'चिंतन से जीवन परिवर्तन होता है और परिवर्तन ही प्रगति का कारण है'
इन्सान चिंतन की शक्ति से सम्पन्न है
चिंतन से समाधान मिलता है
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के जयनगर जैन स्थानक भवन में विराजित साध्वीश्री कंचनकंवरजी की निश्रा में साध्वीश्री दिव्ययशाजी ने कहा कि आज सारा संसार परचिंता की परिक्रमा कर रहा है। चिंतन से जीवन परिवर्तन होता है और परिवर्तन ही प्रगति का कारण है।
इन्सान चिंतन की शक्ति से सम्पन्न है। व्यक्ति की दृष्टि 'पर’ में जाकर टिकती है। व्यर्थ में उलझती है। यह चिंतन नहीं, बल्कि चिंता है, बहिर्मुखी चिंतन है। अधिकांश चिंतन बहिर्मुखी होता है। चिंता चिता के समान होती है। चिंतन से समाधान मिलता है। संतोष होता है। आनंद की अपूर्व अनुभूति होती है।साध्वीश्री ने कहा कि आत्मचिंतन-जीवन का ग्राफ प्रदर्शित करता है। जब तक चितंन नहीं होता है, तब तक व्यवहार एवं आचरण में सुधार, परिवर्तन नहीं आता है। संवर, सामायिक करने पर भी समता व समाधि नहीं है तो साधना में अधूरापन है। वह अधूरापन दूर होता है आत्मचिंतन से। बचपन नादान है, बुढ़ापा लाचार है। बीच की जिंदगी में अगर धर्म नहीं किया, सचिंतन नहीं किया तो जीवन ही बेकार है।
साध्वीश्री मलयाश्रीजी ने बताया कि आचारण सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध में भगवान महावीर ने कहा है कि कर्मसमारंभ को सबसे पहले जानो और उससे निवृत्त होने का प्रयास करना है। पापप्रवृत्ति को धीरे धीरे कम करना है।
प्रचार प्रसार मंत्री सागर बाफना ने बताया कि गुरुवार से आठ दिवसीय कार्यक्रम, आनंदऋषिजी की जयंती के अवसर पर एकासन, आयंबिल और तेला की तपस्या एवं सहजोड़े जाप के साथ आयोजित किया जाएगा । संघ के मंत्री पदमचन्द बोहरा ने सभी का स्वागत किया।


