दिखावे के लिए नहीं बल्कि आत्मरक्षा के लिए हैं हथियार

दिखावे के लिए नहीं बल्कि आत्मरक्षा के लिए हैं हथियार

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय का कहना है कि हथियार रखना किसी का मौलिक अधिकार नहीं है और आजकल हथियार रखना आत्मरक्षा के स्थान पर ज्यादातर दिखावे और शान के लिए है। न्यायमूर्ति सजीव सचदेव ने हथियार के लाइसेंस हेतु एक निजी कंपनी का आवेदन रद्द करते हुए उक्त बात कही। कंपनी को लाइसेंस देने का अनुरोध पुलिस का लाइसेंस प्राधिकार और उपराज्यपाल भी खारिज कर चुके हैं। लाइसेंस प्राधिकार और उपराज्यपाल के फैसले को बरकरार रखते हुए अदालत ने कहा, हम बिना कानून-व्यवस्था वाले समाज में नहीं रह रहे हैं, जहां लोगों को अपनी सुरक्षा के लिए हथियार रखने या उठाने की जरूरत हो। अदालत ने कहा कि हथियार कानून का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि नागरिकों को आत्मरक्षा के लिए हथियार मिलें, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि सभी नागरिकों को हथियार रखने का लाइसेंस मिलना चाहिए। अदालत ने कहा, कानून का लक्ष्य आत्मरक्षा है। हथियार का लाइसेंस देना कानून की ओर से मिला हुआ विशेषाधिकार है। किसी व्यक्ति को हथियार रखने का मूल अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा, आजकल हथियार रखना हैसियत की बात बन गई है। ज्यादातर लोग हथियार सिर्फ यह दिखाने के लिए चाहते हैं कि वे प्रभावशाली व्यक्ति हैं। विवाहों आदि में खुशी के मौके पर गोलियां चलाने के लिए भी हथियारों का प्रयोग हो रहा है। याचिका दायर करने वाले ने कहा था कि वह रोजाना दो-तीन लाख रुपए नकद का व्यापार करता है और उसे धन तथा अपनी सुरक्षा के लिए हथियार की जरूरत है।

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