समय के साथ बदलें दुकानदार, अपने एटीट्यूड में भी लायें बदलाव

समय के साथ बदलें दुकानदार, अपने एटीट्यूड में भी लायें बदलाव

श्रीकांत पाराशर
समूह संपादक, दक्षिण भारत राष्ट्रमत

बेंगलूरु/चेन्नई/ दक्षिण भारत। 20 अप्रैल से टीवी, फ्रिज, कूलर, मोबाइल फोन, गारमेंट्स जैसे गैर जरूरी सामान की आनलाइन बिक्री खुलने वाली थी, वह फिलहाल रुक गई है। आगामी 3 मई तक घोषित लाकडाउन में इस प्रकार के सामान की आनलाइन बिक्री नहीं की जा सकेगी। भारत का मध्यमवर्गीय व लघु दुकानदार यही चाहता था। उसने आवाज उठाई। अनेक व्यापारिक संगठनों एवं निजी तौर पर व्यापारियों ने अपने अपने तरीके से देश के सर्वोच्च नेतृत्व तक अपनी पीड़ा पहुंचाने की कोशिश की।

मैंने भी कल एक लेख लिखकर इन व्यापारियों का समर्थन किया था और ट्वीटर के माध्यम से भी लेख शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचाया था। सरकार ने देशव्यापी इस मांग पर अविलंब गौर किया और लाकडाउन में आनलाइन कंपनियों को गैर जरूरी सामान बेचने की छूट को वापस ले लिया। निश्चय ही कुछ हद तक व्यापारियों को सरकार के इस कदम से राहत मिलेगी परंतु लाकडाउन के बाद ग्राहक आनलाइन के जरिए इस प्रकार का सामान नहीं खरीदेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। ग्राहक इसके लिए स्वतंत्र है कि वह किस माध्यम से और किस जगह से अपनी पसंद का सामान खरीदे।

मेरे कल के लेख को फेसबुक पर लगभग 5 हजार से ज्यादा लोगों ने पढा और वाट्सएप पर भी बहुत सारी टिप्पणियां आईं। अखबार में पढकर अनेक पाठकों ने फोन किए। जागरूक पाठकों ने जो महत्वपूर्ण बातें लिखीं, जो सुझाव दिए, उनका उल्लेख यहां संक्षेप में नहीं करूंगा तो यह व्यापारियों के हित में नहीं होगा। हालांकि अधिकांश पाठकों ने छोटे और मध्यम व्यापारियों की पीड़ा को समझा और इस बात का समर्थन किया कि लाकडाउन के बीच केवल आनलाइन बिक्री की अनुमति देने से यह दुकानदारों के अवसर पर डाका डालने के समान है इसलिए जब दुकान खुलें तभी इन कंपनियों को भी टीवी, फ्रिज, मोबाइल, गारमेंट्स, होम एप्लाएंसेज बेचने की अनुमति दी जाए। सरकार ने मान भी लिया।परंतु यहां यह बताना आवश्यक है कि देश का नागरिक इन दुकानदारों से भी कुछ कारणों से नाराज़ है।

कुछ लोग लिखते हैं कि हर मोहल्ले, बस्ती में जो मीडियम स्तर के दुकानदार हैं, छोटे दुकानदार हैं उनका रवैया इस लाकडाउन में संतोषजनक नहीं रहा। ग्राहक की मजबूरी का फायदा उठाते हुए डेढ गुणा दामों में सामान बेचा गया। लाकडाउन की शुरुआत में घबराहट के चलते लोग जल्दी जल्दी अपने क्षेत्र के दुकानदारों के पास पहुंचे और आवश्यकता से कुछ ज्यादा ही सामान खरीदा। सामान की कोई कमी न होते हुए भी सप्लाई की कमी का बहाना बनाकर दुकानदारों द्वारा ग्राहकों को लूटा गया। सप्लाई तो अभी भी पर्याप्त है फिर भी कुछ दुकानदार बेजां फायदा उठा रहे हैं। उन्होंने यह नहीं सोचा कि अगर उनको दुकानें खोलने की छूट नहीं दी जाती और सरकार केवल आनलाइन सप्लाई की छूट देती तो वे क्या कर लेते?

