्वाद लेने से हर बिगड़ा काम भी बनता है और सब कार्य शुभ होते हैं। शुभ कार्यों को कभी भी टालना नहीं चाहिए तुरंत से तुरंत कर देना चाहिए। मनभेद को मतभेद में कभी नहीं बदलना नहीं चाहिए। 

सभा में सुमतिनाथ सकल जैन संघ के अध्यक्ष प्रकाशचंद कोठारी ने स्वागत किया एवं सभा का संचालन महामंत्री मनोहर लाल लुकड़ ने किया।

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