वह लड़ाई जिसमें भारतीय सेना ने तोड़ा चीन का घमंड, मारे गए थे 300 से ज्यादा चीनी फौजी
वह लड़ाई जिसमें भारतीय सेना ने तोड़ा चीन का घमंड, मारे गए थे 300 से ज्यादा चीनी फौजी
इस घटना का कभी जिक्र नहीं करती चीनी फौज
नई दिल्ली/दक्षिण भारत। पड़ोसी देश चीन विस्तारवादी नीतियों पर चलते हुए तिब्बत को हड़प चुका है। कभी ‘हिंदी-चीनी, भाई-भाई’ का नारा लगाने वाले चीनी नेताओं ने ही बाद में विश्वासघात किया और 1962 में भारत पर अचानक हमला बोला।
उस समय भारत के पास पर्याप्त संसाधन नहीं थे, इसलिए युद्ध के नतीजे हमारे पक्ष में नहीं आए, लेकिन इसके पांच साल बाद एक ऐसी घटना हुई जब भारतीय सेना ने चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया। उस लड़ाई में चीन के 300 से ज्यादा फौजी मारे गए थे। चीनी फौज उस लड़ाई का जिक्र कभी नहीं करती। भारतीय सेना ने चीनी नेताओं और अफसरों के उस भ्रम को तोड़ दिया जिसके तहत वे अजेय होने का दावा करते थे।साल 1962 के चीन-भारत युद्ध के नतीजों के बाद पाकिस्तान को लगा कि यह कश्मीर हासिल करने का अच्छा मौका है। उसने 1965 में इसी नापाक मंशा से हमला किया लेकिन भारतीय सेना ने उसके इरादों को धूल में मिला दिया। इससे चीन महसूस करने लगा कि भारतीय सेना तेजी से मजबूत होती जा रही है। उसने दबाव बनाने की रणनीति के लिए अपने जवानों को आदेश दिया कि वे सरहद पर ऐसी हरकतें करें जिससे तनाव बढ़े।
चीन ने असम रायफल की एक बटालियन पर घात लगाकर हमला किया, इससे भारत के दो जवान शहीद हो गए। उस समय भारतीय सेना के अफसर ले. जनरल सगत सिंह ने चीनियों को सबक सिखाने की ठानी।
नाथू ला में गश्त के दौरान चीन और भारत के जवानों के बीच माहौल गरम हो जाता था। कभी-कभी यह कहासुनी धक्का-मुक्की में बदल जाती थी। 6 सितंबर, 1967 को ऐसे ही एक टकराव के दौरान चीन अफसर नीचे गिर गया और उसका चश्मा टूट गया।
रोज तनाव की घटनाओं को देखते हुए भारतीय सेना ने तय किया कि वह नाथू ला से सेबू ला तक अपने इलाके में तार की बाड़ लगाएगी। 11 सितंबर को भारतीय सेना के इंजीनियर और जवान बाड़ लगाने में व्यस्त थे, तभी चीनियों ने अचानक मशीन गन से गोलीबारी शुरू कर दी। इससे भारत के कई जवान लहूलुहान हो गए।
चीन के इस विश्वासघात के मद्देनजर सगत सिंह ने अपने जवानों को तोपखाने से हमले का आदेश दिया। भारत के ऐसे हमले की चीनियों ने कल्पना भी नहीं की होगी। इससे उन्हें भारी नुकसान हुआ। चीन के 300 से ज्यादा जवान हताहत हो गए। लड़ाई में भारत के 65 जांबाज शहीद हुए।
उस लड़ाई से चीन को तगड़ा झटका लगा। तोप के गोलों की बौछार से उसके कई ठिकाने तबाह हो गए थे। एक रिपोर्ट के अनुसार, 1962 की लड़ाई करीब एक महीने चली और उसका फैलाव लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक था। उसमें चीन के करीब 740 जवान मारे गए थे। वहीं, 1967 में सिर्फ तीन दिन चली इस लड़ाई में ही चीन को 300 से ज्यादा जवानों का नुकसान हुआ। तुलनात्मक रूप से यह बहुत बड़ी चोट थी। चीन आज तक उस लड़ाई को लेकर खामोश है और अपने नागरिकों के सामने कभी उसका जिक्र तक नहीं करता।