अदालतों को तार्किक आदेश पारित कर,जीतने-हारने के पीछे का तर्क बताना चाहिए

अदालतों को तार्किक आदेश पारित कर,जीतने-हारने के पीछे का तर्क बताना चाहिए

नई दिल्ली/भाषा उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि प्रत्येक मामले में अदालतों को तार्किक आदेश पारित करने की जरूरत है, ताकि मामले में शामिल पक्षों को यह समझने में मदद मिल सके कि क्यों एक पक्ष मामला जीत गया और दूसरा पक्ष हार गया। शीर्ष न्यायालय ने भविष्य निधि अंशदान से जु़डे एक मामले को नए सिरे से फैसला करने के लिए फिर से मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के पास भेज दिया।न्यायमूर्ति ए एम सप्रे और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने कहा कि अदालत को अपने आदेश में संबंधित मुद्दों पर लागू कानूनी सिद्धांतों को रेखांकित करना चाहिए। पीठ ने कहा कि बार-बार उच्चतम न्यायालय इस बात पर जोर देता है कि अदालतों को प्रत्येक मामले में तार्किक आदेश पारित करने की जरूरत है जिसमें मामले से जु़डे पक्षों की दलीलें और तथ्यों का वर्णन हो, मामले से संबंधित मुद्दों का वर्णन हो और इसमें जो कानूनी सिद्धांत लागू किए गए हों, उसकी जानकारी के साथ ही किसी तथ्य को स्वीकार करने के पीछे का कारण और तर्क भी हों।न्यायालय ने कहा कि यह सच में दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस मामले में उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने रिट याचिका का निपटारा करते समय इन सिद्धांतों को ध्यान में नहीं रखा। पीठ ने कहा, इस तरह के आदेश हमारी दृष्टि में निस्संदेह संबंधित पक्षों में पूर्वाग्रह पैदा करते हैं क्योंकि उन्हें एक पक्ष के हारने और दूसरे पक्ष के जीतने के पीछे का तर्क समझने से वंचित रखा जाता है। इसने कहा कि उच्च न्यायालय ने जिस तरह से आदेश पारित किया, शीर्ष अदालत उसका समर्थन कभी नहीं कर सकती और इसीलिए उसे रिट याचिका पर गुण-दोष के आधार पर नए सिरे से फैसला करने के लिए मामला दोबारा उच्च न्यायालय को भेजना प़डा है।केंद्रीय न्यासी बोर्ड (सी बी टी) की ओर से पेश अधिवक्ता कहा कि बोर्ड ने अर्द्ध कुशल श्रेणी के तहत कर्मचारियों के लिए निर्धारित न्यूनतम वेतन से कम वेतन पर वर्ष २००५-०६ में भविष्य निधि अंशदान का भुगतान न किए जाने पर इंदौर कंपोजिट प्राइवेट लिमिटेड को १९ मई २००८ को कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम के तहत सम्मन जारी किए थे। उन्होंने कहा कि कंपनी ने जवाब दिया कि विभाग ने फॉर्म ३ ए में पहले से ही उल्लिखित कर्मचारियों के गैर कामकाजी दिनों पर विचार नहीं किया और कुछ अकुशल कर्मचारी भी थे, लेकिन विभाग ने उन सभी को अर्द्ध कुशल के रूप में माना है।बोर्ड ने कंपनी के जवाब पर विचार करने के बाद उसे निर्देश दिया कि वह आदेश प्राप्त होने की तारीख से १५ दिन के भीतर ८७,२०४ रुपए जमा करे। बोर्ड ने इसके साथ ही २१ जनवरी २०१५ को कंपनी को निर्देश दिया कि वह भुगतान में विलंब के चलते क्षतिपूर्ति एवं सम्बद्ध देय राशि के रूप में ९१,५८५ रुपए का भुगतान करे।कंपनी ने बोर्ड के आदेश को कर्मचारी भविष्य निधि अपीलीय प्राधिकरण, नई दिल्ली के समक्ष चुनौती दी। प्राधिकरण ने बोर्ड के आदेश को दरकिनार कर दिया। बोर्ड ने इसके बाद प्राधिकरण के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी, लेकिन इसने याचिका को खारिज कर दिया और अपीलीय प्राधिकरण के आदेश को बरकरार रखा। इसके बाद बोर्ड ने उच्च न्यायालय के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी।

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