नवकार महामंत्र सभी पापों का नाशक व मंगल भावों का जनक है: आचार्यश्री प्रभाकरसूरी

चातुर्मास की आराधना प्रारंभ हुई

नवकार महामंत्र सभी पापों का नाशक व मंगल भावों का जनक है: आचार्यश्री प्रभाकरसूरी

आचार्यश्री ने कहा कि जैन धर्म में नवकार मंत्र को महामंत्र की श्रेणी में रखा गया है

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के महालक्ष्मी लेआउट स्थित चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्यश्री प्रभाकरसूरीश्वरजी, महापद्मविजयजी, पद्मविजयजी व दक्षप्रभाकरजी की निश्रा में बुधवार से चातुर्मास की आराधना प्रारंभ हुई।

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पहले दिन आचार्यश्री प्रभाकरसूरीश्वरजी ने कहा कि जैन धर्म व दर्शन में सामायिक की क्रिया की विशेष महत्ता बताई गई है। भगवान महावीर ने सामायिक करने वाले श्रावक-श्राविका को बहुत पुण्यशील बताया है। सामायिक का अर्थ है समता की साधना। इस क्रिया में जैन श्रावक-श्राविकाएं एकांत भाव में रहकर तीर्थंकरों व धर्म का चिंतन करते हैं। 

जो व्यक्ति रोज सामायिक करता है वह व्यक्ति बिना धन या पदार्थ व्यय किए बिना महापुण्य कर्म का संचय करता है। रोज सामायिक करना जैन धर्म के श्रावक-श्राविकाओं का प्रथम कर्तव्य होना चाहिए।

आचार्यश्री ने कहा कि जैन धर्म में नवकार मंत्र को महामंत्र की श्रेणी में रखा गया है। इस मंत्र में राग या विराग नहीं, बल्कि यह मंत्र साधक को वीतराग की ओर ले जाता है। जैन धर्म के अनुसार सभी देवों में श्री वीतराग देव को, सभी तीर्थों में श्री शत्रुंजय तीर्थ को और सभी मंत्रों में नवकार मंत्र को श्रेष्ठ माना गया है।

नवकार मंत्र का प्रथम शब्द णमो है, जिसका अर्थ है नम जाओ। जो नमता है वही गुणों में रमता है और वही प्रभु को गमता है यानी प्रभु तक पहुँचता है। णमो शब्द का अर्थ है अहंकार छोड़ो। इस नवकार मंत्र में कुल नौ पद हैं, इसलिए इसे नवकार कहा जाता है। लेकिन नवकार का एक आशय नमस्कार भी है, इसलिए इसे नमस्कार मंत्र नाम से भी जाना जाता है। 

इस महासूत्र की विशेषता यह है कि यह अहंकार का विसर्जन करता है। इसमें व्यक्ति की पूजा नहीं, बल्कि गुणों की पूजा है। इसमें व्यक्ति को नहीं, व्यक्तित्व को नमस्कार किया जाता है। इसमें परंपरा को नहीं, जो परम है उसकी प्रतिष्ठा की गई है। इसमें ज्ञान दर्शन और चरित्र को मान दिया गया है। इन्हीं कारणों से नवकार मंत्र को अन्य मंत्रों से श्रेष्ठ माना गया है। 

यह महामंत्र सभी पापों का नाशक व सभी मंगल भावों का जनक है। इसके स्मरण मात्र से शांति की प्राप्ति होती है। इसकी आराधना को विश्व सुख का अद्वितीय कारण माना है। ऐसे महामंत्र का श्रद्धापूर्वक स्मरण करके दिनचर्या शुरू करें। 

इस मौके पर चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर के नरेश बम्बोरी ने बताया कि सवा करोड़ नवकार महामंत्र जप के सामूहिक जप 1% जुलाई से प्रारंभ होंगे। उन्होंने बताया कि 10 अगस्त को पैलेस ग्राउंड पर पार्श्वनाथ पद्मावती महादेवी का महापूजन 554 जोड़ों द्वारा किया जाएगा।

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