चेन्नई। सौर उर्जा को बढावा देने के उद्देश्य से राज्य सरकार द्वारा शुरु की गई छत पर सौर पैनल लगाने की योजना राज्य में पूरी तरह से विफल साबित हुई है। पुनरोत्सर्जित उर्जा को बढावा देने के लिए शुरु की गई यह राज्य की सत्तारुढ अखिल भारतीय अन्ना द्रवि़ड मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक)सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना है। सरकार द्वारा सूचना का अधिकार कानून के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में राज्य सरकार से जो आंक़डे प्राप्त हुए वह इस योजना के विफल होने की ओर संकेत देते हैं। सरकार ने मुख्यमंत्री रुफ टॉप सोलर पैनल योजना के तहत राज्य भर में १०,००० घरांे के उपर सौर उर्जा पैनल स्थापित करने का लक्ष्य रखा था लेकिन अब तक पूरे राज्य में सिर्फ ४६० सौर उर्जा पैनल स्थापित किए जा सके हैं और इनमें से ज्यादातर चेन्नई में हैं। राज्य सरकार ने सौर उर्जा उत्पादन के विभिन्न माध्यमों से राज्य भर में ३००० मेगावाट बिजली उत्पादित करने का लक्ष्य निर्धारित किया था लेकिन एक ओर जहां सौर उर्जा संयंत्र स्थापित करने वाली कंपनियां राज्य में सौर उर्जा संयंत्र स्थापित करने में सरकार की कर संबंधी नीतियों के कारण हिचक उत्पादन करने में हिचक रही हैं वहीं दूसरी ओर उपभोक्ताओं की ओर से भी अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली है।फ्यŽफ्ठ्ठर् ·र्ैंर् ख्य्द्यैंट्टर् द्मब्र््र तमिलनाडु उर्जा विकास एजेंसी द्वारा नवीन एवं पुनरोत्सर्जित उर्जा मंत्रालय द्वारा वेडरों को दी जाने वाली ३० प्रतिशत की सब्सिडी उपलब्ध करवाने की गारंटी नहीं ली जा रही है और यह भी एक ब़डा कारण है कि सौर उर्जा पैनल लगवाने में उपभोक्ता हिचिकिचा रहे हैं। यद्यपि राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाली २० हजार रूपए की सब्सिडी आसानी से प्राप्त की जा सकती है लेंकिन वेंडरों को ऐसा लगता है कि जब तक केन्द्र की ओर से आकर्षक सब्सिडी की घोषणा नहीं करते हैं तो उन्हें इस योजना से जु़डने से फायदा नहीं होगा।तमिलनाडु सौर उर्जा डेवलपर्स एसोसिएशन के अनुसार सोलर वेंडरों को ३० प्रतिशत की केन्द्रीय सब्सिडी प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना प़ड रहा है ऐसे में नवीन एवं पुनरुत्सर्जित उर्जा मंत्रालय से जु़डी कोई भी योजना मायने नहीं रखती। इसके साथ ही केन्द्रीय नवीन एवं पुनरुत्सर्जित उर्जा मंत्रालय द्वारा जवाहर लाल नेहरु राष्ट्रीय सौर मिशन नामक एक स्वतंत्र योजना चल रही है जो कि वर्ष २०१० में शुरु की गई थी जिसमें छत पर सौर उर्जा संयंत्र स्थापित करने वाले उपभोक्ताओं को ३० प्रतिशत की सब्सिडी दी जाती है लेकिन इस योजना के तहत भी अब तक मात्र २,९६५ सौर उर्जा इकाइयां स्थापित की गई हैं। ं़प्ट्टश्चद्यह्र ·र्ैंर् र्झ्ध्Žथ्त्रय् द्मब्र््रसौर उर्जा योजना के सफल न होने के कई कारण है इनमें से एक कारण देश में एक किलोवाट वाले इन्वर्टर की अनुपलब्धता है। सौर उर्जा पैनल का उत्पादन सिर्फ चीन में किया जाता है और यह तकनीक भी विश्वसनीय है। मौजूदा समय में सौर उर्जा पैनल स्थापित करने वाले उपभोक्ताओं की समस्या यह है कि प्रयोक्ता सौर पैनल से निकलने वाली उर्जा को इन्वर्टर से जो़डने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। तीसरी समस्या नेट मिटरिंेग तकनीक के माध्यम से तमिलनाडु इले्ट्रिरक उत्पादन एवं आपूर्ति निगम (टैंगेडको)के ग्रिड से जु़डने के आने वाली प्रशासनिक अ़डचनें हैं। मुख्यमंत्री जयललिता द्वारा शुरु की गई छतों पर सौर उर्जा प्रणाली स्थापित करने पर प्रति किलोवॉट २०,००० रुपए की सब्सिडी के साथ ही नवीन एवं पुनरुत्सर्जित उर्जा मंत्रालय द्वारा उपलब्ध करवाई जाने वाली ३० प्रतिशत की सब्सिडी देने का आश्वासन दिया गया था। छतों पर सौर उर्जा प्रणाली स्थापित करने की योजना के तहत ४०० से ज्याद सौर पैनल बेच भी दिए गए लेकिन ग्रिड को अतिरिक्त सौर उर्जा बेचने की योजना पहले ही दिन से विफल साबित हुई।द्मष्ठट्ट ्यद्बट्टद्य ·र्ष्ठैं ृय्द्धैंट्टद्म द्बष्ठ्र ख्रष्ठद्यर्सरकार ने अपने जवाब में बताया है कि नेट मीटर के प्रशासनिक आबंटन में उपभोक्ताओं को कई प्रकार की औपचारिकताओं को पूरा करना होता है। इस मीटर की विशेषता यह होती है कि यह सौर पैनल द्वारा उतपादित बिजली की यूनिट और टैंगेडको ग्रिड को ट्रांसमिट की गई बिजली की यूनिट दोनों ही दर्शाती है। अब तक नेट मीटर सभी घरेलू उपभोक्ताओं को उपलब्ध नहीं कराई जा सकी है। बहुत सारे उपभोक्ता अभी तक इस बात को लेकर अनजान हैं कि उनके सौर उर्जा पैनल से कितनी बिजली उत्पादित हुई है और ग्रिड द्वारा कितनी यूनिट बिजली की आपूर्ति की गई है। इस प्रकार उपभोक्ता इस भ्रम में है कि उन्हें कितना फायदा हुआ है। जिन उपभोक्ताओं ने इस योजना का लाभ उठाया है उनका यह कहना है कि सरकार की ओर से दावे के बावजूद बिजली विभाग के अधिकारी उपभोक्ताओं को उनके द्वारा उत्पादित सौर बिजली की गणना करने के बारे में सही ढंग से नहीं समझाते हैं।