‘दक्षिण भारत राष्ट्रमत’ में प्रकाशित आलेख

मतलब साफ है कि मौका जब पड़ता है तो सब एक जैसा व्यवहार करने लगते हैं। बहुत लोगों ने तो शिकायत की है कि दुकानदार यह कहने में भी नहीं हिचकते कि रेट यही है, लेना है तो लीजिए, समय बर्बाद मत कीजिए, आगे बढिए। जब दुकानदारों का ऐसा एटीट्यूड होगा तो जनता उनके प्रति सहानुभूति क्यों रखेगी? इसलिए बहुत जरूरी है कि मीडियम स्तर के दुकानदार समय के साथ अपना व्यवहार भी बदलें ताकि ग्राहक के साथ उनका एक अच्छा रिश्ता कायम रह सके। यह मत भूलिए कि पुराने समय में आपसी मधुर रिश्तों के बल पर ही व्यापार-व्यवहार चलता था।

लोगों का यह भी कहना है कि आनलाइन खरीदी में वैराइटी विकल्प बहुत ज्यादा होते हैं तो पसंद की चीज का चयन करने में आसानी होती है और रेट भी वाजिब रहती है क्योंकि कंपनियों को निर्माता से जो डिस्काउंट मिलता है या कम रेट में सामान मिलता है तो कंपनी अपने लाभ में से एक बड़ा हिस्सा ग्राहक को ट्रांसफर करती है जबकि दुकानदार अपने लाभ का लोभ ज्यादा करने के कारण डिस्काउंट भी पूरा ग्राहक को नहीं देता। इससे वस्तु का कुल मूल्य ज्यादा रहता है और आज के समय में ग्राहक ज्यादा जागरूक और समझदार है। वह सब आप्शन आनलाइन ढूंढता है तथा जहां रेट कम हो, वहां से सामान खरीदता है। इसलिए दुकानदारों को अब इस प्रतिस्पर्धा वाली चुनौती का सामना करने में भी अपने आपको सक्षम बनाना चाहिए।

एक और खास बात है, जो आनलाइन खरीदी की ओर ग्राहक को आकर्षित करती है और वह है सामान की वापसी की सुविधा। अगर कोई सामान ग्राहक को पसंद नहीं आया तो आनलाइन कंपनी वह वस्तु वापस लेने का आप्शन देती है। जबकि आजकल दुकानदार तो खरीदे माल की वापसी की बात तो छोड़िए, एक्सचेंज करने के लिए भी बहुत नानुकर करते हैं। जो लोग एक्सचेंज की सुविधा देते हैं वे अपना ग्राहक बचाने में कामयाब रहते हैं।

अब इस सच्चाई को स्वीकार कर लीजिए कि देश में आनलाइन कंपनियों ने अपना जबरदस्त नेटवर्क बना लिया है। यह कंपनियां सहज ही कहीं जाने वाली नहीं हैं, जब तक कि कोई विशेष परिस्थितियां निर्मित न हो जाएं। ऐसी स्थिति में इनका मुकाबला आप केवल अपनी सशक्त रणनीति से कैसे कर सकते हैं। इस पर दुकानदारों को चिंतन करना चाहिए। ग्राहक को आकर्षित करने की अधिकाधिक पेशकश, अपने लाभांश को उचित अनुपात में रखकर शेष लाभ ग्राहक को देने की मंशा रखने की जरूरत है।

ग्राहक को किसी जमाने में भगवान के समान माना जाता था, अब भगवान नहीं तो कम से कम उचित सम्मान के साथ उससे व्यवहार अपेक्षित है। इसलिए दुकानदार अपने एटीट्यूड में बदलाव लाएं। यह भी सच है कि सब दुकानदार हेकड़ीबाज नहीं होते हैं। इसीलिए, जो व्यवहार सही रखते हैं, उनका व्यवसाय भी संतोषजनक चलता है। सरकार किसी की भी हो, समय कोई भी हो, न पूर्व में कभी दुकानदारों के हितों पर किसी ने ज्यादा सहानुभूति दिखाई, न ही ऐसा लगता है कि भविष्य में कोई चमत्कार होगा। व्यापारी हमेशा कड़ी मेहनत करता है, हमेशा करनी होगी। हां, उन पर ज्यादती होती दिखे तो उन्हें स्वयं को एकजुट होकर अपनी बात सरकार के शीर्ष तक पहुंचानी होगी। इससे ज्यादा सरल और कोई उपाय नहीं है।

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