भारतीय इंजीनियरिंग का कमाल

इस पुल ने ऊंचाई के मामले में एफिल टावर को भी पछाड़ दिया है

भारतीय इंजीनियरिंग का कमाल

टीम की इस बात के लिए सराहना होनी चाहिए

चिनाब नदी पर बना दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल भारतीय इंजीनियरिंग का शानदार नमूना है। यह देश की दृढ़ इच्छाशक्ति का एक और प्रमाण है। इसकी तस्वीरें देखकर लोग हैरान हैं। अक्सर जब कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले इलाकों में निर्माण कार्यों की बात आती है तो अमेरिका और चीन का जिक्र होता है। अब दुनिया भारत की मिसाल देगी, जिसने ऐसे इलाके में सबसे ऊंचा रेलवे पुल बना दिया, जहां साजो-सामान लेकर जाना भी बहुत मुश्किल था। अगर देश ठान ले तो सबकुछ कर सकता है। यह पुल अपनेआप में एक अजूबा है। इस पर ट्रेनें दौड़ेंगी, जिससे यात्रियों का समय बचेगा। इसके अलावा यह पुल पर्यटकों में बहुत मशहूर होगा। लोग इसके साथ तस्वीरें लेंगे। दुनियाभर के पर्यटक इसे देखना चाहेंगे। इस पुल ने ऊंचाई के मामले में एफिल टावर को भी पछाड़ दिया है। अब सरकार और नागरिकों की जिम्मेदारी है कि सोशल मीडिया पर इसका प्रचार करें। एफिल टावर को हर साल साठ से सत्तर लाख लोग देखने आते हैं। इस पुल के आस-पास ऐसी सुविधाओं का निर्माण करना चाहिए, जिससे यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या करोड़ों में हो। खासकर यूट्यूबरों के लिए ऐसे इंतजाम करने चाहिएं, ताकि वे नाम मात्र का शुल्क देकर यादगार वीडियो बना सकें। सेल्फी या ग्रुप फोटो लेने वालों के लिए सुविधाओं का ध्यान रखा जाए। अगर इसका सही तरीके से प्रचार हो और आस-पास पर्याप्त सुविधाओं का निर्माण कर दिया जाए तो यह कुछ ही वर्षों में अपनी लागत निकाल लेगा। इस पुल की एक और बड़ी खूबी है- इसका 1,315 मीटर लंबा इस्पात का मेहराब! इतना लंबा मेहराब लगाने के लिए पूरी टीम ने बहुत मेहनत की है। इसमें जरा-सी चूक पूरे प्रोजेक्ट को मुश्किल में डाल सकती थी। टीम की इस बात के लिए भी सराहना होनी चाहिए कि उसने यह पुल बनाते समय भूकंपीय और वायु संबंधी परिस्थितियों का खास ध्यान रखा। यह पुल भूकंप के भारी झटकों और तेज तूफानों में भी अडिग रहेगा।

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इस पुल का उद्घाटन करने आए प्रधानमंत्री मोदी जिस तरह तिरंगा लेकर चले, उसका संदेश बहुत दूर तक गया है। जहां भारत में लोगों को इससे गर्व की अनुभूति हो रही है, वहीं चीन और पाकिस्तान की आंखों में यह उपलब्धि कांटे की तरह खटक रही है। कभी भारत के सीमावर्ती इलाके ऐसे निर्माण कार्यों से वंचित रहते थे। उधर, चीन तिब्बत में पुलों, पटरियों और सड़कों का जाल बिछाता रहा। आज भारत भी तेजी से निर्माण कार्यों में जुटा है। अगर भविष्य में चीन उकसाने वाली कोई हरकत करेगा तो उसे भारत की ओर से तुरंत तथा ज्यादा ताकत के साथ जवाब मिलेगा। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में पुलों, सुरंगों, सड़कों आदि का निर्माण एक कठिन कार्य है, जिस पर लागत भी काफी आती है, लेकिन इनसे भारत की ताकत में इजाफा होगा। पुल पर तिरंगे के साथ प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीरें जब सोशल मीडिया के जरिए पाकिस्तान पहुंचीं तो कुछ लोगों ने अपनी सरकार से सवाल भी किए। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बड़े-बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं, जबकि पीओके में अभी तक उन स्कूलों की हालत नहीं सुधरी, जो अक्टूबर 2005 में आए भूकंप के कारण क्षतिग्रस्त हो गई थीं। वहां कई गांवों में सड़क तक नहीं है। पाकिस्तान सरकार ने पीओके के निवासियों को चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने के नाम पर अंतरराष्ट्रीय संगठनों से वित्तीय मदद ली थी। उसने वहां जो अस्पताल बनाए, उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होती रहती हैं। उनमें न डॉक्टर आते हैं और न मरीज दिखाई देते हैं। अलबत्ता वहां भेड़, बकरियां, खच्चर और आवारा जानवर आराम फरमाते जरूर मिल जाते हैं। अब समय आ गया है कि पीओके के लोगों को पाकिस्तान के नेताओं और रावलपिंडी के जनरलों से कुछ तीखे सवाल पूछने चाहिएं। पाकिस्तान के अवैध कब्जे से पीओके को क्या मिला? गरीबी, बदहाली, महंगाई, आतंकवाद, जुल्म और विकास से दूरी! पाकिस्तान के पास देने के लिए ये ही हैं। वह दुष्प्रचार कर लोगों को भ्रमित करने की कोशिश कर रहा है। अगर वह हकीकत में लोगों का हितैषी होता तो पीओके की यह हालत न करता। अक्लमंद को इसी से समझ जाना चाहिए।

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