सद्गुरु का संयोग जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य: आचार्यश्री विमलसागरसूरीश्वर
गदग में गुरु पूर्णिमा पर लगा भक्तों का मेला
सद्गुरु के बिना कभी नहीं मिटती जड़ता
गदग/दक्षिण भारत। राजस्थान जैन श्वेतांबर संघ के तत्वावधान में गुरुवार को पार्श्वनाथ जैन सभागृह में गुरुपूर्णिमा का महोत्सव मनाया गया। जैनाचार्य विमलसागरसूरीजी ने गुरुतत्व की भावपूर्ण विवेचना की। वे अपने उपकारी गुरुओं को याद कर रो पड़े। उन्होंने कहा कि अपनी अज्ञानता, मूढ़ता और जड़ता सद्गुरु के बिना कभी नहीं मिटती।
सद्गुरु के थपेड़े ही हमारी युगों-युगों की कुवृत्तियों को समाप्त कर हमें महामानव बनाते हैं। सद्गुरु भीतर से जीवन का निर्माण करते हैं। उनके विचार, व्यवहार और निर्णय हमारी सोच से परे हो सकते हैं। गुरु को बुद्धि से नहीं, श्रद्धा और भक्ति से स्वीकार करना चाहिए।माता-पिता जन्म देते हैं, सद्गुरु जीवन के कल्याण का मार्ग देते हैं। सद्गुरु की खोज कीजिये, उनके बगैर जीवन की सारी उपलब्धियां व्यर्थ हैं। साथ ही यह सजगता भी आवश्यक है कि कुगुरुओं से हम दूर रहें। उनके परिवेश में जीवन को तबाह न करें। शास्त्रों ने कुगुरुओं को पाषाण कहा है। वे स्वयं डूबते हैं और दूसरों को भी डुबो देते हैं। ऐसे कुगुरुओं से सावधान रहना चाहिए।
आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि सद्गुरु का संयोग जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य है। जीवन में सबकुछ मिल जाएं और यदि सद्गुरु न मिले तो मानो कि आपको कुछ भी नहीं मिला है। सद्गुरु के बिना सब अधूरा और व्यर्थ है। इस संसार में इतनी बड़ी मात्रा में पाप-अपराध होते हैं कि इसका टिकना संभव नहीं है।
सद्गुरु ऐसी शक्ति है जो सद्विचारों और प्रेरणाओं द्वारा पुण्य को बढ़ाने तथा पाप-अपराधों को कम करने का भरपूर प्रयास करते हैं। इसलिए उन्हीं के असीम उपकारों से ही यह धरती टिकी है। संगीत और मंत्रोच्चार के साथ महावीरस्वामी की समग्र गुरुपरंपरा का पूजन विधान किया गया, इसके लिए पवित्र पीठ पर गुरु गौतम गणधर की मनोहारी प्रतिमा स्थापित की गई।
आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने अनेक साधक, उच्च कोटि के विद्वान, प्रतिभा सम्पन्न, ऐतिहासिक गुरुओं के व्यक्तित्व और कर्तृत्व की सिलसिलेवार रोचक विवेचना की। लाभार्थियों ने प्राचीन गुरु परंपरा के लिए दीप प्रज्ज्वलन कर आशीर्वाद की कामना की। गणि पद्मविमलसागरजी व मुनिगण ने कार्यक्रम की रोचक संयोजना कर दिव्यमंत्रों का उद्घोष किया।


