प्राकृतिक खेती और स्वस्थ भारत

'प्राकृतिक खेती एक वैज्ञानिक प्रयोग है, जिसके कई लाभ हैं'

प्राकृतिक खेती और स्वस्थ भारत

मानव शरीर को शुद्ध भोजन चाहिए

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्राकृतिक खेती के बारे में जो बयान दिया है, वह स्वागत योग्य है। वरिष्ठ राजनेता इसी तरह जागरूकता का प्रसार करें तो देश खेती-बाड़ी के क्षेत्र में बहुत उन्नति कर सकता है। अमित शाह ने सत्य कहा कि 'प्राकृतिक खेती एक वैज्ञानिक प्रयोग है, जिसके कई लाभ हैं।' देश में जब से रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल होने लगा है, लोगों को कई बीमारियों ने आ घेरा है। आज युवाओं को थायराइड, मधुमेह जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं! बच्चों की आंखों पर कम उम्र में ही चश्मा चढ़ रहा है। पहले, कैंसर जैसी बीमारियां बहुत कम लोगों को होती थीं। अब अस्पतालों में इसके मरीजों की भीड़ दिखाई देती है। यहां तक कि गांवों में लोग कैंसर की चपेट में आ रहे हैं। अनाज, दालें, दूध, घी - सभी में हानिकारक रसायन घुल गए हैं। प्रकृति ने हमें जो शरीर दिया है, वह ऐसे रसायनों को लंबी अवधि तक बर्दाश्त करने के लिए नहीं बना है। हमें शुद्ध भोजन चाहिए। इसके लिए प्राकृतिक खेती को अपनाना ही होगा। इसे सोशल मीडिया ने एक बड़ा मंच दिया है। यूट्यूब पर ऐसे दर्जनों चैनल मिल जाएंगे, जो प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। आज ऐसे किसान आगे आ रहे हैं, जो उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। उनमें से कुछ तो विदेशों में नौकरी कर चुके हैं। वे अपने संसाधनों से ही प्राकृतिक खाद और कीटनाशक बना रहे हैं। हालांकि उनके काम में मेहनत बहुत लगती है। वे फिर भी इसे आगे बढ़ा रहे हैं, क्योंकि ऐसे खाद और कीटनाशक धरती तथा मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं।

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कुछ वैज्ञानिक और चिकित्सक भी प्राकृतिक खेती में रुचि ले रहे हैं। उनके सामने ऐसे मामले आए हैं, जब किसी गांव और उसके आस-पास के इलाकों में कई लोग एक ही तरह की स्वास्थ्य समस्या का सामना करने लगे। उन्होंने पाया कि इसके पीछे जहरीले कीटनाशकों का प्रयोग एक बड़ी वजह है। पश्चिम अफ्रीकी देश माली में प्राकृतिक कीटनाशक बहुत मददगार साबित हो रहे हैं। वहां बड़े पैमाने पर संतरा की खेती होती है। पिछले कुछ वर्षों में सफेद दीमक का प्रकोप काफी बढ़ गया था, जिसके कारण खेती चौपट होने लगी थी। किसान खूब मेहनत करते थे, लेकिन पेड़ पर फल नहीं लग पाते थे। उन्होंने कई तरह के रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया, फिर भी कोई खास लाभ नहीं हुआ। इसके बाद उन किसानों को नीम के तेल से बने प्राकृतिक कीटनाशक का इस्तेमाल करने की सलाह दी गई। माली में वर्षों पहले नीम के पौधे भारत से लाए गए थे। जब किसानों ने नीम के तेल से कीटनाशक बनाकर पेड़ों पर स्प्रे किया तो नतीजे चौंकाने वाले रहे! उससे सफेद दीमक का खात्मा होने लगा और पेड़ दोबारा लहलहाने लगे। यही नहीं, माली में मक्का की खेती में कीड़े लगने से बहुत नुकसान होता था। उन पर काबू पाने के लिए किसान जहरीले कीटनाशकों का स्प्रे करते थे। इससे हर साल हजारों लोग बीमार भी पड़ते थे। इन कीटनाशकों को खरीदने पर बहुत धन खर्च होता था। अब कुछ संस्थाएं किसानों को प्राकृतिक कीटनाशक बनाने की विधि सिखा रही हैं। मक्का की फसल पर इनके स्प्रे से फसल सुरक्षित होने लगी है। इससे खेतों की उपज बढ़ रही है। माली के किसानों के लिए नीम के पेड़ वरदान सिद्ध हो रहे हैं। अगर हमारे किसान भी उचित प्रशिक्षण लेकर खेती में प्राकृतिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल को प्राथमिकता दें तो भविष्य में स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था, दोनों को अनेक लाभ होंगे।

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