यह दुश्चक्र तोड़ें
इन अफवाहों से लोगों में भय पैदा होता है

शरारती तत्त्वों को हंसने का मौका न दें
दिल्ली के कई स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकियों वाले ईमेल का सिलसिला कुछ गंभीर सवाल खड़े करता है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। कुछ महीने पहले अन्य राज्यों में भी स्कूलों, अस्पतालों और दफ्तरों को धमकी भरे ईमेल मिले थे। हालांकि ये सभी धमकियां कोरी अफवाहें साबित हुईं, लेकिन इनसे लोगों में भय पैदा हुआ। पुलिस और प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ी। इन धमकियों का मकसद क्या है? ये किसी की शरारत हैं या इनके पीछे गहरी साजिश है? जब भी किसी संस्थान को ईमेल पर ऐसी धमकी मिलती है, वहां दहशत फैल जाती है। वह संस्थान पुलिस को सूचना देता है। देखते ही देखते यह ख़बर समाचार चैनलों और सोशल मीडिया पर आ जाती है। इससे कहीं-न-कहीं लोगों में असुरक्षा की भावना पैदा होती है। वे कुछ समय के लिए अपने सुरक्षा बलों और एजेंसियों की क्षमता पर संदेह करने लगते हैं। इन धमकियों के पैटर्न पर गौर करें तो इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि कोई शरारती / आतंकी तत्त्व भारतीय नागरिकों को परेशान करना चाहता है। संभवत: वह दूर बैठकर ख़बरों पर नजर रखता होगा और पूरे घटनाक्रम पर हंसता होगा! चूंकि हमारे सुरक्षा बलों और एजेंसियों ने आतंकवाद को सख्ती से कुचला है, इसलिए आतंकी संगठन ऐसी धमकियां देकर ही खुद को थोड़ी तसल्ली देते होंगे। इन ईमेल के स्रोतों का पता लगाना जरूरी है। पूर्व में मिले धमकी भरे कई ईमेल के बारे में पता चला था कि उन्हें भेजने के लिए विदेशी सर्वरों का इस्तेमाल किया गया था। क्या ये धमकियां देने वाले तत्त्व सनसनी फैलने पर खुशी महसूस करते हैं? जब ऐसी खबरें वायरल होती हैं तो उन्हें जरूर लगता होगा कि 'हमारा काम पूरा हो गया।' सोशल मीडिया पर सूचनाओं के अनियंत्रित प्रसार के कारण एक ऐसा दुश्चक्र बन जाता है, जिससे दहशत फैलती है और शरारती तत्त्व उससे लुत्फ उठाते हैं तथा अगली धमकी की तैयारी में जुट जाते हैं।
हमें इस दुश्चक्र को तोड़ना होगा। इसके लिए मजबूत रणनीति बनाने की जरूरत है। सबसे पहले, स्कूलों, अस्पतालों या जिन संस्थानों को ऐसे ईमेल मिलें, उन्हें समझाना होगा कि वे सूचना सार्वजनिक न करें। वे पुलिस को जरूर सूचित करें, लेकिन जब सुरक्षा की दृष्टि से विद्यार्थियों, कर्मचारियों आदि को बाहर निकालें तो सनसनी न फैलाएं। यह बात सोशल मीडिया पर न आए तो ही बेहतर है। स्कूलों, कॉलेजों और अन्य संस्थानों में समय-समय पर मॉक ड्रिल का आयोजन करना चाहिए। इससे विद्यार्थी और कर्मचारी अधिक अनुशासित एवं अभ्यस्त होंगे। नागरिकों को भी समझाना होगा कि हर जानकारी सोशल मीडिया पर डालने के लिए नहीं होती है। यह 'सूचना युद्ध' का दौर है। इसमें दुश्मन चाहता है कि हम ऐसी सूचनाएं शेयर करें, जो उसके लिए फायदेमंद हों। सोचिए, जब विदेशों में लोग सोशल मीडिया पर पढ़ते होंगे कि भारत की राजधानी समेत कई शहरों में बम की धमकियां मिल रही हैं तो क्या वे यहां पर्यटन के लिए आना चाहेंगे? क्या वे अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, परिचितों को सलाह देंगे कि आप भारत घूमने जाएं? क्या वे यहां निवेश करना चाहेंगे? ये धमकियां अफवाह साबित होती हैं, लेकिन तब तक नुकसान हो जाता है। विदेशों में कितने लोग यह जानने को इच्छुक होंगे कि धमकी भरे ईमेल किसी की खुराफात थे? अपने देश में ही देख लें; जब 'बम की धमकी' संबंधी कोई पोस्ट सोशल मीडिया पर डाली जाती है तो लोग उस पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं। उसे शेयर भी ज्यादा किया जाता है। जब यह पता चलता है कि उक्त धमकी एक अफवाह थी, तो उससे संबंधित पोस्ट को उतनी प्रतिक्रिया नहीं मिलती। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सनसनी न फैलाएं। पुलिस और जांच एजेंसियों का सहयोग करें। शरारती तत्त्वों को हंसने का मौका न दें।About The Author
Related Posts
Latest News
