सबक और सतर्कता से रोकें भगदड़
हादसे सूचना देकर नहीं आते

ज्यादा भीड़ होने पर सुरक्षा जोखिम बढ़ जाता है
कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार का यह बयान स्वागत योग्य है कि राज्य ने हाल की भगदड़ से सबक लिया है और भविष्य में सार्वजनिक सभाओं के प्रबंधन के लिए कानून लाने पर विचार किया जा रहा है। इस संबंध में न सिर्फ कर्नाटक, बल्कि हर राज्य और केंद्रशासित प्रदेश को सोचना चाहिए। भगदड़ जैसी घटनाओं को टाला जा सकता है, बशर्ते सतर्कता दिखाते हुए जरूरी इंतजाम पहले ही कर लिए जाएं। इसके लिए परिस्थितियों और संसाधनों को ध्यान में रखते हुए एक विस्तृत नियमावली तैयार करनी होगी। किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम के आयोजकों के लिए उसका पालन करना अनिवार्य होना चाहिए। सबसे पहले तो यह जरूरी है कि आयोजन स्थल पर उसकी क्षमता से कुछ कम लोगों को ही प्रवेश दिया जाए। अगर ओवर क्राउडिंग होगी तो हादसे की आशंका होगी। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त संख्या में बैरियर, रस्सियां आदि लगाकर अलग-अलग कतारें बनाना बेहतर होता है। प्रवेश और निकास के लिए पर्याप्त संख्या में द्वार होने चाहिएं। कई जगह इस वजह से धक्कामुक्की की घटनाएं हो जाती हैं, क्योंकि द्वार बहुत संकरे और कम संख्या में थे। आयोजन स्थल पर प्रशिक्षित सुरक्षाकर्मियों को तैनात करने से भीड़ नियंत्रण में सहायता मिलती है, लेकिन कार्यक्रम की योजना बनाते समय जोखिम का आकलन जरूर करना चाहिए। रास्ते संकरे हैं या चौड़े, आस-पास बिजली के तार तो नहीं हैं, कोई कुआं, गड्ढा या तालाब तो नहीं है, क्या रेलवे की पटरियां नजदीक हैं, क्या वहां ज्वलनशील सामग्री मौजूद है ... जैसे जोखिमों का पहले ही आकलन कर लेना चाहिए।
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आयोजन स्थल पर अग्निशमन यंत्र रखना अनिवार्य होना चाहिए। कई बार आयोजक यह सोचकर इंतजाम नहीं करते कि आज तक कभी जरूरत नहीं हुई तो आगे भी नहीं होगी। हादसे सूचना देकर नहीं आते। आयोजकों को चाहिए कि वे प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था रखें और अस्पतालों के साथ भी समन्वय बनाकर रखें, ताकि आपात स्थिति में मदद मिलने में आसानी हो। जिस दिन आयोजन हो, उससे पहले ही लोगों के लिए नक्शानुमा एक तस्वीर सोशल मीडिया, वॉट्सऐप ग्रुप आदि में पोस्ट कर देनी चाहिए, जिसमें सभी महत्त्वपूर्ण स्थानों के बारे में बताया गया हो। उस पर जरूरी फोन नंबर दिए जा सकते हैं। साइनबोर्ड लगाने से भी लोगों के लिए सुविधा होगी। जब एक जगह हजारों या लाखों लोग इकट्ठे होते हैं तो सुरक्षा जोखिम बहुत बढ़ जाता है। वहां मामूली-सी भगदड़, अफवाह, धक्कामुक्की, भ्रम से भारी नुकसान हो सकता है। कई बार ऐसा देखने में आता है कि कतार में सबसे पीछे खड़े लोगों में से किसी ने जल्दबाजी के कारण धक्का दिया तो कई लोग नीचे गिर गए। उसका असर आगे खड़े लोगों तक पहुंच सकता है। इस समस्या का समाधान उस भीड़ को छोटे-छोटे समूहों में बांटकर किया जा सकता है। छोटे समूहों को नियंत्रित करना आसान होता है। अगर उस दौरान कोई 'घटना' हुई भी तो उसका असर सीमित रहेगा। सीसीटीवी कैमरों तथा ड्रोन से आयोजन स्थल की निगरानी करने और ऑनलाइन बुकिंग के जरिए टाइम स्लॉटेड एंट्री देने से व्यवस्थाओं को सुविधाजनक बनाया जा सकता है। किसी भी आयोजन से पहले आयोजकों और स्वयंसेवकों के लिए भीड़ प्रबंधन एवं आपातकालीन प्रतिक्रिया का प्रशिक्षण जरूरी होना चाहिए। खेलकूद, मनोरंजन और ऐसे कार्यक्रम जिनमें उत्साह या जश्न का माहौल होता है, वहां अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। प्राय: ऐसे मौकों पर भावनाएं हावी रहती हैं और अनुशासन कमजोर पड़ जाता है। कुछ लोग हर जगह ही बेवजह जल्दबाजी मचाते रहते हैं। उनके सार्वजनिक व्यवहार में सुधार की ओर ध्यान देना चाहिए।About The Author
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