कैसे पटे विषमता की खाई
कैसे पटे विषमता की खाई
दुनिया में धनी और गरीब लोगों के बीच खाई तेजी से ब़ढ रही है। हर साल रिपोर्टें बताती हैं कि यह खाई और चौ़डी हो गई। यही बात क्रेडिट सुइस की ताजा वैश्विक संपदा रिपोर्ट से भी जाहिर हुई है। क्या दुनिया इस हकीकत से आंख मूंद सकती है? ऐसा भारी उथल-पुथल का जोखिम उठाते हुए ही किया जा सकता है। एक तरफ करो़डों लोगों का बुनियादी जरूरतों के लिए रोज संघर्ष करना और दूसरी तरफ अरबपतियों की संख्या में ब़ढोतरी ऐसा यथार्थ है, जिससे वैश्विक स्तर पर विकास की जारी नीतियां कठघरे में ख़डी होती हैं। आखिर ऐसा कैसे हो रहा है? पिछले दिनों जारी पैराडाइज पेपर्स से खुलासा हुआ कि धनी लोग और बहुराष्ट्रीय कंपनियां कर चोरी कर अपने धन में असीमित ब़ढोतरी कर रही हैं। कर चोरी के अड्डों को खत्म कर दिया जाए और तमाम देशों की सरकारें कर चोरी रोकने के दोष-मुक्त उपाय करें, तो गैर-बराबरी की खाई पर विराम लग सकता है। इस रिपोर्ट ने भारत में भी आमदनी और धन की ब़ढती विषमता पर से परदा हटाया है। इसके मुताबिक वर्ष २००० से भारत के लोगों की संपत्ति हर साल ९.९ फीसदी की दर से ब़ढी है। भारतीयों की संपत्ति में ४५१ अरब डॉलर की वृद्धि हुई। सर्वाधिक धन हासिल करने के मामले में भारत का स्थान दुनिया में ८वां रहा। लेकिन क्रेडिट सुइस ने कहा है, ’’एक तरफ भारत में धन-दौलत में तेजी से वृद्धि हो रही है, लेकिन इस समृद्धि में हर व्यक्ति शामिल नहीं है। यहां अभी भी काफी गरीबी है, जो इस तथ्य से जाहिर होता है कि ९२ फीसदी वयस्क जनसंख्या के पास १० हजार डॉलर (६,५३,९७५ रुपए) से कम संपत्ति है। दूसरे छोर पर केवल ०.५ फीसदी लोगों के पास एक लाख डॉलर (६५,३९,७५० रुपये) से अधिक की संपत्ति है।’’ भारत में दौलत मुख्य रूप से प्रॉपर्टी और अन्य वास्तविक संपत्तियों के रूप में है। कुल घरेलू संपदा में इसकी हिस्सेदारी ८६ फीसद है। निजी कर्जो की कुल संपत्तियों में महज नौ फीसद हिस्सेदारी है। इस लिहाज से कर्ज के मामले में विकसित देशों से हम काफी पीछे हैं। भले ही देश के अधिकांश गरीबों के लिए कर्ज का बोझ गंभीर समस्या है, मगर संपत्ति के मुकाबले परिवारों पर कुल कर्ज का आंक़डा कम है। भारत में एक फीसदी जनसंख्या का मतलब तकरीबन ४२ लाख लोग हैं। अपने देश में ३,४०,००० लोग ऐसे हैं, जो दुनिया के सबसे धनवान एक फीसदी लोगों में शामिल हैं। १,८२० भारतीयों के पास ५ करो़ड डॉलर से अधिक दौलत है। ७६० लोग १० करो़ड डॉलर से ज्यादा के मालिक हैं। ये लोग अपनी संपदा को उत्पादक कार्यों में लगाएं और वाजिब टैक्स चुकाएं, तो समृद्धि का लाभ शायद सब तक पहुंच सकता है। लेकिन ऐसा कैसे हो, यह आज न तो सार्वजनिक चर्चा का विषय है और न ही राजनीतिक मुद्दा है।